शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
शाकाहार नहीं है चांदी का वर्क!
चांदी के वर्क में लिपटी मिठाई कैंसर जैसी बीमारी का घर तो है ही, लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है। जी हां, चांदी का यह वर्क पशुओं की आंतों के जरिए जिस तरह बनता है उससे यह शाकाहार तो कतई नहीं रहता। योगगुरु बाबा रामदेव ने इस तरीके से वर्क बनाने पर प्रतिबंध की मांग की है।
चांदी का वर्क बनाने की प्रक्रिया की जानकारी दैनिक भास्कर ने जुटाई। इसमें जो तथ्य सामने आए, वह ऐसी मिठाइयों का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को झकझोर सकते हंै। दरअसल इसे पशुओं की ताजा आंत के अंदर रखकर कूट-कूट कर बनाया जाता है। दूसरी तरफ विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि चांदी का वर्क मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
लखनऊ स्थित इंडियन इंस्ट्टियूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) के एक अध्ययन के मुताबिक बाजार में उपलब्ध चांदी के वर्क में निकल, लेड, क्रोमियम और कैडमियम पाया जाता है। वर्क के जरिए हमारे पेट में पहुंचकर ये कैंसर का कारण बन सकते हैं। 2005 में हुआ यह अध्ययन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वर्क बनाने की प्रक्रिया जस की तस है।
शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश कश्यप के अनुसार धातु चाहे किसी भी रूप में हो, सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होती है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान लीवर, किडनी और गले को होता है। आईटीसी की मेटल एनालिसिस लेबोरेटरी के एन. गाजी अंसारी के अनुसार चांदी हजम नहीं होती। इससे पाचन प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है, नर्वस सिस्टम भी प्रभावित हो सकता है।
आजकल बाजार में चांदी के नाम पर एल्यूमिनियम, गिलेट आदि के वर्क धड़ल्ले से बिक रहे हैं जो कही ज्यादा हानिकारक हंै। पुणो स्थित एनजीओ ब्यूटी विदाउट क्रुएलिटी (बीडब्ल्यूसी) के मुताबिक एक किलो चांदी का वर्क 12,500 पशुओं की आंतों के इस्तेमाल से तैयार होता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में सालाना लगभग 30 टन चांदी के वर्क की खपत होती है। इसे बनाने का काम मुख्य रूप से कानपुर, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, रतलाम, पटना, भागलपुर, वाराणसी, गया और मुंबई में होता है।
ऐसे बनता है वर्क:
चांदी के पतले-पतले टुकड़ों को पशुओं की आंत में लपेट कर एक के ऊपर एक (परत दर परत) रखा जाता है कि एक खोल बन जाए। फिर इस खोल को लकड़ी से धीरे-धीरे तब तक पीटा जाता है जब तक चांदी के पतले टुकड़े फैलकर महीन वर्क में न बदल जाएं। पशुओं की ताजा आंत मजबूत और मुलायम होने से जल्दी नहीं फटती है। इसी वजह से इसका उपयोग किया जाता है
बाबा रामदेव ने कहा- धार्मिक अशुद्धि का मामला
योगगुरु बाबा रामदेव ने भास्कर से कहा कि चांदी का वर्क बनाने के ऐसे कारखानों को तुरंत बंद करना चाहिए। यह धार्मिक अशुद्धि का मामला है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक दवा के रूप में चांदी की भस्म का सेवन ठीक रहता है, वह भी निश्चित मात्रा में। दिगंबर जैन आचार्य विशुद्ध सागर जी का भी मानना है कि ऐसे वर्क से बनी मिठाई खाने योग्य नहीं होती। ऐसी मिठाइयों से बचना चाहिए।
ऐसी चीजो को जीवन में शामिल करना है या नही फैसला आपके हाँथ है
ये लेख हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर से लिया गया हैhttp://ptstsanchar.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html
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सौ फ़ीसदी सही कहा है. अच्छा मार्ग दर्शन
जवाब देंहटाएंJIS DESH KI POORI KI POORI WYWASTHA SAR-GAL CHUKI HO US DESH MAIN PATA NAHI AAGE KYA-KYA KHANA PAREGA SHAKAHARIYON KO ?
जवाब देंहटाएंसचमुच लोगों के विश्वास के साथ खिलवाड हो रहा है .. शाकहारी लोगों के साथ ही अन्य लोग व्रत उपवास में भी ऐसी मिठाइयां खा लेते हैं .. इसे रोका जाना चाहिए !!
जवाब देंहटाएंare baba re ye panga he
जवाब देंहटाएंmar diya chandi ne mujhe
ab nahi khaunga kabhi chandi ka cover wali mithai
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/\
आपने बिलकुल सही कहा है... हमने कई साल पहले इस बारे में लेख लिखा था...
जवाब देंहटाएंव्रती लोगों के लिए खाद्य और उनके यम नियम निर्धारित हैं। जो लोग छूट लेते हैं, वे जाने समझें। ..चाँदी के नाम पर दूसरी धातुएँ धोखाधड़ी है । वैसे इस तरह की धातुएँ थोड़ी मात्रा में रहती ही हैं। चाँदी की आघातवर्धनीयता का कोई जोड़ नहीं है, इसलिए मिलावट कम ही होती होगी क्यों कि अधिक होने से उसका यह गुण समाप्त होने लगता है। .. रही बात आँत वगैरह के प्रयोग की तो कोई कितना बचेगा? दवाओं के कैप्सूल में प्रयुक्ट ज़िलेटिन तो पशु अवशेषों से ही बनता है।
जवाब देंहटाएंचाँदी का वर्क प्रतिबन्धित करने से रोजी रोटी जाएगी। आवश्यकता है कि वैकल्पिक मशीनी जुगाड़ विकसित किए जाँय ताकि चाँदी का वर्क बनाने में आँत वगैरा की जरूरत ही न रहे।
कुछ सरकारी लोग खुद गाय खाते है ।आप खुद विरोध करो तभी ये बंद होगा गौ माता की जय
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