चिट्ठाजगत
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रविवार, 31 जनवरी 2010

कविता

जीवन एक कोरा कागज


कागज प़र कुछ तो लिख दो

नींद में सपने लेने से बेहतर

दिन में कुछ तो कर लो

हर दिन एक उजाला

हर रात है इक अँधियारा

अंधियारों से निकलकर

कुछ तो जीवन में रंग भर लो

स्वप्न में ना खोकर

नींद में न सोकर

जागकर जीवन में खुशियों

के रंग तो भर लो

शनिवार, 30 जनवरी 2010

क्या कोई हरिजन का लड़का ब्राहमण नही हो सकता

अगर कोई ब्राह्मण है और उसका बेटा व्यापारी तो उसे किस दृष्टि से ब्राह्मण कहा जाये . जब उसे कर्मकांडो और वेद , शास्त्र , गीता , पुराण का ज्ञान ही नही तो उसे किस तरह ब्राहमण कहा जा सकता है क्या उसे पंडित जी कह  सकते है . या सही होगा उसे पंडित कहना ठीक इसी तरह किसी हरिजन का लड़का वेदों का कर्मकाण्डो  का ज्ञान रखता है . उसे हरिजन कैसे कहा जा सकता है.  उसे अधिकार क्यों नही ब्राहमण कहने का जब की उसे ज्ञान है . भगवान ने मनुष्य को कर्म करने के लिए धरती प़र भेजा है उसे अपना भविष्य बनाने के लिए दान धर्म करने के लिए पृथ्वी प़र भेजा है . कर्मानुसार वर्गो में शामिल होने का हक़ दिया है अगर किसी हरिजन का लड़का पवित्र  रहता हुआ और सभी तरह  के ज्ञान के बावजूद भी ब्राह्मण नही हो सकता यह मनुष्य की मनमानी करने जैसा है . कोई भी मनुष्य जन्म से महान नही होता तो जन्म से ही ब्राहमण या क्षत्रिय या शुद्र , वैश्य कैसे हो सकता है . जब से जातीय बनी है भारत कमजोर हो रहा है और धर्म परिवर्तन की समस्या से जूझने का भी कारण यही है . हम वर्ग व्यवस्था को भुलाकर जाती व्यवस्था में जब से आये है तभी से हम उलझते ही जा रहे है . भेद भाव बढ़ रहा है दबंगी बढ़ रही है और जो शुद्र है वह दबता ही जा रहा है . छोटा व्यापारी दब रहा है . और भारतीय विद्या से भारतीयों का कटाव हो रहा है अंग्रेजी बढ़ने का भी कारण यही है . अगर यह अधिकार दे दिया जाये तो वेद शास्त्रों गीता , और पुराणो की हर घर तक पहुच होगी

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

मोल्वियो को आगे आना होगा कट्टरता कम करने के लिए

भारत में मुसलमान सबसे ज्यादा सुरक्षित भी है और सम्मान के साथ जीते भी है . पश्चिमी देशो से ज्यादा सम्मान मुसलमानों को भारत में मिला है लेकिन यह बात मुसलमान समझ नही पा रहे है . इन बातो को बहुत ही सरलता पूर्वक समझा जा सकता है . अभी हाल ही में स्विज़ेरलैंड की घटना गोर करने लायक है क्यों की भारत में एसा कभी भी नही हुआ और एक और घटना  शाहरुख़ के साथ घटी जिसमे उनकी चेकिंग की गयी इसलिए की उनके नाम के पीछे खान था . और वह घटना कैसे भुलाई जा सकती है जब एक भारतीय डॉक्टर प़र आस्ट्रलिया में आरोप लगे थे . कदम कदम प़र मुसलमानों को पश्चिमी देश में बदनाम किया जाता है . भारत में मुसलमानों का इतिहास लगभग २५० सालो का है लेकिन अब भी बहुत सी शिकायते है जिनमे से कुछ जायज कुछ नाजायज़ है .आजादी के समय मुस्लिम जनसंख्या २०% थी इस दोरान मुसलमानों को कई उचे उचे पद मिले लेकिन कट्टरता फिर भी बनी रही . कभी किसी कट्टरपंथी ने फतवा निकाला तो कभी किसी मोलवी ने . अगर मोलवी लोग हक़ के लिए फतवे निकालते है तो उन्हें बढ़ रही जनसंख्या प़र भी कोई फ़तवा निकलना चाहिए .  ३ ,३ शादियों से अपने समाज को जागरूक करना  चाहिए . मोलवी लोग गणेश पूजा प़र फतवे निकलते है तब तो उन्हें अपने धर्म में फैली कुछ बुराइयों  को भी दूर करना चाहिए अगर सच में आम मुसलमान का हित चाहते है तो उन्हें मुसलमानों को शिक्षा के प्रति भी जागरूक करना चाहिए . हर समय शिकायत तो की जाये और कट्टरता के बीज बो दिए जाये लेकिन समाधान न किया जाये कहा की इंसानियत हुई . कट्टरता को कम करने का पाठ भी पढ़ाया जा सकता है . मैंने अपनी जिन्दगी में एसे मुसलमानों को भी देखा है जिन्हें अपने कम से मतलब है और एसे मुसलमानों को भी जिन्हें केवल कट्टरता फैलानी आती है . लेकिन बुराई के साथ अच्छाई भी बह जाती है लेकिन बड़े लोगो का कर्तव्य बनता है बुराई को अच्छाई में तब्दील किया जाये 

शनिवार, 23 जनवरी 2010

हिंदी का अपमान भारतीयों का अपमान

कहने को तो हिंदी राष्ट्र भाषा है मातर भाषा है लेकिन इसे कितना सम्मान मिलता है इसका अंदाजा तभी लग जाता है तब कोई भी बड़ा नेता अथवा व्यापारी मिडिया के सामने कुछ भी बोलता है . कभी किसी नेता को हिंदी बोलते देखा है आपने या कोई बड़ा व्यापारी . आज किसी भी शहर में चले जाइये आपको कोई भी दुकान या शोपिंग मोल हो अथवा कोई भी सरकारी इमारत बड़े बड़े बोर्ड दिखाई देंगे जिन पर अंग्रेजी में महकमे का (डिपार्टमेंट) का नाम लिखा होगा . आप हमारे फ़िल्मी कलाकारों को ही लीजिये वे लोग भी खाते हिंदी की है पर गुण अंग्रेजी में गाते है . आज भारत में एसे सैकड़ो स्कूल है जहा हिंदी बोलने तक पर मनाही है या यु कहे सजा भी दी जाती है . लेकिन बात करते है कैम्ब्रिज विश्वविधालय की जहा १५० सालो से संस्कृत और हिंदी पर अध्यन चाल रहा था या यु समझिये पढाई जा रही थी वह पिछले वर्ष ही बैन कर दी गयी . लेकिन भारत में हिंदी स्कूलों की जनसंख्या घट रही है और अंग्रेजी स्कूलों की बढ़ रही है यानि हिंदी अब यहाँ भी सुरक्षित  नही है . अपने ही देश में . कुछ लोगो की राय है अंग्रेजी सीखना बहुत जरूरी हो गया है वश्विक तोर पर . लेकिन क्यों क्या हिंदी को जानने वाले केवल भारत में है .  नही एसा नही है पाकिस्तान , मलाशिया ,नेपाल , मारीशस ,भूटान जैसे कई देश है जहा हिंदी बोली समझी जाती है . कैम्ब्रिज में अगर हिंदी पर बैन लग सकता है तो भारत में अंग्रेजी पर क्यों नही . जिन अंग्रेजो ने हम पर २०० साल राज किया .हमें गुलाम बनाया लुटा यहाँ तक की देश के दो टुकड़े भी कर दिए हम उनकी शैली को इतना सम्मान क्यों दे रहे है . हम उन्ही की संस्कृति अथवा भाषा को माथे का तिलक लगाये क्यों घूम रहे है. वे लोग हमें पैरो तले रोंदते  रहे हम उन्हें सर पर बैठा रहे है

आज का निर्माता फिल्म बनाता है केवल मुनाफे के लिए

फिल्मे समाज का दर्पण  होती है जो हमें हमारे समाज की बुराई और अच्छाई से रूबरू करती है . लेकिन भारतीय फिल्मे अपने पथ से भटक रही है  . फिल्म निर्माता अब एसी कहानी परदे पर नही उतारते जो समाज से जुडी हो अथवा वह हमें कुछ सन्देश दे सके . आज का निर्माता फिल्म बनाता है केवल मुनाफे के लिए और भारतीयों को उलझाये रखता है मनोरंजन के मसाले में और कुछ निर्माताओ का एजेंडा तो अश्लीलता  दिखाकर मुनाफा कमाना होता है  . भारतीय समाज को अपने इतिहास से केवल फिल्म के जरिये ही रूबरू करवाया जा सकता है सभी की गीता  , राम चरितमानस , वेद शास्त्रों , अथवा गुलामी से जुडी  अथवा किसी भी एतिहासिक पुस्तक तक पहुच नही होती . कारण बहुत हो सकते है समय या हमारा अपनी संस्कृति के पर्ती गंभीर न होना . लेकिन फिल्म देखने के लिए भारतीय समय निकाल ही लेते है . अगर हम बोलीवूड की फिल्मो को शुरुआत से अंत तक देखे तो कुछेक फिल्मो को छोडकर सभी फिल्मो में मनोरंज़न का तड़का ही मिलता है . कोई भी फिल्म  हमारे इतिहास से या फिर गुलामी काल में हुए हम पर अत्याचारों को पर्दर्शित नही करती . मुगले आजम फिल्म बनी उसमे एक सुल्तान का अपनी बेगम के प्रति प्यार दिखाया गया जोधा अकबर बनी उसमे भी अकबर को भारतीयों  के प्रति नर्म दिखाया गया . इसी तरह एक फिल्म बनी ' चक दे इण्डिया ' उसमे भी एक मुसलमान की ईमानदारी दिखाई गयी . लेकिन कभी किसी फिल्म निर्माता ने ओरंगजेब के अत्याचारों को परदे पर क्यों नही उतारा . कभी मुहम्मद गोरी , चंगेज खान की भारतीयों  के प्रति कट्टरता को परदे पर क्यों नही उतारा जाता .विदेशो की चमक धमक तो दिखाई जाती है लेकिन भारत में बढ़ रहा भ्रष्टाचार नही दिखाया  जाता . बड़ी बड़ी इमारते तो दिखाई जाती है लेकिन उनके तले दबे कुचले लोग नही दिखाए जाते . किसी भी जात की महानता तो दिखाई जाती है लेकिन भारतीयों में फ़ैल रही जाती के प्रति अज्ञानता नही . नई पीढ़ी को बरगला कर अमिताभ , शाहरुख़ , सलमान , आमिर को भगवान बनाना कहा  तक उचित है . युवाओ को लड़की को दोस्त बनाने अथवा पटाने के तरीके तो बताये जाते है लेकिन देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी नही बताई जाती . पैसे की अहमियत तो गिने जाती है लेकिन देश की अहमियत भुलाकर .यही है हमारा दर्पण जो समाज की बुराइयों को दीखाने का दावा करता है .

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

अब तो हर इन्सान का नकली लहू यहा

धर्म भी भी बिकता है यहा अब
कर्म भी बिकता है यहा अब
हर आदमी  बिकता है यहा अब
चाहे नेता हो या चोर यहा अब
हर इन्सान का इमान भी बिकता यहा

इज्ज़त के सोडे होते दो रोटी वास्ते
बच्चो से भीख मंगवाते   बोटली वास्ते
नकली दूध  है यहा घी भी नकली यहा
अब तो हर इन्सान का नकली लहू यहा





 

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

एक देश को देखा था कभी मैंने

जब से कुछ समझने लगा हूँ तब से देख रहा हूँ मेरे देश के लोग हमारी संस्कृति को भुला रहे है या किसी न किसी रूप में नुकसान पंहुचा रहे है जाने अनजाने . सभी मेरे देश को सोने की चिड़िया कहते थे तभी इसे लुटने आते थे और अब भी कई देशो की गिद्ध दृष्टि इस पर लगी है . लेकिन उन्हें अलग रखकर देखे तो हम ख़ुद भी अपनी संस्कृति अपनी मर्यादाओ को भुला रहे है . गंगा जी में देखता हूँ तो हमारे ही भारतवासी उसमे गन्दा पानी छोड़ रहे है यही हाल जमुना का . यही हाल गौ माता का गौ वध निरंतर जारी है . भारत में प्रक्रति से भी खिलवाड़ हो रहा है . न ही बडो का सम्मान है और न ही छोटो की कोई मर्यादा . आज जो विदेशी भारत दर्शन को आते है उनमे से कोई विदेशी २०१५ में भारत आयेगा तो उसकी सोच यह होगी यह सब देखकर .




एक देश को देखा था कभी मैंने

जहा लगते थे शहीदों की चिताओ पर मेले


जहा करते थे साधू तप


जहा होता था सम्मान बड़ो का

एक देश को देखा था कभी मैंने






जहा नदियों को पूजा जाता था


जहा धरती को पूजा जाता था माँ कहकर



एक देश को देखा था कभी मैंने

जहा होती थी गाय जिन्हें कहते थे माँ

लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा

लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा

एक देश को देखा था कभी मैंने

एक देश को देखा था कभी मैंने

जब से  कुछ समझने लगा हूँ तब से देख रहा हूँ मेरे देश के लोग हमारी संस्कृति को भुला रहे है या किसी न किसी रूप में नुकसान पंहुचा रहे है जाने अनजाने . सभी मेरे देश को सोने की चिड़िया कहते थे तभी इसे लुटने आते थे और अब भी कई देशो की गिद्ध दृष्टि इस पर लगी है . लेकिन उन्हें अलग रखकर देखे तो हम ख़ुद भी अपनी संस्कृति अपनी मर्यादाओ को भुला रहे है . गंगा जी में देखता हूँ तो हमारे ही भारतवासी उसमे गन्दा पानी छोड़ रहे है यही हाल जमुना का . यही हाल गौ माता का गौ वध निरंतर जारी है . भारत में प्रक्रति से भी खिलवाड़ हो रहा है . न ही बडो का सम्मान है और न ही छोटो की कोई मर्यादा . आज जो विदेशी भारत दर्शन को आते है उनमे से कोई विदेशी २०१५ में भारत  आयेगा तो उसकी सोच यह होगी यह सब देखकर .

एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा लगते थे शहीदों की चिताओ पर मेले
एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा करते थे साधू तप
एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा होता था सम्मान बड़ो का
एक देश को देखा था कभी मैंने


एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा नदियों को पूजा जाता था
एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा धरती को पूजा जाता था माँ कहकर

एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा होती थी गाय जिन्हें कहते थे माँ
एक देश को देखा था कभी मैंने
लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा
 लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा
एक देश को देखा था कभी मैंने

भारत में जाती जन्मजात से नही कर्म से थी

आज जिस आधार  पर हम जाती के नाम पर बटे हुए है सभी का अलग समूह है सभी की अपनी मांगे . क्या प्राचीन कल में भी इसी तरह जाती थी यानि इतनी जातीय या काम के आधार पर हर किसी को वर्गो में बता गया था . जैसे जो व्यापर करने लगा वह वैश्य , जो विधा ग्रहण करने लगा या जिसने वेद शास्त्रों में रूचि ली वह ब्राह्मण ,और जिन्होंने मेहनत कार्य किया जैसे चिनाई , लिपाई या किसी तरह की मजदूरी वह शुद्र कहलाये इसी तरह जो राजपुत्र हुआ या जिसने युद्ध के से या अपने बल से कोई राज्य जीता वह राजपूत या शत्रीय कहलाया .आइये समझते है चाणक्य निति क्या है .

बलं च विप्रान्म राज्ञा स्न्यम बलं तया .

बलं विधा च वैश्यना शुद्रानम प्रिच्यिता .२६

अर्थात . ब्राह्मणों का बल है विधा , राजाओ का बल है सेना , वैश्यो का बल है धन , और शुद्रो का बल है सेवा

यह चार स्तम्भ है भारत के जो किसी न किसी रूप में भारतीयों को मजबूती प्रदान करते है .

कुल मिलाकर प्राचीन काल में आज जितनी जातीय है उतनी जातीय नही थी सभी काम के आधार पर बाते थे . और जन्मजात से तो जाती थी ही नही . अगर कोई बड़ा व्यापर करने लगा तो वह वश्य हुआ और उसने अपनी बेटी या बेटे का विवाह भी व्यापारी के यहा किया और जिसने छोटा व्यापर किया उसे निचली श्रेणी में डाल दिया जैसे किसी ने दर्जी का काम किया उसकी अलग जात ,बल काटने वाले की अलग और जुटी गठन वालो की अलग . ठीक इसी तरह ब्राह्मण जिसने विधा ग्रहण की वह ब्राह्मण कहलाया और उसने अपने रिश्ते या सम्बन्ध भी किसी पढ़े लिखे या ज्ञानी के यहा किये . और श्त्रीय भी इसी तरह , और शुद्र भी इसी तरह . आज जितनी जात है और जन्मजात से हो सकता है यह गुलामिकाल की देन हो क्यों की गुलामी के समय हमारे इतिहास और संस्कृति , व्यवस्था को तोड़ने की कोशिश की गयी . चलिए देखते है ब्राह्मणों के विषय में महात्मा बुध जी के विचार .

न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो।





यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥



भगवान बुद्ध धर्म कहते हैं कि ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।







किं ते जाटाहि दुम्मेध! किं ते अजिनसाटिया।



अब्भन्तरं ते गहनं बाहिर परिमज्जसि॥



अरे मूर्ख! जटाओं से क्या? मृगचर्म पहनने से क्या? भीतर तो तेरा हृदय अंधकारमय है, काला है, ऊपर से क्या धोता है?







अकिंचनं अनादानं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥



जो अकिंचन है, किसी तरह का परिग्रह नहीं रखता, जो त्यागी है, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।







वारि पोक्खरपत्ते व आरग्गे रिव सासपो।



यो न लिम्पति कामेसु तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥



कमल के पत्ते पर जिस तरह पानी अलिप्त रहता है या आरे की नोक पर सरसों का दाना, उसी तरह जो आदमी भोगों से अलिप्त रहता है, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।







निधाय दंडं भूतेसु तसेसु ताबरेसु च।



यो न हन्ति न घातेति तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥



चर या अचर, किसी प्राणी को जो दंड नहीं देता, न किसी को मारता है, न किसी को मारने की प्रेरणा देता है उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।

लेकिन जो ब्राह्मण कहलाये वह अपने पुत्रो को पढाने लग गए और जो शुद्र थे अधिकतरो ने मजदूरी का कार्य करवाया पुत्रो से इसी तरह व्यापारी का बेटा व्यापरी ही हुआ और राजा का राजा . लेकिन अगर किसी शुद्र का बेटा शास्त्रों का ज्ञान रखने लगा तो उसे भी ब्राह्मण कहा गया या किसी शुद्र के बेटे ने वयापार किया उसे वश्य की श्रेणी अर्थात वर्ग में रखा गया . और आगे चलकर एसी खाई उत्पन्न हुई की सभी को के अपने जातीय समूह हो गये जो की देश के लिए हानिकारक है . इस व्यवस्था से पहले की वयवस्था बेहतर थी उस समय वही ब्राह्मण हुआ करता जो विद्या ग्रहण करता . अगर वही व्यवस्था दोबारा लागु कर दी जाये तो उंच नीच या जाती पाती की लड़ाई खत्म हो जाये और भारत मज़बूत होकर उभरे

रविवार, 17 जनवरी 2010

यज्ञकर्म विज्ञान है कर्मकांड नहीं

वेदानुसार यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं-(1) ब्रह्मयज्ञ (2) देवयज्ञ (3) पितृयज्ञ (4) वैश्वदेव यज्ञ (5) अतिथि यज्ञ। उक्त पाँच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार दिया गया है। वेदज्ञ सार को पकड़ते हैं विस्तार को नहीं।




।।ॐ विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रं तन्नासुव ।।-यजु

भावार्थ : हे ईश्वर, हमारे सारे दुर्गुणों को दूर कर दो और जो अच्छे गुण, कर्म और स्वभाव हैं, वे हमें प्रदान करो।



'यज्ञ' का अर्थ आग में घी डालकर मंत्र पढ़ना नहीं होता। यज्ञ का अर्थ है- शुभ कर्म। श्रेष्ठ कर्म। सतकर्म। वेदसम्मत कर्म। सकारात्मक भाव से ईश्वर-प्रकृति तत्वों से किए गए आह्‍वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। माँगो, विश्वास करो और फिर पा लो। यही है यज्ञ का रहस्य।





ND(1) ब्रह्मयज्ञ : जड़ और प्राणी जगत से बढ़कर है मनुष्‍य। मनुष्‍य से बढ़कर है पितर, अर्थात माता-पिता और आचार्य। पितरों से बढ़कर हैं देव, अर्थात प्रकृति की पाँच शक्तियाँ और देव से बढ़कर है- ईश्वर और हमारे ऋषिगण। ईश्‍वर अर्थात ब्रह्म। यह ब्रह्म यज्ञ संपन्न होता है नित्य संध्या वंदन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करने से। इसके करने से ऋषियों का ऋण अर्थात 'ऋषि ऋण' ‍चुकता होता है। इससे ब्रह्मचर्य आश्रम का जीवन भी पुष्‍ट होता है।



(2) देवयज्ञ : देवयज्ञ जो सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से सम्पन्न होता है। इसके लिए वेदी में अग्नि जलाकर होम किया जाता है यही अग्निहोत्र यज्ञ है। यह भी संधिकाल में गायत्री छंद के साथ किया जाता है। इसे करने के नियम हैं। इससे 'देव ऋण' चुकता होता है।



हवन करने को 'देवयज्ञ' कहा जाता है। हवन में सात पेड़ों की समिधाएँ (लकड़ियाँ) सबसे उपयुक्त होतीं हैं- आम, बड़, पीपल, ढाक, जाँटी, जामुन और शमी। हवन से शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है। रोग और शोक मिटते हैं। इससे गृहस्थ जीवन पुष्ट होता है।



(3) पितृयज्ञ : सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता, पिता और आचार्य तृप्त हो वह तर्पण है। वेदानुसार यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता-पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है। यह यज्ञ सम्पन्न होता है सन्तानोत्पत्ति से। इसी से 'पितृ ऋण' भी चुकता होता है।



(4) वैश्वदेवयज्ञ : इसे भूत यज्ञ भी कहते हैं। पंच महाभूत से ही मानव शरीर है। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है। अर्थात जो कुछ भी भोजन कक्ष में भोजनार्थ सिद्ध हो उसका कुछ अंश उसी अग्नि में होम करें जिससे भोजन पकाया गया है। फिर कुछ अंश गाय, कुत्ते और कौवे को दें। ऐसा वेद-पुराण कहते हैं।



(5) अतिथि यज्ञ : अतिथि से अर्थ मेहमानों की सेवा करना उन्हें अन्न-जल देना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इससे संन्यास आश्रम पुष्ट होता है। यही पुण्य है। यही सामाजिक कर्त्तव्य है।



अंतत: उक्त पाँच यज्ञों के ही पुराणों में अनेक प्रकार और उप-प्रकार हो गए हैं जिनके अलग-अलग नाम हैं और जिन्हें करने की विधियाँ भी अलग-अलग हैं किंतु मुख्यत:यह पाँच यज्ञ ही माने गए हैं।



इसके अलावा अग्निहोत्र, अश्वमेध, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय और अग्निचयन का वर्णण यजुर्वेद में मिलता है किंतु इन्हें आज जिस रूप में किया जाता है पूर्णत: अनुचित है। यहाँ लिखे हुए यज्ञ के अलावा अन्य किसी प्रकार के यज्ञ नहीं होते। यज्ञकर्म को कर्त्तव्य व नियम के अंतर्गत माना गया है।


http://hindi.webdunia.com/religion/sanatandharma/rules/0909/07/1090907056_1.htm

क्या वाकई स्त्री का अपमान होता है भारत में

भारत में आरोप लगाये जा रहे है यहाँ नारी को सम्मान नही मिलता . लेकिन अगर गोर से देखा जाये तो इस देश में और केवल इसी देश में नारी को सम्मान मिलता है . अगर कोई सहमत नही है तो  अंग्रेजी चस्मा उतारकर देखे . भारत ही वह देश है जहा  ओरत को देवी के रूप में पूजा गया है भारत ही वह देश है जहा शादी को ७ जन्मो का बंधन समझा गया है भारत ही वह देश है जहा भाई ने अपनी बहन को रक्षा का वादा किया और निभाया है भारत ही वह देश है जहा पृथ्वी को धरती माता के रूप में पूजा गया है . आप मुझे कोई भी पश्चिमी या इस्लामिक राष्ट्र कोई  एक बता दीजिये जहा  इनमे से एक भी सम्मान ओरत या किसी लड़की को मिला हो .   इश्वर की वंदना में भी नारी का सम्मान यही होता है                          तव्मेव माता पिता त्वमेव
                                                                                           त्वमेव बंधू सखा त्वमेव
                                                                                               तव्मेव विद्या तव्मेव सर्व
                                                                                           मम मम देव देव
यही वह देश है जहा नारी के सम्मान की खातिर बड़े बड़े युद्ध हुए . याद दिला देते है महाभारत द्रोपदी के सम्मान की खातिर लड़ा गया और रामायण में सीता मैया के लिए रावण से भी युद्ध जीता . हां कुछ शरारती तत्व भी है राठोर , या तिवारी जैसे . लेकिन एसे तत्व तो पश्चिमी देशो में भी है . भारत में सभी संस्कारी बालक अपनी माता के चरणों की धुल को माथे से लगाते है यहाँ तक की युद्धों  में शहीद भी धरती माता का नाम लेकर होते है . पश्चिमी देशो का हाल किससे छुपा है या पाकिस्तान  को ही देख लीजिये जहा नारी को बिना बुर्के के बाहर निकलने की आजादी नही है . मोबाइल रखने की आजादी नही है . अगर भारत में नारी का सम्मान नही होता तो क्या इंदिरा गाँधी पी एम् या वसुंधरा राजे सी एम् बन पाती उमा भारती हो या शीला दीक्षित नारी को इस देश में सम्मान मिलता ही रहा है . आप सोचिये कोई भी एक राष्ट्रपति अमेरिका का जो नारी रही हो

शनिवार, 16 जनवरी 2010

आने वाले सालो में टूट जायेगा परिवार

मज़बूत रिश्ते ही किसी परिवार की नीव होते है लेकिन कुछ सालो से भारत में रिश्ते कमज़ोर पड़ते जा रहे है . एसी क्या बात थी की ४ ४ बच्चे होने के बाद भी घरो में साँझा चूल्हा जलता था सभी साथ साथ रहते थे . भारत में परिवार की नीव बहुत मज़बूत होती थी लेकिन कुछ सालो से यह नीव हिल ही नही रही खंडित भी हो रही है . एसे क्या कारण है की भारत में नागरिको को ही नही एक परिवार को जोड़े रखना भी मुश्किल या यु कहे नामुनकिन होता जा रहा है . पहले का परिवार कुछ यू हुआ करता बड़ा घर दादा ,दादी , ताऊ ,चाचा ,ताई , चाची ,माँ , पिता जी , भाई , बहन लेकिन वर्तमान में मोम ,डैड , ब्रदर ,सिस्टर . अभी एक बच्चा देखा मैंने ' उम्र महज़ 3 साल उसकी कोई दादी नही है दादा नही है कभी कभार नाना आते है लेकिन शाम को ही चले जाते है उसके पापा पराईवेट नोकरी करते है उन्हें कभी कभी २ २ दिन लग जाते है और उसकी माँ बैंक में कार्यरत है . माँ भी सुबह १० बजे चली जाती है बच्चा क्रेच में . जिस बच्चे की उम्र माँ, दादी की गोद में खेलने की थी वह क्रेच में है . हम उनके करीबी है एक बार मैंने पूछ लिया ' आप अपने बच्चे को किस जन्म की सज़ा दे रही है उनका जवाब था क्या मुझे मेरी जिन्दगी जीने का हक़ नही . ' फिर मैंने कहा दादा दादी को ले आइये उनका जवाब था वह यहाँ आएंगे तो खर्चा बढ़ जायेगा ' . ये सोच केवल उन्ही की नही हम सभी भारतीयों की होती जा रही है . लेकिन पिसना बच्चो को ही पड़ रहा है . खुशिया कम हो रही है और गम बढ़ रहे है तन्हाईया , अकेलापन बढ़ रहा है पैसो की भूख रिश्तो को तोड़ रही है हमें मानसिक रोगी बना रही है . भारत को एक एसा देश बनाया जा रहा है जिसमे केवल अंग्रेजी मानसिकता के लोग रहेंगे . जिसका नाम होगा इण्डिया . जिसमे न कोई परिवार न ही रिश्ते केवल अकेलापन और बहुत सा पैसा . आने वाले सालो में टूट जायेगा परिवार .

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

कैसे पैदा होंगे कर्ण , भीम , बलि , हनुमान जी जैसे वीर

भारत हमेशा से वीरो की धरती रहा है और यहाँ का खाना भी सभी से अलग और सवच्छ रहा है . तभी तो पुरानी पीढ़ी १२० साल या १०० साल तक जीती थी . उनके सवच्छ रहने और लम्बी उम्र तक जीने के कई कारण हो सकते है . खाना तो था ही और पैदल चलना भी हो सकता है . और एक कारण यह भी हो सकता है पहले फसलो में दवाइयों का प्रयोग नही किया जाता था . लेकिन आजकल सभी सब्जिया या अनाज सभी तरह की फसलो में दवाओ का पर्योग हो रहा है इसे शायद इन्सान की भूख कहा जाये जो अब ज्यादा का इरादा रखता है . यानि अब हम अपने खाने में भी दवा का सेवन करते है . पहले दूध हुआ करता था असली लेकिन अब शहर हो या गाव सभी जगह नकली दूध बिकता है अगर असली मिला तो पानी ज्यादा मिला होगा . बच्चा पैदा होने पर भी नकली दूध पिता है और बड़ा होने पर भी यानि अब हड्डियों का चिरहर्ण बचपन से ही शुरू हो जाता है . आज से कुछ ही साल पहले भारत का खाना दूध दही घी का होता था पंजाब में मक्के की रोटी और हरियाणा में बाजरे के रोट लस्सी लेकिन अब आधुनिक होती दुनिया में पिज्जा , डोसा , isekrim , चौमिन यानि सभी राज्यों में अंग्रेजी चयनिस खाने की लत पड़ चुकी है . वीरो की धरती पर खोखले होंगे शरीर हमारे . कैसे पैदा होंगे कर्ण , भीम , बलि , हनुमान जी जैसे वीर .राजस्थान ,महाराष्ट्र ,up ,बिहार कोई भी नही बचा देसी सभी हो रहे अब विदेशी . वैसे इस तरह की बातो से पता चलता है हम क्यों गुलाम होते है क्यों की हम अपनी संस्कृति भूल दुसरो की वेशभूषा धारण करते है

सोमवार, 11 जनवरी 2010

उनके चाहने वाले मंदिर गुरुद्वारों में मन्नते मांगते है अपने अभिनेता की अच्छी सेहत की

हर हफ्ते फिल्मे निकलती है और हम आप भी थिएटर में फिल्म देखने जाते है . फिल्म देखने की टिकेट खर्च १२० रूपए  होता है . हर फिल्म  को मुनाफा देने में दर्शक का हाथ होता है दर्शक ही किसी भी छोटे से छोटे कलाकार को बड़ा बनाता है उसे पैसा देता है .और एक भावनात्मक रिश्ता भी बना लेता है फ़िल्मी कलाकारों से . यानि कोई भी कलाकार दर्शको के सराहे बिना कलाकार नही बन सकता . अगर कोई कलाकार बीमार हो जाये  तो उनके चाहने वाले मंदिर गुरुद्वारों में मन्नते मांगते है अपने अभिनेता की अच्छी सेहत की . लेकिन आम जनता पर कोई विपदा आती है  तो क्या कभी किसी कलाकार खिलाडी आगे आया है उनकी मदद के लिए . अभी पिछले साल जब बिहार में बाढ़  आई हुई थी तब कोई भी खिलाडी कोई भी कलाजगत से जुडा या कोई अभिनेता कोई भी आगे नही आया आर्थिक मदद को . आया तो केवल आम नागरिक चाहे किसी भी प्रदेश का हो सभी ने मदद की किसी ने १ लाख तो किसी ने १ रुपया .आम इन्सान की तकलीफों को केवल आम इन्सान ही समझ पाता है लेकिन कोई भी बड़ा आदमी जब वह कुछ उचाईयो  पर पहुच जाता है तो उसका भारत और भारतीयों से कटाव क्यों हो जाता है लेकिन आम जनता हवन कीर्तन करती है उन सब के लिए

क्या इसे एक अछि खबर मानकर इसका स्वागत किया जाये

प्रोपर्टी बाज़ार में छा  गयी है मासूमी . कुछ माह पहले जो जमीन २००० रूपए गज रातो रत बिक जाती थी उसे अब कोई ८००  सो रूपए गज नही खरीद रहा . प्रोपर्टी डीलरों  ने पिछले कई सालो से खूब चाँदी कुटी . लाखो रूपए कामके ख़ुद को साधन सम्पन्न किया . प्रोपर्टी डीलरों ने एसा ताना बना बुना की आम आदमी  के बस से पर हो गया था पलट या किसी भी तरह की जमीन लेना . एक और प्राणी था जिसकी जमीन से सोना दे रही थी जमीदार . कुछ जमीदारों ने खेती को छोड़ प्रोपर्टी का धंधा  शुरू कर दिया था . लेकिन अब सभी मायूस है लेकिन एक आदमी है जो इस खेल को देखकर मन को तोड़ कर बैठा रहा . वह था आम आदमी जिसे घर बनाने के लिए जमीन चाहिए थी लेकिन महंगी जमीन को वह खरीद नही सकता . प्रोपर्टी में मंदी छाने से घर का सपना साकार होगा . क्या वह घर बना सकेगा अगर जमीन के भाव असमान न चुक्र जमीन पर आये तो घर का सपना साकार हो सकता है तो क्या इसे एक अछि खबर मानकर इसका स्वागत किया जाये

रविवार, 10 जनवरी 2010

लेकिन अब सभी समूहों में बटे है जब देश की मजबूती के लिए लड़ते थे .

स्त्री नारी पुरुष बजुर्ग युवा सभी को मिला के एक परिवार बनता है . भारत बनता है . इनमे से एक भी कड़ी कमज़ोर हो तो परिवार टूट जाता है . जैसा की कुछ सालो से हो रहा है . हम सभी खिन्न भिन्न हो गये है . सभी अपनी अपनी आवाज़ बुलंद करने में लगे है युवाओ का अलग संगठन है और महिलाओ का अलग . इतना ही नही भारत के हर शेत्र में करोड़ो लोग रहते है उनके अलग संगठन होते है किसी का जातीय तोर पर और किसी का सामाजिक तोर पर . अल्पसंख्यको का अलग . लेकिन आपको नही लगता इन सभी संगठनों ने भारत को बात सा दिया है सभी की अलग विचारधारा है सभी के अलग कानून . सभी के विचार केवल अपने स्वार्थो तक सिमित है युवाओ को अपना हक़ चाहिए नारी को अपना और पुरुष को अपना . मतलब साफ है हम सभी अपने आप में ही इतने उलझ से गये है की परिवार की नीव हिलने सी लगी है . कोई कहता है हम वन्दे मातरम नही गायेंगे . इस तरह के विरोध और इस तरह हमारा संगठित न रहकर अलग अलग मांगे करना देश को कहा ले जाकर थामेगा . जब देश गुलाम था तब नेता जी ने एक फोज़ को नाम दिया था आजाद हिंद   फोज उसमे सभी देश के लिए लड़ते थे आजादी के लिए लड़ते थे स्त्री हो या पुरुष . लेकिन आज सभी आपस में लड़ते है उसमे सभी धर्म जात के लोग थे . लेकिन अब सभी समूहों में बटे है जब देश की  मजबूती के लिए लड़ते थे .लेकिन अब सभी केवल ख़ुद को मज़बूत करना चाहते है सभी अपना घर भरना चाहते है . भारत के मुद्दे पर कोन आगे आता है . भारत को बाटने वाले भी हमी है .

शनिवार, 9 जनवरी 2010

क्या आने वाले समय में भी यही सम्मान उसे मिलेगा

भारतीय समाज में नारी को हमेशा एक देवी के रूप में पूजा गया है . नारी पुरुष के जीवन में एक माँ एक बहन और अंत में एक पत्नी के रूप में आती है . नारी के बिना कोई कार्य सम्पन्न नही होता भारत में नारी को एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है . वह रक्षाबंधन हो या नवरात्रों पर कंजका को ज़िमाना नारी को सम्मान ही दिया जाता रहा है . लेकिन नारी की मह्त्व्कंशाये बदल रही है आज  नारी पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलना चाहती है और चल रही है . लेकिन नारी का पहनावा जरूरत से ज्यादा बदल रहा है इस रहन सहन से नारी अपनी गरिमा को खोती जा रही है . जिस देश में नारी को एक बहन माँ का स्थान बड़े ही आदर पूर्वक दिया गया हो क्या इस तरह के परिधान शोभा देते है . वैसे हम इसे बदलाव कह सकते है और अगर किसी ओरत से पूछे तो इसे सुंदर दिखने के लिए कहा जा सकता है . लेकिन इस तरह ही नारी का स्वरूप बदलता रहा वह जो सम्मान पाती रही है क्या आने वाले समय में भी यही सम्मान उसे मिलेगा . क्या नारी खुद को पश्चिमी संस्कृति में नही ढाल रही है . एसा बदलाव किस हद तक जायज़ है किसी भाई से उसकी बहन का छीन  जाना माँ का छीन  जाना . इस देश में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है लेकिन बदलती नारी रिश्तो को भी बदल रही है . हम, हमारा देश अपनी सभ्यता और संस्कृति से ही महान होता है . अगर नारी पुरुष या किसी भी भारतीय नागरिक में इनमे से एक भी चीज़  की कमी होगी तो कैसे होगा हमारा देश महान . हम  भी दुसरे  की कतार में खड़े हो जायेंगे

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

. अब इन मच्छरों को मगरमच्छ बनने से पहले ही बेगोन मच्छर मार पिला देना होगा

क्या आपको कभी मच्छर काटा है ? क्या काटा है जी सभी को काटा होगा . लेकिन कोई रात एसी भी बीती है आपकी जिसमे मच्छरो ने आपको और बच्चो को सोने ही नही दिया हो . कोई रात तो एसी बीती ही होगी . चलिए ये तो हुई मच्छरों की बात अगली रात तक मच्छर मार इंतजाम कर लिया होगा नही तो मच्छर भाग . लेकिन आज एक और मच्छर हमें काट रहा है केवल मुझे नही हम सभी को पूरे देश को . वह मच्छर साधारण नही है उसके डंक मारने से आदमी ओरत बच्चे या बूढ़े उठते नही अपितु उठ जाते है . अरे नही डेंगू मच्छर नही . वह मच्छर है आतंकवाद का . पता नही कहा से घुस जाता है कैसे फैलता है . अभी दो दिन पहले ही उसने लाल चोक श्री नगर में अपने विष से कई आर्मी के जवानों पर हमला किया है . इस मच्छर को गुड नाईट या मोर्तिन से नही मारा जा सकता . न ही यह मच्छर गोबर के गोसे के धुए से भागता है .अगर कुछ किया नही गया तो गली के हर कोने में मच्छरों की भरमार होगी कोई नही बचेगा . इन्ही मच्छरों ने पूरे देश को नपुंसक बना दिया था आज भी देशवासियों की आंखे नम हो जाती है उस घटना को याद कर . याद आया ताज, ओबेराय . अब इन मच्छरों को मगरमच्छ बनने से पहले ही बेगोन मच्छर मार पिला देना होगा . एक मिशन शरू करना होगा नही तो यह प्रजाति फ़ैल जाएगी .


भारत को भी अमेरिकी तर्ज़ पर पहल करनी होगी कब तब आतंकवादी मच्छर भारत का खून पीते रहेंगे . कब तक भारत को आर्थिक दृष्टि पर कमज़ोर करते रहेंगे . कब तक हमारी ही जमीन में घुसकर हमे मारते रहेंगे . भारत कभी भी कमज़ोर नही रहा लेकिन हम रक्षात्मक रवैया रखते है अब दुश्मन सीमा पर नही घर में घुस रहा है हमे भी उनके घर में घुस क्र मरना होगा उसे . पाकिस्तान की पिस्सू जैसी हरकते नही सहनी भारत को .

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

अब समय की मांग है सनातम धर्म का प्रचार किया जाये .

कुछ लोग साधुओ को भोतिक वाद होते अप्रसन्न है . उन्हें लगता है भोतिक्तावाद में खोकर साधू अपना धर्म कर्तव्य भूल जाते है .वे सभी विदेशो  के दोरो पर ख़ुद को उलझा लेते है . इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है लेकिन यह पूर्णतय सत्य नही . अगर साधू संत भोतिक्वादी न हो और सभी प्राचीन साधू संतो की तरह ३० ३० सालो तक तप करे वे सिधिया तो पा सकते है लेकिन अपने धर्म का परचार नही कर सकते . श्री श्री हो या बाबा रामदेव भारत की संस्कृति का विदेशो में भी विस्तार करने को प्रयासरत है . आसाराम बापू , मुरारी बापू सभी विदेशी धरती पर सनातम धर्म को प्रचारित करने को प्रयासरत है .इसमें हमे कामयाबी दिलाने में  ओशो महाराज और बाबा रामदेव ने कुछ हद्द तक सफल हुए है . पश्चिमी देशो में सनातम  धर्म का सम्मान बढ़ सकता है . लेकिन शिकायत कुछ लोगो को रहती है . अगर भोतिक्तावाद के ही जरिये हमारी संस्कृति का परचार होता है  तो इसमें कोन सी बुराई है . अब समय की मांग है सनातम धर्म का प्रचार किया जाये . मुगलों और अंग्रेजो की गुलामी के समय हमारी संस्कृति को खिन्न भिन्न करने का जो दुश्चक्र रचा गया उस दुश्चक्र को तोड़ने के लिए मीडिया भी एक अच्छा जरिया है . अब समय है अपने स्वाभिमान को दुनिया के सामने विश्वगुरु बनाने का . हम अब तक अंग्रेजी ज्ञान पढ़ते रहे लेकिन अब सनातम धर्म का पाठ पढ़ने में क्या बुराई है . अगर योग के जरिये ॐ के सभी दीवाने हो रहे है भारतीयों का इस्ससे बढ़कर क्या सम्मान की बात होगी अगर ओशो महाराज के जरिये ध्यान को एक पहचान विदेशो में मिली भारतीयता के मज़बूत होने की तरफ कदम माना जाना चाहिए . आज कुछ लोग गाय के दूध को पतला मानते है लेकिन इन्ही देसी गायो का अमेरिकी ;  दूध पिने को बेताब है . अब दुनिया जान रही है सनातम धर्म की महानता को

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

हम अश्लीलता के भूखे है ?//////

क्या आपको नही लगता हम सेक्स को जरूरत से ज्यादा पसंद करते है . अगर बोलीवूड की फिल्मो को गोर से देखा जाये तो यही कहा जाएगा . कुछेक फिल्मो  को छोड़ कर लगभग सभी फिल्मो में अश्लीलता का मसाला डाला जा रहा है .कहानी  नही भी हो तो भी एसी फिल्मो से कम से कम हमारे देश में नुकसान तो नही होता . लेकिन इसका एक कारण यह भी हो सकता है भारतीय दर्शक कहानी कम और अश्लीलता ज्यादा पसंद करने लगे है . लेकिन एसी फिल्मे जो सीधी  सादी और दमदार कहानी बिना कोई अश्लीलता  के हो वह भी कामयाबी पाती है .जैसे  'लगान 'रंग दे बसंती , लिजेंड आफ भगत सिंग , तारे जमी पर  , गुरु . और एक छाप छोड़ देती है  भारतीय जनमानस पर देशभक्ति का जैसे लक्ष्य , ने जोश भर दिया था युवाओ में आर्मी ज्वाइन करने के लिए . लेकिन फिर भी सेक्स का तड़का क्यों लगाया जा रहा है क्यों भारतीयों को मजबूर किया जा रहा है एसी फिल्मो को देखने के लिए . या फिर आज का निर्माता देश के युवाओ और बच्चो का भविष्य ताक पर रखकर केवल मुनाफा चाहता है . कैसा बदलाव है ये इतनी अश्लीलता तो अब होलीवूड की फिल्मो में भी नही होती . भारतीय किसी भी फिल्म या नाटक को बहुत ही गंभीरता से लेते है ये सब हुआ भी है ब्लैक और तारे जमी को देखकर कई दर्शको की आंख छलक आई  थी . लेकिन अश्लील फिल्मे भारतीयों को सेक्स  के प्रति भूखा भेड़िया बना सकती है .

हिन्दुओ के महान गुरु गोबिंद सिंग जी

हिन्दुओ के महान गुरु गोबिंद  सिंग जी की  kurbaaniyaa   समस्त   सनात्म्धर्मि  कभी नही भूल पाएंगे .उस समय औरंगजेब जैसा जालिम बादशाह दिल्ली के तख्त पर बैठा हुआ था। उसके आतंक से लोगों को राहत देने के लिए तथा हिंदू धर्म की रक्षा के लिए जिस महान पुरुष ने अपने शीष की कुरबानी दी, ऐसे सिक्खों के नवें गुरु गुरु तेग बहादुर के घर में सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। सनात्म्धर्मियो की रक्षा के लिए ही उन्होंने अपने पुत्रो और ख़ुद की क़ुरबानी दी . उन्होंने सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरो दिया जिससे सभी में जोश भर गया .युद्ध को शत्रियो  तक सिमित न रखकर सभी तबको को शामिल किया .
सभी देशवासियों को गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मुबारक शुभकामनाये .
जय बाबा मुंगीपा . जय श्री राम

सोमवार, 4 जनवरी 2010

एक मीठा सा एहसास जो तोड़ देता है नफरत की सीमाओ को

संगीत छु लेता है तार दिलो के .एक मीठा सा एहसास जो तोड़ देता है नफरत की सीमाओ को . संगीत अगर सही दिशा में जाये तो भारतीयता को विकसित भी कर सकता है यही एक माध्यम है जो हिंदी को विदेशो में भी लोकप्रिय बना सकता है .इसके उदाहरण भी है आर रहमान का गया वन्दे मातरम हो या जय हो ये एसे गाने है जो भारतीयता को दर्शाते है . इसमें रोजगार भी अच्छा खासा है और युवाओ में भी इसे लेकर दिलचस्पी है .लेकिन कुछ खामिया भी है टच मी , और ' तेरी शोक अदाए ' जैसे गाने डिजे पर तो चल जाते है लेकिन वह कोई गंभीर छाप नही छोड़ पाते . जैसे ८० के दशक के आस पास के गाने अब भी जुबा पर है कोई होता ' जिसको हम अपना , मेरा जीवन , पत्थर के सनम , अ  मेरे वतन के लोगो  ' इन गानों मी एक प्योरिटी होती थी लेकिन आजकल कुछ गाने galafaadu होते है . अछे गाने अब भी बनते है जैसे मंगल मंगल , लेकिन ' कभी मेरे साथ कोई रात ' जैसे गाने फूहड़ता दिखाते है .धार्मिक गाने भी अब पहले जैसे नही बन पा रहे है पहले ' शिव शंकर को जिसने पूजा , रम गयी माँ मेरे रोम रोम में , भेजा है बुलावा , रघुपति राघव , अ मालिक तेरे बन्दे हम , रखता हूँ हर पल ध्यान तुम्हारे चरणों में ये पहले के भजन है लेकिन आजकल फ़िल्मी गानों की अकाल पर ही धार्मिक भजन बनते है . कुछ बाते एसी है जिसे हम अपनी अंग्रेजी मानसिकता की वजह से खो देते है . आज का कोई भी गाना एसा नही जो हमे २० साल बाद भी याद रहे

रविवार, 3 जनवरी 2010

आज कुछ घरेलू नुस्खे

आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है . न ही कोई हानी और अत्यंत लाभकारी . आयुर्वेद की रचना सवयम ब्रह्मा जी ने की उन्होंने ब्रह्म्साहित की रचना की लेकिन यह अब बजार में उपलब्ध नही है . चरक और च्यवन ऋषि ने आयुर्वेद में कई खोज की .

जीरा
 जीरा पाचक और सुगंधित मसाला है। भोजन में अरुचि, पेट फूलना, अपच आदि को दूर करने में जीरा विश्वसनीय औषधि है। भुने हुए जीरे को लगातार सूँघने से जुकाम की छीकें आना बंद हो जाती है। प्रसूति के पश्चात जीरे के सेवन से गर्भाशय की सफाई हो जाती है। जीरा गरम प्रकृति का होता है अत: इसके अधिक सेवन से उल्टी भी हो सकती है। जीरा कृमिनाशक है और ज्वरनिवारक भी। जीरे को उबाल कर उस पानी से स्नान करने से खुजली मिटती है। बवासीर में मिश्री के साथ सेवन करने से शांति मिलती है। जीरे व नमक को पीसकर घी व शहद में मिलाकर थोड़ा गर्म करके बिच्छू के डंक पर लगाने से विष उतर जाता है। जीरे का चूर्ण 4 से 6 ग्राम दही में मिलाकर खाने से अतिसार मिटता है।

अदरक

 अदरक का सूखा हुआ रूप सौंठ होता है। इस सौंठ को पीस कर पानी में खूब देर तक उबालें। जब एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन गुनगुना होने पर दिन में तीन बार करें। तुरंत फायदा होगा। काली मिर्च, हरड़े का चूर्ण, अडूसा तथा पिप्पली का काढ़ा बना कर दिन में दो बार लेने से खाँसी दूर होती है। हींग, काली मिर्च और नागरमोथा को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन भोजन के बाद दो गोलियों का सेवन करें। खाँसी दूर होगी। कफ खुलेगा। पानी में नमक, हल्द‍ी, लौंग और तुलसी पत्ते उबालें। इस पानी को छानकर रात को सोते समय गुनगुना पिएँ। सुबह खाँसी में असर दिखाई देगा। नियमित सेवन से 7 दिनों के अंदर खाँसी का नामोनिशान नहीं रहेगा।



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शनिवार, 2 जनवरी 2010

बदला बदला सा सब कुछ यहा

    नया नया सा दीखता सब कुछ यहाँ
  अब वह खेत नही खलिहान नही
न ही वह जोहड़ गाय भैंस  पीती थी पानी जहा                             
  बदला बदला सा सब कुछ यहा

     नही घरो में बनती अब देसी घी की चुरिया
     न ही घरो में सुनती दादी माँ की कहानियाँ
     नही  लगती वे चोपाले  जहाँ  लगते थे कभी ठहाके
ताऊ चाचा न  कोई हो गये अब सभी सर हमारे
     बदला बदला सा सब कुछ यहा

     नही सजती वो महफ़िल दोस्तों की
    नही लगते वे मेले जिनमे हम थे कभी खेले
   कुश्ती कब्बडी से अब है दूरिया
  एक गेंद के पीछे पड़े है ग्यारह यहाँ
    बदला बदला सा सब कुछ यहा    

नही जलता अब साँझा   चूल्हा
अब मै  हूँ और मेरी तन्हाईया
   अब मै   हूँ और मेरी तन्हाईया
नया नया सा दीखता सब कुछ यहाँ

हमने खुदी अपनी पहचान मिटा दी

खो गयी कहा
बची किसमे है  यहाँ
इमानदार है कहा 
देशभक्त कोन है यहाँ
                             बईमान ९० मिल जायंगे यहाँ
                            पर है इमान नही बचा यहा
                            सच को तलाशती है नज़रे तेरी
                           पर सच्चा कोन बचा यहाँ
     सफ़ेद कुर्तो में भी झूठ
    कालो में भी झूठ
     बिक गया हर कोई
     देशभक्त रहा कहा    
                                          कोन करता है अब तप
                                          कोन लेता है समाधी
                                          कोन यहाँ है ज्ञानी
                                          हमने खुदी अपनी पहचान मिटा दी
                                                                    

कडवी सच्चाई भारत की

कई बार यह सवाल मान में उठता है सल्म्डोग क्यों बनी . क्यों विश्व में भारत की एसी छवि उकेरी गयी . क्यों भारत हमेशा लुटता रहता है . क्यों टुकड़े टुकड़े होता है . इन सवालों के जवाब खोजने के लिए सम्पूर्ण भारत भूमि का इतिहास जानने का मन करता है .लेकिन दुःख इस बात का कैसे भारत दर्शन किया जाये जो टुकड़े भारत के किये गये वहा तो आतंक की फसल बोई जाती है . अगर उन वर्तमान के टुकडो को छोड़ भी दिया जाये जिसे हम अखंड भारत कहते है वह कितना अखंड है . मैंने सोचा क्यों न मै डेल्ही महाराष्ट्र की बात करू . तस्वीर मन में बनाई सबसे पहले महाराष्ट्र की तस्वीर में बिलकुल साफ था लोग एक दुसरे की पिटाई कर रहे थे . उत्तर भारतीयों को बर्बरता पूर्ण पिटा जा रहा था . और कोई भी परदेश एसा नही था जहा जातिवाद पर लड़ाई नही हो . किसी शहर में लोग भूखे मर रहे थे . लेकिन जब मै किसी धार्मिक स्थल की तरफ ध्यान देता हूँ तो मुझे आश्चर्य होता है . जिस देश में किसी किसी के पास १ वक्त का खाना भी नही है उसी देश में केवल १ व्यक्ति के नाम पर ट्रस्ट और धर्म्शालाये है करोड़ो रुपयों की . फिर मुझे लगा यह देश गरीब नही . मधु कोड़ा जैसो के पास ४ हजार करोड़ रुपया कहा है गरीबी . लेकिन तस्वीर बिलकुल साफ होती जाती है देश के टूटने का कारण तुरंत ही समझ आ जाता है . वही कारण आपके सामने पर्स्तूत .गरीबी फैलने का कारण भारतीयों का ख़ुद को ज्यादा बड़ा साबित करना जैसे ध्र्म्शालाये बनवाना करोड़ो रुपयों की लेकिन इनसे भला किसका होता है इनमे से कुछ पैसा भी गरीबी मिटाने में लगाया जाये तो भारत में झोपड़ पट्टी नही पक्के घर होंगे .इस गरीबी से ही बनती है सल्म्डोग .कुछ पैसा धर्म के परचार पर भी लगाया जाये जिससे धर्म को जान सके सभी लोग चाहे वह किसी भी देश के हो . हमारे धर्म ने हमे भूखे को खाना देने और चिड़िया को दाना देने का सन्देश दिया है .लेकिन बहुत से लोग भूखो को खाना देने की जगह अपने ख़ानदान का नाम चलाने के लिए ध्र्म्शालाये बनवाते है . और अधर्म के खिलाफ लड़ने की शिक्षा दी लेकिन राजा महाराजा कुछेक अपनी पर्ज़ा की रक्षा का धर्म न निभाकर अंग्रेजो के साथ मिल गये .अगर सभी राजा महाराज महाराणा प्रताप की तरह लड़ते देश बहुत जल्दी आजाद हो जाता और न ही टुकड़े टुकड़े होता . कडवी सच्चाई भारत की . दूसरा शेत्र्वाद की लड़ाई यहा से भारतीयों को एक दुसरे के दिलो से निकाला जाता है . और जाती भावना जो समाज को समाज से काटती है और कर देती है भारत के टुकड़े .

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

हिंदी की खाकर हिंदी को बोलने से भी जी चुराया जा रहा है

कल सभी ने टीवी देखा होगा . ओह टीवी तो रोज़ ही देखते होंगे . लेकिन मैंने कल टीवी में कुछ और देखा . अरे नही आप सोच रहे होंगे एसा क्या देखा . चलिए अब शुरू करते है हिंदी रेडियो . कल सभी टीवी से चिपककर   बैठे रहे मै भी . गाने बाज़ रहे थे बड़े बड़े आपके हमारे कलाकार भी बैठे थे अपन अपना पारफोर्मन्से दे रहे थे . गानों और नाचने तक तो सब कुछ अच्छा लगा . लेकिन जब कलाकार मंच पर myke   हाथ में लेते  तो पता नही  क्या हो जाता उन्हें . पता नही क्या बोल रहे थे वो क्या है न अंग्रेजी में बोल रहे थे . लेकिन उनकी बात को महानगरो को छोड़ दिया जाये तो और शहरो में कितने लोगो ने समझा होगा . कलाकार एक्टर सभी खाते हिंदी की है लेकिन असल जिंदगी में हिंदी से इतनी दूरिया क्यों . जैसे कोई भी फिल्म हिंदी में बनी हो तो वह पूरे देश में लोकप्रिय हो जाती है . लेकिन अगर आप उस फिल्म को अंग्रेजी में बना दीजिये वह केवल महानगरो तक ही सिमित रहेगी और महानगरो में भी ४० % लोग ही अंग्रेजी जानते है . ये सभी निर्माता या निर्देशक हो या एक्टर सभी अछि तरह जानते है . अब हिंदी में फिल्म बनाकर करोड़ो रूपए कमाते है तो क्या थोडा सा नमक भी अदा नही कर सकते . अमिताभ बच्चन जी से सिख लेनी चाहिए . हिंदी भाषियों ने इन्हें सम्मान दिया हिंदी से बोलीवूड बना और उसी नीव पर खड़ा है लेकिन जब देखते है हिंदी की खाकर हिंदी को बोलने से भी जी चुराया जा रहा है तो नफरत होती है . इन्हें हिंदी सिनेमा के कलाकार कहते वक़्त