शनिवार, 30 जनवरी 2010
क्या कोई हरिजन का लड़का ब्राहमण नही हो सकता
अगर कोई ब्राह्मण है और उसका बेटा व्यापारी तो उसे किस दृष्टि से ब्राह्मण कहा जाये . जब उसे कर्मकांडो और वेद , शास्त्र , गीता , पुराण का ज्ञान ही नही तो उसे किस तरह ब्राहमण कहा जा सकता है क्या उसे पंडित जी कह सकते है . या सही होगा उसे पंडित कहना ठीक इसी तरह किसी हरिजन का लड़का वेदों का कर्मकाण्डो का ज्ञान रखता है . उसे हरिजन कैसे कहा जा सकता है. उसे अधिकार क्यों नही ब्राहमण कहने का जब की उसे ज्ञान है . भगवान ने मनुष्य को कर्म करने के लिए धरती प़र भेजा है उसे अपना भविष्य बनाने के लिए दान धर्म करने के लिए पृथ्वी प़र भेजा है . कर्मानुसार वर्गो में शामिल होने का हक़ दिया है अगर किसी हरिजन का लड़का पवित्र रहता हुआ और सभी तरह के ज्ञान के बावजूद भी ब्राह्मण नही हो सकता यह मनुष्य की मनमानी करने जैसा है . कोई भी मनुष्य जन्म से महान नही होता तो जन्म से ही ब्राहमण या क्षत्रिय या शुद्र , वैश्य कैसे हो सकता है . जब से जातीय बनी है भारत कमजोर हो रहा है और धर्म परिवर्तन की समस्या से जूझने का भी कारण यही है . हम वर्ग व्यवस्था को भुलाकर जाती व्यवस्था में जब से आये है तभी से हम उलझते ही जा रहे है . भेद भाव बढ़ रहा है दबंगी बढ़ रही है और जो शुद्र है वह दबता ही जा रहा है . छोटा व्यापारी दब रहा है . और भारतीय विद्या से भारतीयों का कटाव हो रहा है अंग्रेजी बढ़ने का भी कारण यही है . अगर यह अधिकार दे दिया जाये तो वेद शास्त्रों गीता , और पुराणो की हर घर तक पहुच होगी
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aap bilkul sahi kah rahe hai par bhartiy iss bat ko samjhe tabhi to ek leek bna di gyi hai jnm se jati ki sabhi usi par dor rahe hai kisi insan ke andar saskar nhi hai to use brahmn kaise kha jaye
जवाब देंहटाएंब्राहमण का अर्थ ही यह है कि जिसके कर्म अच्छे हो ! मेरा तो यह मानना है कि एक जो अगर दलित है मगर साफ़ सुथरा रहता है, और एक जो ब्राह्मण है मगर शौच के बाद हाथ भी ढंग से नहीं धोता, तो मैं तो हमेशा ही उस दलित के हाथ का परोसा ही पसंद करूंगा !
जवाब देंहटाएंइस जाती प्रथा के कारण ही हम बहु संख्यक यथार्थ में अल्पसंख्यक हैं ,सैकड़ों साल गुलाम रहे और आज भी ज़ज़िया दे रहे हैं । व्यास और बाल्मीकि जैसे महारिशी ही हमारे आदर्श हैं और रहेंगे।
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से इंसान ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कहलाता है। वह बनाया नहीं जाता। यह अलग बात है कि ब्राह्मण हो कर भी बहुतों के कर्म पशुओं से भी गये गुजरे होते हैं। परन्तु पंड़ित कोई भी अपनी विद्या से तथा कर्मों से बन सकता है। रही स्वच्छता की बात तो वह तो एक गुण है जो सभी को अपनाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया मुद्दा उठाया है आपने ,
जवाब देंहटाएंभारतीय वर्ण व्यस्था मैं जाती की विभाजन कर्म के आधार पर हुआ है, अगर एक ब्राहमण का बेटा अपने कर्तब्यों का पालन नहीं करता है तो इसका मतलब ये नहीं की वो ब्राहमण नहीं है, है मगर सिर्फ जाती का या सिर्फ नाम का किसी काम का नहीं। और अगर एक हरिजन या किसी और निचले तबके का बेटा विद्वान है सभी वेदों का ज्ञाता है तो वो जरुर इस का हक़दार है।
जब वर्ण व्यस्था बनाई गई थी तब के समाज मैं और अब के आधुनिक समाज मैं जमीन और असमान का फर्क है, आज राजपूत या ब्राहमण का बेटा किसी कार्यालय के बाहर चौकीदारी करता है तो किसी हरिजन का बेटा इंजिनियर या और किसी बड़े पद पर काम करता है।
जरुरत है तो सिर्फ अपनी सोच बदलने की
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जवाब देंहटाएंब्राम्हण वह होता है जो ब्रह्म को तत्त्व से जानता हो. जिसे ज्ञान का व्यसन हो. यह सही है कि मनुष्य की जाति जन्म से बना दी गयी है परन्तु आगे जाकर अपने परिश्रम से उसमे परिवर्तन लाया जा सकता है. महर्षि विश्वामित्र का उदाहरण सबके सामने है.
जवाब देंहटाएंहा हा हा अगर ब्राम्हण शुद्रो को भी वेदों का ज्ञान अर्जन करने की स्वतंत्रता दे देते तो शायद ब्राम्हणवाद ही खत्म हो जाता,,महोदय वर्ण व्यवस्था एक सोची समझी साजिश है जिसके तहत ब्राम्हण सालो से शासन करते आये है शुद्रो पे....अगर इस वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति वाकई में समाज को व्यवस्थित करने के लिए होती तो इसका स्वरुप कभी नहीं बिगड़ता,इसका स्वरूप पहले भी वही था और आज भी वही है,सिर्फ ५० साल से कुछ कमज़ोर हुई है.....और आप सोचते है वेदों को पड़ने से कोई विद्वान् हो जाता है तो ज़रा आप ऋग्वेद उठा कर देखिये,बिलकुल मुर्खता पूर्ण बाते लिखी है उसमे,उसमे सिर्फ इन्द्र से यही प्राथना की गई है की कृपया हमारे खेतो में अधिक अनाज उगे और सत्रु के खेत में आकाल पड़े,हमारे गायो के थन से अधिक मात्र में दूध निकले और सत्रु के गायों के थन में दूध न आवे...पूरा ऋग्वेद हिंसा से भरा हुआ है,इन्द्र से सिर्फ यही प्राथना की गई है हमारे सत्रुओ के किलो को नस्ट करे......इस तरह की बचकानी बाते है ऋग्वेद में और लोग बाते करते है मोक्ष की ,अध्यात्म की....मुझे तो कभी कभी हंसी आती है की इसे पड़ कर कोई विद्वान् कैसे हो सकता है...शायद यही कारन है की भारत अभी तक तरक्की नहीं कर प् रहा है.....और मैं आपको बता दू की किसी भी शुद्र को ब्राम्हण बनने की कोई जरुरत नहीं है ब्राम्हण कोई पदवी नहीं है सिर्फ शुद्रो पे शासन करने का रास्ता है.......आप जिस सवाल का जवाब चाहते है उसके लिए आपको इतिहास में ५००० साल पहले जाना होगा,तभी जाकर आप समझेंगे की हरिजन का लड़का विद्वान् होने के बावजूद भी वो विद्वान् नहीं कहा जाता....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंvalmiki ji or vismamitr, dono hi janmjaat bharman nahi the par unke karmo ne une bharman kahalaya. jo acchche karm karta hai wo bharman hai, dalit kya hai jo aghani hai anpar hai wo dalit hai, agar koi yogya hai to wo dalit nahi hai, exp bhagvan valmiki( jinhote bhagvan shriram ka parichay duniya se karwaya, ya mahan samrat chandgupta morya (jo ek bharman visnugupt ki khoj tha)asa oonch nich to hamesha rahi hai, or her dharm mai hai, kahi gore or kale ko likar to kahi shiya or sunni ko lekar , kahi arab ka naam lekar,par ye hindu dharm ki khubi hai ki hamare under koi kami aati hai, to koi mahan aadmi aakar us burai ko khatm karte hai exp sati pratha, vidva vivah,bal vivah,ab ye hamare hath par hai ki ham bas burai kare ya aage barkar us burai ko khatm kare, jai hiad, jai bharat.
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