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रविवार, 18 अप्रैल 2010

रिश्ते बचेंगे कब तक ?

भारतीय जीवन पद्धति में रिश्तो की बड़ी अहमियत होती है परन्तु अब यह अहमियत धीरे - धीरे घटती जा रही है . भारतीयों का एक दुसरे से कटाव हो रहा है कुछेक कारण उंच - नीच होने लगी है तो कुछ कारण ओरतो और पुरुषो दोनों का ही  आत्याधिक मॉडर्न ' आधुनिक ' होना भी है . आज घर  आये मेहमान को चन्द घंटो में चलता कर दिया जाता है . कारण कोई भी रिश्तेदार आता है तब दोनों मिया - बीवी को काम प़र जाना होता है और संयुक्त परिवार तो पहले ही टूटते जा रहे है . ओरते पुरुषो की तरफ दफ्तर जाने लगी है घर प़र शाम को दोनों मिया बीवी का आना होता है एसे में रिश्तेदार कहा रहेंगे और कहा रहेंगी रिश्तेदारी . नारी अथवा पुरुष की यह सोच भारत में रिश्तो के महत्व को कम करने में लगी है . अगर यही हाल रहा तो माँ - बाप अपने बच्चो को बचपन में ही बाहर पढने भेज देंगे यह हाल अब भी है परन्तु अभी कुछ हद तक सिमित है . लेकिन इसका तेज़ी से फैलाव हो रहा है . अगर यही हाल रहा तो क्या आगे शादी जैसे रिश्ते की जरुरत रहेगी . पती - पतनी  के पवित्र रिश्ते में समय ही नही रहेगा आज से कुछ सालो बाद तो कोई शादी की अहमियत कैसे समझ पायेगा . रिश्तो की अहमियत माँ - बाप के प्यार को कोन समझेगा . आज तक भारतीय समाज जो पवित्रता बनाता आया है उसे कोन सहेज कर रखेगा . कही यह तनाव पूर्ण जीवन सवार्थी जीवन भारतीयों को मानसिक रोगों की तरफ तो नही ले जा रहा . जिसमे न ही बच्चो के लिये समय है और न ही सास - ससुर की सेवा के लिये . अगर भारतीय एसी जीवन शैली अपना कर मात्र पैसा कमाना चाहते है तो वह भारत में  पश्चिमी सभ्यता का ही परचम लेहरा रहे है . इस सभ्यता से न तो समाज का कल्याण होगा और न ही भावनाओं की कद्र और रिश्ते तो महज़ मजाक बन कर रह जायेंगे .

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