गुरुवार, 31 दिसंबर 2009
कारण जो भी हो लेकिन बड़ी भयानक होती है गरीबी
गरीबी बहुत ही भयानक सच है जिंदगी का . और एक जहर की तरह होती है गरीबी वो जहर जो न तो मरने देता है और न ही जीने . परिस्थिया एसी बन जाती है की इन्सान न चाहकर भी कुछ एसा करने को मजबूर हो जाता है जो किसी भी इन्सान के उसूलो के खिलाफ हो . क्यों आती है गरीबी क्या पिछले जन्मो के पापो से या फिर अनपढ़ता कारण है इसका . कारण जो भी हो लेकिन बड़ी भयानक होती है गरीबी . कल रात कलर्स पर एक सेरियल देखा तब से मुझे भोत देर नींद नही आई . सोचता रहा एक तरफ तो हम लोगो में से ही बहुत से लोग केवल नाम के लिए करोड़ो रुपयों से dharmshalaye बनवाते है .और उन्ही के ही भाई बंधुओ के घर पर बहन बेटियों को इज्ज़त तक का सोदा करना पड़ रहा है . यह सच्चाई भारत की है लेकिन कड़वी भी और सच्ची भी .नक्कू शाहा के साथ भी एसा है कुछ हो रहा है . एसे सीरियल हर आम खास की आंख खोल देते है लेकिन कुछ लोग इसे एक नाटक की तरह लेते है और कुछ लोग १ मिनट आसूं बहा के फ़र्ज़ निभा देते है . इस देश में किसी के पास १०० . १०० एकड़ जमीन है और किसी के पास एक वक्त की रोटी के लाले . जब भी हम किसी गाड़ी या बस पर सफ़र कर रहे होते है भिखारी या झोपडियों को देखकर अपने सिस्टम को कोसते है . लेकिन ख़ुद के अन्दर झांक कर कोई नही देखता . जाती के नाम पर बहुत से संगठन बन जाते है लेकिन गरीबी को मिटाने या किसी गरीब को सहारा देने के लिए कुछ नही है हमारे पास . इतनी गरीबी न तो कोई एक आदमी मिटा सकता है और न ही कोई एक सरकार . अब पहल कोन करे . आज नया साल है रात में ही मेरे कसबे के कई युवा चंडीगढ़ कोई गोवा और कोई .लेकिन मेरे ही कसबे में कुछ लोग एसे भी होंगे जिनके लिए आज भी वही शुक्रवार है . कारण जिंदगी से संघर्ष बाहरी दुनिया की किसे खबर कारण गरीबी . लेकिन बनाओ धर्म्शालाये मनाओ ; हैप्पी न्यू इयर '
इस नव वर्ष पर संकल्प ले भारत को मज़बूत करने का
इस नव वर्ष पर संकल्प ले भारत को मज़बूत करने का . वह संकल्प बिना मोमबत्ती जगाये और बिना आसूं बहाए भी लिया जा सकता है . इसे लेने के लिए बस देशभक्ति होना जरूरी है . न ही लाठियों की आवश्यकता है और न ही किसी हथियार की जरूरत है तो केवल इच्छाशक्ति की . नये साल का जश्न हर बार नाच गाकर तो कटे ही होंगे लेकिन इस बार कुछ न्य कीजिये जिससे केवल आपके ग्रुप के मित्र दोस्त ही नही हर भारतीय भारतीय से जुड़े . संकल्प लीजिये की हम कभी भी किसी भी शेत्र से व्यापर करने आए किसी व्यक्ति या उसके परिवार से न ही सोतेला व्यव्हार करेंगे और न ही किसी और को उससे कुछ भी गलत करने देंगे . संकल्प लीजिये अपनी जाती से न तो किसी पर दबाव बनायेंगे और न ही अपनी जाती की गाथा को गायेंगे .
- और आप में से कोई भी किसी की भी जात पूछने को उत्साहित न हो
- और न ही खुद की जात बताने को
- और अगर आप विदेश में जाते है तो वहा भी सबसे पहले भारतीय ही कहे खुद को
- अपने बच्चो को भी यही सन्देश दे उन्हें उंच नीच का पाठ न पढाये
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
देश के नागरिक ही देश की जड़ो को खोखला कर देते है .
आज कल नोजवानो के शोक बदल गये है . वह अपने कर्तव्य से भटक रहे है सच बात तो यह है हर भारतीय अपने कर्तव्य से भटक रहा है . युवाओ के शोक नई मोटर bike और मोबाइल महंगे कपड़ो और ज्यादा पैसो वाली नोकरी तक ही सिमित है . वह जीवन भर अपने आपको साधन संपन्न करने पर ही बल देता है .और सम्पूर्ण लाइफ को मनोरंजन तक ही सिमित रखता है . आज का युवा इतना स्वार्थी होता जा रहा है की उसे देश के प्रति कर्तव्य नजर नही आता . अपनी पर्सनैलिटी और पैसो की और आकर्षण रहता है .
साम दंड भेद किसी भी तरीके से केवल रुपया . किसी भी भारतीय में रुपया कमाने की चाहत अधिक हो रही है और चाहत में लोग अपने उसूलो से भी समझोता कर लेते है . भारत में लोग बहुत जल्दी बिक जाते है अगर एसा नही होता तो क्या भारत गुलाम होता . वही चाहत आज भी है ख़ुद के स्वार्थ साधने की इसके लिए चाहे देश को कितनी भी हानी हो . लेकिन हार इन्सान आमिर बनना चाहता है . ख़ुद को विकसित तो करना चाहता है लेकिन दुसरो के घरो में बारूद लगाकर . जहा इस देश में देश के लिए देश के लोगो के लिए क़ुरबानी देने वाले लोग हुए है वही हमारे ही देश में इसी देश में ख़ुद के निजी स्वार्थो के लिए देश को ताक पर रखने वाले लोग भी हुए है . लेकिन वर्तमान में स्वार्थी लोगो की जनसँख्या बढ़ रही है और देशभक्तों की संख्या घट रही है . और यही से भारत कमजोर हो जाता है देश के नागरिक ही देश की जड़ो को खोखला कर देते है . बढ़ रहा भर्ष्टाचार भी पैसे की भूख और निजी स्वार्थ के कारण ही फ़ैल रहा है .
साम दंड भेद किसी भी तरीके से केवल रुपया . किसी भी भारतीय में रुपया कमाने की चाहत अधिक हो रही है और चाहत में लोग अपने उसूलो से भी समझोता कर लेते है . भारत में लोग बहुत जल्दी बिक जाते है अगर एसा नही होता तो क्या भारत गुलाम होता . वही चाहत आज भी है ख़ुद के स्वार्थ साधने की इसके लिए चाहे देश को कितनी भी हानी हो . लेकिन हार इन्सान आमिर बनना चाहता है . ख़ुद को विकसित तो करना चाहता है लेकिन दुसरो के घरो में बारूद लगाकर . जहा इस देश में देश के लिए देश के लोगो के लिए क़ुरबानी देने वाले लोग हुए है वही हमारे ही देश में इसी देश में ख़ुद के निजी स्वार्थो के लिए देश को ताक पर रखने वाले लोग भी हुए है . लेकिन वर्तमान में स्वार्थी लोगो की जनसँख्या बढ़ रही है और देशभक्तों की संख्या घट रही है . और यही से भारत कमजोर हो जाता है देश के नागरिक ही देश की जड़ो को खोखला कर देते है . बढ़ रहा भर्ष्टाचार भी पैसे की भूख और निजी स्वार्थ के कारण ही फ़ैल रहा है .
रविवार, 27 दिसंबर 2009
भारत में चुनाव होते है
भारत में चुनाव होते है यह सभी जानते है . लेकिन चुनावो में उम्मीदवार की जीत के पीछे छुपी होती है कई
कहानिया . एसी सच्ची कहानिया जो चुनावो को एक आन या शान की बात बना देती है . एक पूरी जाती के सम्मान की बात बना देती है .जातीय सम्मिकरण ही हार जीत का चुनाव करते है .भारतीयों में जाती को महानता के सत्र पर ले जाने का जज्बा दिनों दिन बढ़ रहा है . कोई भी उम्मीदवार कितना भी समझदार या जनता के सुख दुःख में काम आने वाला क्यों न हो उसकी जीत का दावा तब तक नही किया जा सकता जब तक जातीय सम्मिकरण उसके पक्ष में न हो .इस कदर भारत में जाती पाती का जहर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है की कोई भी उम्मीदवार अच्छा हो लेकिन जब तक उसके जातीय सम्मिकरण साथ नही है उसका जीतना कठिन होता है .इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा .लेकिन वह उम्मीदवार कोई भी हो चाहे कितने भी आरोप लगे हो उस पर लेकिन होना वोटर की जात का ही चाहिए . इस सोच से ही जाती पाती के जहर को और बढ़ावा मिलता है . बार बार जीतने से नागरिको में आपस की खाई बढती है और इसी कारण दबंग लोग पैदा होते है .
कहानिया . एसी सच्ची कहानिया जो चुनावो को एक आन या शान की बात बना देती है . एक पूरी जाती के सम्मान की बात बना देती है .जातीय सम्मिकरण ही हार जीत का चुनाव करते है .भारतीयों में जाती को महानता के सत्र पर ले जाने का जज्बा दिनों दिन बढ़ रहा है . कोई भी उम्मीदवार कितना भी समझदार या जनता के सुख दुःख में काम आने वाला क्यों न हो उसकी जीत का दावा तब तक नही किया जा सकता जब तक जातीय सम्मिकरण उसके पक्ष में न हो .इस कदर भारत में जाती पाती का जहर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है की कोई भी उम्मीदवार अच्छा हो लेकिन जब तक उसके जातीय सम्मिकरण साथ नही है उसका जीतना कठिन होता है .इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा .लेकिन वह उम्मीदवार कोई भी हो चाहे कितने भी आरोप लगे हो उस पर लेकिन होना वोटर की जात का ही चाहिए . इस सोच से ही जाती पाती के जहर को और बढ़ावा मिलता है . बार बार जीतने से नागरिको में आपस की खाई बढती है और इसी कारण दबंग लोग पैदा होते है .
अपनी ख़ुशी से कोई कम खुश होता है
अपनी ख़ुशी से कोई कम खुश होता है
दुसरो की ख़ुशी से उसे गम होता है
दर्द जब होता है उसका मर्ज़ नही होता है
जब दुसरो को दर्द हो तो वही मर्ज़ होता है
इसे उसकी फितरत कहु या उसकी मजबूती
कभी ताज तो कभी डेल्ही को वो दहलाता है
दोस्त की पीठ तलवार डाल कर जख्म वह दे जाता है
टुकड़े कर के भी वह शांत नही बैठा है
दुसरो की ख़ुशी से उसे गम होता है
दर्द जब होता है उसका मर्ज़ नही होता है
जब दुसरो को दर्द हो तो वही मर्ज़ होता है
इसे उसकी फितरत कहु या उसकी मजबूती
बार बार जख्म हमें देकर वह खुश होता है
घर में आग लगे तो भी वह कही और आग लगाता है
बजाय अपनी आग भुजाने के घर वो किसी और के जलाता है
कभी ताज तो कभी डेल्ही को वो दहलाता है
कभी कश्मीर को वो अपना बताता है
न घर को कभी वह दुश्मनों से बचाता हैदोस्त की पीठ तलवार डाल कर जख्म वह दे जाता है
टुकड़े कर के भी वह शांत नही बैठा है
घर की आग न भुजाकर वो आग यहा लगाता है
अपनी ख़ुशी से कोई कम खुश होता है
दुसरो की ख़ुशी से उसे गम होता
पहली बार कुछ कविता की तरह ब्लॉग पर लिखा है हो सकता है कुछ गलतियाँ हो आप का साथ मिला तो शायद अगली बार इससे अच्छा लिख सकू
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
• गिनीज बुक कैसे बनी?
सन 1951 की बात है। ह्यूज बीवर उन दिनों गिनीज ब्रेवरीज में काम करते थे। एक दिन वे अपने दोस्तों के साथ चिड़ियों का शिकार करने के लिए निकले। युवा शिकारियों का यह दल कुछ समझ पाता इससे पहले ही उनके सामने से चिड़ियाओं का एक झुंड बहुत तेजी से निकल गया। ह्यूज और उनके दोस्त हैरत में पड़ गए कि आखिर ये कौन सी चिड़ियाएँ है थीं जो इतनी तेजी से उड़ती हैं। कुछ का अंदाजा था कि वह बया जैसा कोई पक्षी था जबकि कुछ कह रहे थे कि वह तीतर से मिलती कोई प्रजाति थी। यह तय नहीं हो पाया कि आखिर वे कौन सी चिड़ियाएँ थीं।
ह्यूज ने घर आकर यह पता लगाने के लिए किताबें अलटी-पलटी कि आखिर योरप का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी कौन सा है। कई किताबें उलटने के बाद भी उन्हें अपनी जिज्ञासा का उत्तर नहीं मिला। ह्यूज अपने काम में लगे रहे। 1954 में एक किताब में उन्होंने अपने प्रश्न का उत्तर पाया, यह भी कोई बहुत प्रामाणिक उत्तर नहीं था।
इस पूरी घटना से ह्यूज बीवर के मन में यह बात आई कि कई लोगों के मन में इस तरह के प्रश्न उठते होंगे और उनका उत्तर न मिलने पर इन्हें कितनी निराशा होती होगी। ह्यूज ने यह विचार अपने मित्रों को सुनाया।
मित्र ने उन्हें नोरिस और रॉस मॅक्विटर नाम के दो युवकों से मिलाया। ये दोनों लंदन में एक तथ्यों का पता लगाने वाली एजेंसी के लिए काम करते थे। तीनों ने मिलकर 1955 में पहली गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स निकाली और फिर धीरे-धीरे यह नई किताब लोगों को इतनी पसंद आने लगी कि इसकी प्रतियाँ हर साल बढ़ती गईं।
आज इस रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज करवाने के लिए दुनियाभर के लोग उत्सुक रहते हैं और तरह-तरह के काम करते हैं। ह्यूज एक मुश्किल में पड़े और उससे एक नया रास्ता निकला। याद रहे, हर मुश्किल के पास सिखाने के लिए बहुत कुछ होता है
http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/kidsworld/ajabgajab/ से लिया गया
ह्यूज ने घर आकर यह पता लगाने के लिए किताबें अलटी-पलटी कि आखिर योरप का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी कौन सा है। कई किताबें उलटने के बाद भी उन्हें अपनी जिज्ञासा का उत्तर नहीं मिला। ह्यूज अपने काम में लगे रहे। 1954 में एक किताब में उन्होंने अपने प्रश्न का उत्तर पाया, यह भी कोई बहुत प्रामाणिक उत्तर नहीं था।
इस पूरी घटना से ह्यूज बीवर के मन में यह बात आई कि कई लोगों के मन में इस तरह के प्रश्न उठते होंगे और उनका उत्तर न मिलने पर इन्हें कितनी निराशा होती होगी। ह्यूज ने यह विचार अपने मित्रों को सुनाया।
मित्र ने उन्हें नोरिस और रॉस मॅक्विटर नाम के दो युवकों से मिलाया। ये दोनों लंदन में एक तथ्यों का पता लगाने वाली एजेंसी के लिए काम करते थे। तीनों ने मिलकर 1955 में पहली गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स निकाली और फिर धीरे-धीरे यह नई किताब लोगों को इतनी पसंद आने लगी कि इसकी प्रतियाँ हर साल बढ़ती गईं।
आज इस रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज करवाने के लिए दुनियाभर के लोग उत्सुक रहते हैं और तरह-तरह के काम करते हैं। ह्यूज एक मुश्किल में पड़े और उससे एक नया रास्ता निकला। याद रहे, हर मुश्किल के पास सिखाने के लिए बहुत कुछ होता है
http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/kidsworld/ajabgajab/ से लिया गया
मंगलवार, 22 दिसंबर 2009
भारतीय यहाँ कोन रहेगा ??????
बहुत दिनों से हर आदमी बस यही कहता फिर रहा है मै मराठी हूँ ,पंजाबी , तुम up के भइये हो ,तुम बिहारी हो , मजदूरी करने के लिए जब भी किसी स्टेट का नागरिक किसी दुसरे राज्य में मेहनत करने जाता है तो उसे ये सब सहना पड़ता है . भारत के किसी भी राज्य का नागरिक किसी भी राज्य में न तो आतंक फ़ैलाने जाता है और न ही अपनी जनसँख्या को वह बढाकर उस राज्य के नागरिको को अपना गुलाम बनाने .वह मात्र अपने बीवी बच्चो के लिए रोटी का इंतजाम करने जाता है . लेकिन फिर भी दुसरे राज्य में जाने पर उसे वह सम्मान नही मिल पाता जो एक इन्सान को मिलना चाहिए . भारत का संविधान कहता है कोई भारतीय किसी भी राज्य या शहर गाव में रह सकता है . भारत आज आजाद देश है फिर भी नागरिको को इतनी भी आजादी नही की वह रोजगार के लिए किसी भी शहर अथवा गाव में रह सके . इस तरह की बातो से कई बार राजा महाराजो का जमाना याद आ जाता है जिसे हम या तो टीवी पर या फिर किताबो में पढ़ते आये है . जिस पारकर वह लोग एक दुसरे के राज्यों पर हमला कर जीत लिया करते थे उसी प्रकार यह आज भी जारी है . फर्क केवल इतना है पहले राजा लोग ये सब किया करते थे लेकिन आज प्रजा आम आदमी ये सब कर रहा है . आम आदमी जो की उसी राज्य का है उसकी मानसिकता यह है की उस शेत्र पर केवल उसी का वर्चस्व रहे . और इस आग में घी डालने का कम राज ठाकरे जैसे लोग करते है . अगर इस देश में कोई मराठी कोई पंजाबी,बंगाली ,बिहारी , हरियाणवी हो जाएगा तो भारतीय यहाँ कोन रहेगा . वही जमाना फिर से आजाएगा राजा वाला . एक दुसरे से उलझे रहने वाला .गुलामी वाला . कोई राज्य किसी दुसरे राज्य के नागरिक को निकलेगा तो कोई तीसरे फिर चोथे फिर पांचवे . और फिर कहा होगा भारत . आपस में ही लोग इतने कट्टर होते जा रहे है . की वह देश की तरक्की या ख़ुद की आर्थिक स्थिति को सुधरने की जगह सरकारी इमारतो बसों आदि में आग लगा रहे है . चाहे इस देश का कोई भी इन्सान हो बना तो भारत माता से ही है इसी मिटटी से ही बना है
रविवार, 20 दिसंबर 2009
भारत तो जाती पाती में ही उलझकर रह जाएगा
वर्तमान में भारत के नागरिको में देशभक्ति का आभाव होता जा रहा है . किसी भी शेत्र को लेलिजिये कोई भी राज्य या कोई भी शहर गंभीर मुद्दों या फिर किसी भी प्रकार का राष्ट्रिय मुद्दा हो आप मुश्किल से ५० आदमी नही जुटा सकते . लेकिन आप किसी फिल्म स्टार को बुला लीजिये लाखो लोग एक्त्त्रित हो जायेंगे मात्र एक झलक पाने को . आजकल भारतीय केवल एन्जॉय कर रहे है लाइफ को किसी का भी राष्ट्र की तरफ ध्यान नही है और खासकर युवा तो मोजमस्ती में इतने डूब गये है की १०० में से १ युवा ही होता होगा जो देश की रक्षा के लिए आर्मी ज्वाइन करना चाहता हो . आजका युवा एसी जॉब करना चाहता है जिसमे पैसा और पर्सनैलिटी हो . देशसेवा का जज्बा युवाओं में दिन पर्तिदिन घटता जा रहा है .
और आजकल उन लोगो की जनसँख्या में भी काफी बढ़ोतरी हो रही है जो लोग जाती के नाम पर लाखो एकत्रित हो जाते है एकता में कोई बुराई नही लेकिन . हर इन्सान अपनी जाती का सम्मलेन करेगा तो भारत तो जाती पाती में ही उलझकर रह जाएगा . अब किसी जातीय सम्मलेन में एसा क्या ज्ञान होता है की उसमे वही जाती हिस्सा ले जिसने वह प्रोग्राम किया है . अगर कोई ज्ञान की बात है तो वह सभी में बाटी जा सकती है . जातीय समूहों में देश को बाटने से देश को नुकसान ही हो रहा है . युवाओं का तो जोर एसे सम्मलनों में बढ़ चढ़कर होता है . हम भारतीय एसे जातीय सम्मलेन कर के क्या साबित करना चाहते है .किसके आगे ख़ुद को ऊँचा साबित करना चाहते है या अपने ही लोगो को नीचा ? इससे तो बेहतर युवाओं में नई पीढ़ी में देशभक्ति का संचार करना चाहिए और इसमें सभी का दुसरे शेत्रो को भी निमंत्र्ण देना चाहिए . ताकि भारत के लोग एक दुसरे को जान सके .
और आजकल उन लोगो की जनसँख्या में भी काफी बढ़ोतरी हो रही है जो लोग जाती के नाम पर लाखो एकत्रित हो जाते है एकता में कोई बुराई नही लेकिन . हर इन्सान अपनी जाती का सम्मलेन करेगा तो भारत तो जाती पाती में ही उलझकर रह जाएगा . अब किसी जातीय सम्मलेन में एसा क्या ज्ञान होता है की उसमे वही जाती हिस्सा ले जिसने वह प्रोग्राम किया है . अगर कोई ज्ञान की बात है तो वह सभी में बाटी जा सकती है . जातीय समूहों में देश को बाटने से देश को नुकसान ही हो रहा है . युवाओं का तो जोर एसे सम्मलनों में बढ़ चढ़कर होता है . हम भारतीय एसे जातीय सम्मलेन कर के क्या साबित करना चाहते है .किसके आगे ख़ुद को ऊँचा साबित करना चाहते है या अपने ही लोगो को नीचा ? इससे तो बेहतर युवाओं में नई पीढ़ी में देशभक्ति का संचार करना चाहिए और इसमें सभी का दुसरे शेत्रो को भी निमंत्र्ण देना चाहिए . ताकि भारत के लोग एक दुसरे को जान सके .
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009
किसकी जात महान ?????????
बचपन से आज तक सुनता आया हूँ मेरा देश महान . और मानता भी आया हूँ महाराणा प्रताप , मंगल पांडे , झाँसी की रानी , भगत सिंह , मदन लाल धींगरा , वीर हकीक़त राय सभी की महानता को सविकारा और शहीदों और ऋषि मुनियों ने भारत को महान बनाया .दुनिया से अलग एक शांति और धर्म पर चलने का सन्देश दिया लेकिन अधर्म के खिलाफ लड़ने की शिक्षा भी दी . इन्ही की प्रेरणा पर भारतीय चलते आये है . लेकिन कुछ सालो से भारतीयों को एक रोग हो गया है वह रोग है जात पात का . इन् शहीदों ने किसी जाती विशेष के लिए अपने प्राणों की आहुति नही दी थी लेकिन आज २१ सदी में जी रहा इन्सान शहीदों को भी जात पात में बाटना चाहता है . शहीदों की कुर्बानिया भारत माता की रक्षा के लिए उन्होंने दी . ताकि आने वाली पढ़ियो को एक आजाद हवा में साँस लेने का मोका मिल सके . लेकिन आज भारतीय जात पात पर लड़ ही नही रहे बल्कि देश को कमजोर भी कर रहे है . हम पर कभी मुगलों तो कभी अंग्रेजो ने जुर्म ढहाया . और जब हम आजाद हुए तो नई गुलामी में चले गये उंच नीच की गुलामी . आजादी की लड़ाई सभी भारतीयों ने छुआ छुट जैसी बीमारियों को मिटाकर लड़ी थी . जभी हमें आजादी मिली . देश को बटने से टूटता है किसी भी जाती से पहले हम एक भारतीय है . कभी शेत्रो पर लड़ाई कभी भाषा पर और कभी जात पर . जात के नाम पर लाठिया निकल जाती है और लग जाते है अपनों का खून बहाने . इसलिए युवाओं में भी देशभक्ति की भावना कम हो रही है और जाती भक्ति की भावना बढ़ रही है . . कोई भी इन्सान जो भारतीय है वो इसी मिटटी से बना है . देश मज़बूत तभी होगा जब सभी भारतीय जात पात पर लड़ना छोड़ देश की तरक्की पर सोचेंगे
कल की परतियोगिता जीती थी विजय वडनेरे जी ने आज आप भी अच्छा सा कमेंट्स भेजकर बन सकते है कमेंट्स के हीरो
मुल्क का बटवारा किया हासिल किया क्या . कल की परतियोगिता जीती थी विजय वडनेरे जी ने आज आप भी अच्छा सा कमेंट्स भेजकर बन सकते है कमेंट्स के हीरो
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
धुप या हवन की सामग्री पर छपे देवी देवताओ के पोस्टर उन्हें नहर में ढाले
धुप हवन की सामग्री या फिर कोई भी पूजा से जुदा सामान उनके dabbo पर देवी देवताओ की तस्वीर मिलती है . व्यापारी श्रधा से तस्वीर लगाते है . एक अछि बात कही जा सकती है . लेकिन जो लोग पूजन के लिए इन्हें लेते है क्या वह इनका वही सम्मान करते है जब पूजा की विधि पूरी कर ली जाती है अथवा सभी लोग घर में मंदिर के लिए धुप अगरबत्ती लाते है . लेकिन जब वह अगरबत्तियां सभी जगा दी जाती है कुछ लोग सभी तो नही लेकिन कुछ लोग उन्हें सडको पर फैक देते है . जिन देवी देवताओ को हम सभी सम्मान देते है जिन्होंने पृथ्वी , मानव जाती की की रचना की उनका अपमान कैसे शोभा देता है हमें . इंसान घर पर देवी देवताओ को सम्मान देता है सुबह शाम जोत जगाता है लेकिन सड़क पर गुजरते समय अपने आप को इतना उप्पर समझ लेता है की किसी देवी देवता के कैलंडर या तस्वीर को किसी एसे सुरक्षित स्थान पर भी रखना उचित नही समझता जहा कम से कम कोई भी पराणी पाप का भागीदार न बने . उस समय इन्सान क्यों भगवान से ख़ुद को ऊपर मान बैठता है . एक कहावत है दुःख में सिमरन सब करे सुख में करे न कोई सुख सिमरण जो करे दुःख काहे को होई . ये कहावत बिलकुल सही है इन्सान इतना मतलबी होता है भगवान उसे जब याद आते है जब उसे कोई दुःख हो कोई कष्ट हो . जब वह सांसारिक सुख सुविधा से लैस हो जाता है तो वह लोभ माया में डूब जाता है . और उसे यह भी याद नही रहता वह मात्र इन्सान है कोई भगवान नही .
शिक्षा : सभी भारतवासी धुप सामग्री की खाली दब्बियो को चलते पानी में विसर्जित करे या उन्हें एसा स्थान दे जहा किसी के पैर नही पड़े
शिक्षा : सभी भारतवासी धुप सामग्री की खाली दब्बियो को चलते पानी में विसर्जित करे या उन्हें एसा स्थान दे जहा किसी के पैर नही पड़े
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
क्या भारत में अश्लील सामग्री ज्यादा पसंद की जाती है
या फिर कहानी की कमी है भारत में . भारत जहा हजारो क्रन्तिकारी हुए . जहा महाराणा परताप जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसे शूरवीर हुए . जिसके हर शहर हर गाव में सेकड़ो कहानिया हो . वहा भी इस तरह के हथकंडे इस्तेमाल किये जाये तो आप इसे क्या कहेंगे
वैसे देशभक्ति पर भी फिल्मे बनी है और वो सफल हुई और कुछ तो ओस्कर के काफी नजदीक रही रंग दे बसंती ; और लगान जो भारतीय परिष्ठ्भूमि पर बनी थी इन् फिल्मो को लगभग सभी देशो ने सराहा . लक्ष्य ; जिसने युवाओ में एक नया जोश भर दिया देशभक्ति का .
आज भी भारतीयों को अछी कहानी वाली फिमे अछि लगती है . लेकिन भारत में सब कुछ पश्चिम की तर्ज़ पर होता जा रहा है . फिल्म के निर्माता निर्देशक और लेखक सभी भारतीय है . लेकिन हर भारतीय का फ़र्ज़ है भारत को मज़बूत बनाये . अभी जो अश्लील फिल्मे बन रही है उन फिल्मो से युवाओ और बच्चो की मानसिकता पर बूरा असर पड़ रहा है . अश्लील सामग्री बेचकर पैसा तो कमाया जा सकता है लेकिन सामाजिक इज्ज़त नही
सोमवार, 14 दिसंबर 2009
भाषा की लड़ाई मिटाने का मन्त्र
भाषा पर लड़ाई एक लोकतान्त्रिक देश को शोभा नही देती लेकिन अब चिंगारी लग ही चुकी है इसे आग में तब्दील होने से पहले ही ठंडा कर दिया जाये तो देशहित में हो .
भारत जहा कुछ दिनों से भाषा की लड़ाई हो रही है कुछ राजनैतिक तत्व राष्ट्र भाषा के खिलाफ है . केवल सुर्खियों में छाने के लिए और मिडिया में इन्हें खूब जगह मिलती है ये सब कर इससे पहले ये चिंगारी आग बनकर और राज्यों को अपनी चपेट में ले इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा . देश के सभी राज्यों की भाषाओ में से हर एक भाषा के कुछ शब्द हिंदी में ही डाल दिए जाये इससे हर भारतीय एक दुसरे को जान भी सकेगा और हर भाषा को भी सम्मान मिलेगा . हमने तो विदेशी भाषाओ को भी सरान्खो पर बैठाया है क्या हम अपने ही भारत की सभी भाषाओ को एकसूत्र में नही पिरो सकते जिससे पंजाबी मराठी और मराठी पंजाबी बोले देश में शेत्रवाद को भी यही से ख़त्म किया जा सकता है
भारत जहा कुछ दिनों से भाषा की लड़ाई हो रही है कुछ राजनैतिक तत्व राष्ट्र भाषा के खिलाफ है . केवल सुर्खियों में छाने के लिए और मिडिया में इन्हें खूब जगह मिलती है ये सब कर इससे पहले ये चिंगारी आग बनकर और राज्यों को अपनी चपेट में ले इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा . देश के सभी राज्यों की भाषाओ में से हर एक भाषा के कुछ शब्द हिंदी में ही डाल दिए जाये इससे हर भारतीय एक दुसरे को जान भी सकेगा और हर भाषा को भी सम्मान मिलेगा . हमने तो विदेशी भाषाओ को भी सरान्खो पर बैठाया है क्या हम अपने ही भारत की सभी भाषाओ को एकसूत्र में नही पिरो सकते जिससे पंजाबी मराठी और मराठी पंजाबी बोले देश में शेत्रवाद को भी यही से ख़त्म किया जा सकता है
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
भारत में मुसलमान सबसे जयादा सुरक्षित
जो कुछ सविज़ेरलैंड में हो रहा है । वह वाकई ग़लत है बात मीनारों से शुरू होती है सविज़ेर के बहुसंख्यक चाहते है की मस्जिदों पर मीनारों के निर्माण पर रोक लगे । सविज़ेरलैंड में 157 मस्जिदे है और मीनार सिर्फ़ चार मस्जिद पर है । लेकिन भारत में अकेले अयोध्या में ही १०० से ज्यादा मस्जिद है और भारत के अकड़े अभी है नही मेरे पास । अब देखिये भारत में लगभग हर उस गाव शहर में मस्जिद है जहा मुसलमानों के घर एक हो या दस । और वह सभी सुरक्षित है किसी भी भारतीय ने उन्हें पूरा सम्मान दिया है जो वो लोग मन्दिर गुरुदावारो को देते है । यहाँ न तो कभी किसी मस्जिद की लोकशन पर सवाल उठे न ही इनकी संख्या पर । यही भारत की सभ्यता है भारतीय सभी धर्मो को एक सम्मान देते है ।
फ़िर भी भारत में हो हल्ला होता रहता है । जम्मू में जो हुआ अमरनाथ जी की जमीन के लिए वह किसी से छुपा नही । क्या कभी मस्जिद के लिए हिंदू या सिक्खों ने मना किया जमीन के लिए । भारत के हर गाव हर शहर में मस्जिद है । और भारत में यह पूरी तरह surakshit hai . फिर भी कुछ लोग सुर्खियों में आने के लिए कह ही देते है उन्हें मुसलमान होने से फलैट नही मिल रहा . भारत ही एक एसा देश है जहा एक मुस्लिम राष्ट्रपति बना और उन्होंने भी सारा जीवन राष्ट्र को ही समर्पित किया . पाकिस्तान जो कभी भारत का ही अंग था क्या कभी उसकी तरफ से इसी कोई पहल हुई . भारत ने हर बार नफरत कम करने की कोशिश की है लेकिन फिर भी अताक्वादी पाक से ही आते है . कश्मीर भारत में खुशहाल है लेकिन फिर भी पाक के झंडे लहराना समझ से परे है . muslmano ko ek bat samjhni hogi bharat se pak alag hua vahaa muslim ki kya halat hai kisi se chupi nhi hai . और बंगलादेशी की भी हालत कुछ अछि नही है .
फ़िर भी भारत में हो हल्ला होता रहता है । जम्मू में जो हुआ अमरनाथ जी की जमीन के लिए वह किसी से छुपा नही । क्या कभी मस्जिद के लिए हिंदू या सिक्खों ने मना किया जमीन के लिए । भारत के हर गाव हर शहर में मस्जिद है । और भारत में यह पूरी तरह surakshit hai . फिर भी कुछ लोग सुर्खियों में आने के लिए कह ही देते है उन्हें मुसलमान होने से फलैट नही मिल रहा . भारत ही एक एसा देश है जहा एक मुस्लिम राष्ट्रपति बना और उन्होंने भी सारा जीवन राष्ट्र को ही समर्पित किया . पाकिस्तान जो कभी भारत का ही अंग था क्या कभी उसकी तरफ से इसी कोई पहल हुई . भारत ने हर बार नफरत कम करने की कोशिश की है लेकिन फिर भी अताक्वादी पाक से ही आते है . कश्मीर भारत में खुशहाल है लेकिन फिर भी पाक के झंडे लहराना समझ से परे है . muslmano ko ek bat samjhni hogi bharat se pak alag hua vahaa muslim ki kya halat hai kisi se chupi nhi hai . और बंगलादेशी की भी हालत कुछ अछि नही है .
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
इस बटवारे में ५ लाख हिंदू सीखो की जाने गयी
आजादी के ६२ सालो बाद भी कुछ लोगो के जख्म हरे है । कुछ कत्त्र्पन्थियो की वजह से भारत दो टुकडो में bat गया । आज भी उन लोगो की आंखे नम हो जाती है जिन्होंने वो मंज़र अपनी आँखों से देखा । पर्स्तुत है कुछ अंश ;आज से लगभग ६४ साल पहले किसने सोचा था मुल्क के दो टुकड़े भी उन्हें देखने पड़ेंगे । किसने सोचा था उन्हें अपनी जमीन जायदाद अपनी धरती माँ को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा शायद किसी ने भी नही । लेकिन कुछ कत्रपनथियो ने इसकी नींव रखनी शुरू बहोत पहले ही कर दी थी ।सर्व्पर्थम १९३० में कवि शायर मुह्हम्मद इक़बाल ने dirasshtr सिधांत का जिक्र किया । उन्होंने भारत के उत्तर पश्चिम में सिंध , बलूचिस्तान , पुनजब तथा अफगान ( सूबा ऐ सरहद ) को मिलाकर नया राष्ट्र बनाने की बात की थी । सन १९३३ में कैम्ब्रिज विशव विधालय के छात्र चोधरी रहमत अली ने पंजाब , सिंध , बलूचिस्तान तथा कश्मीर के लोगो के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना ) का सृजन कियाअब बात उन हिंदू सीखो की जिन्हें अपनी जमीन से निकाला गया । इस बटवारे में लगभग ५ लाख हिंदू सीखो को अकाल मृत्यु प्राप्त हुई । लेकिन दुर्भाग्य उन्हें यद् कने के लिए कोई मोमबत्ती नही जलाई जाती । धर्म के नाम पर दूसरा मुल्क बना पाकिस्तान और अंग्रेजो की चाल सफल हुई । लेकिन मुल्क अब तक सफल न हो सका वह आज भी धू धू कर जल रहा है ।
रविवार, 6 दिसंबर 2009
गुलामी से निकलकर हो आजाद भारत
भारत जो अब बन रहा है इंडिया । हमारे देश का नाम प्रचीन काल से ही भारत रहा है । किंतु आज से २०० साल पहले जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने इसे एक अलग नाम दिया । वह नाम था इंडिया । और इस तरह से भारत की जगह कुछ लोग हमारे देश को इंडिया कहने लगे । अंग्रेजो से भारतीयों ने आजादी तो पा ली । लेकिन मानसिक तोर पर आज भी गुलाम है । इंडिया को हम एक थोपा हुआ नाम कह सकते है । यह नाम उन्ही ने हमें दिया था । गुलाम तो बहुत देश हुए पर किसी ने अपनी पहचान नही बदली । भारत को भारत वर्ष आदिकाल से कहा जाता है । जब भी कोई भी भारतीय videsh जाता है तो भारत की जगह इंडिया शब्द पर्योग किया जाता है । लेकिन अमेरिका का कोई भी बड़ा नेता या कोई आम आदमी चाहे दुनिया के किसी भी भाग में हो अमेरिका शब्द ही पर्योग करता है । इसी parkar पाकिस्तान , chin , japan , afaganistan कोई भी देश हो ये अपने नाम से ही pukare jate है ।
इंडिया नाम देश को अंग्रेजो ने दिया था । जब हम गुलाम थे लेकिन आज भारत आजाद है इसलिए एक आजाद देश की पहचान उसी की होनी चाहिए । क्या भारत छोटा देश है जो hamaare देश को नाम भी videshi ही दे । भारत sadiyo से sone की chidiya rha है or इतने videshi hamlo or गुलामी के bad भी भारत sone की chiriya है । भारत ने अपनी sanskrity को अब भी bachakar रखा है । लेकिन कुछ salo से bhart me दो vichardharaye बन rhi है एक वो लोग है जो इंडिया me jee rhe है or एक वो जो भारत me । किंतु मेरा भारत to उन pavitr nadiyo me है jinhe माता kehkar पुकारा jata है । हमारे देश की yhi sanskrity hame सबसे अलग or mahan banati है । hame अपनी पहचान को nhi bhoolna चाहिए । तभी भारत vishvguru बनेगा savsth भारत
इंडिया नाम देश को अंग्रेजो ने दिया था । जब हम गुलाम थे लेकिन आज भारत आजाद है इसलिए एक आजाद देश की पहचान उसी की होनी चाहिए । क्या भारत छोटा देश है जो hamaare देश को नाम भी videshi ही दे । भारत sadiyo से sone की chidiya rha है or इतने videshi hamlo or गुलामी के bad भी भारत sone की chiriya है । भारत ने अपनी sanskrity को अब भी bachakar रखा है । लेकिन कुछ salo से bhart me दो vichardharaye बन rhi है एक वो लोग है जो इंडिया me jee rhe है or एक वो जो भारत me । किंतु मेरा भारत to उन pavitr nadiyo me है jinhe माता kehkar पुकारा jata है । हमारे देश की yhi sanskrity hame सबसे अलग or mahan banati है । hame अपनी पहचान को nhi bhoolna चाहिए । तभी भारत vishvguru बनेगा savsth भारत
शनिवार, 5 दिसंबर 2009
मुस्लिम्स छोटी सी बात समझे
भारत जो हमेशा से ही असं टार्गेट रहा है विदेशी हमलावरों के लिए । हमेशा से ही भारत को किसी न किसी सत्र पर कमजोर किया जाता रहा है । कभी ओरंगजेब जैसे लोगो ने भारत में आकर तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन करवाया । or इस parkar मुस्लिम्स को कई vishashdhikar भी दिए jate थे muslim sultano से । asa nhi है की हर एक sultan हिंदू virodhi रहा हो जैसे हिंदुस्तान में अकबर जैसे sultan भी rhe । अकबर ने सभी को saman darishty से देखा । परन्तु jyadatar हिंदू virodhi ही rhe । or कुछ लोग sultano के muslim parem की वजह से muslim बने to jyadatar लोग तलवार के बल पर । इसी का nateeza रहा की भारत का vibhajan हुआ । जो लोग sekdo salo से हिंदू devi devtao का samman करते थे अब vhi लोग मन्दिर maszid के लिए ladne लगे ।
or aajtak kattr panthi ulema कभी salman khan के पिता के लिए fatwa nikaal unhe गणेश pooza के लिए manaa करते है । to कभी vandematrm पर fatwa nikaal देश की vichardhara को baata जाता है । bhartiya मुस्लिम्स अगर छोटी सी बात को samjh ले की उनके poorwaz भी हिंदू ही हुआ करते to देश में कोई ladai ही नही rhe ।
or aajtak kattr panthi ulema कभी salman khan के पिता के लिए fatwa nikaal unhe गणेश pooza के लिए manaa करते है । to कभी vandematrm पर fatwa nikaal देश की vichardhara को baata जाता है । bhartiya मुस्लिम्स अगर छोटी सी बात को samjh ले की उनके poorwaz भी हिंदू ही हुआ करते to देश में कोई ladai ही नही rhe ।
भारत की अपनी पहचान हो
भारत के राष्ट्रीय खेल कबड्डी कुश्ती और हाकी की अनदेखी की जाती रही है । और जो विदेशी खेल है उन्हें सरंखो पर बठाया jata रहा है । वसे खेल ही नही हर चीज़ जो भारत संस्कृती से जुड़ी है उसे भारतीय समाज भूलता जा रहा है । जैसे भारतीय भाषा कपड़े और खाना भी फास्टफूड हो गया । लेकिन बात खेलो की । कुश्ती भारत का प्राचीन खेल रहा है । राजे महाराजो से कुश्ती और कबड्डी चलती आ रही है । लेकिन आज देश के कुछेक कस्बो और गावो को छोड़ दिया जाए तो कुश्ती और कब्बड्डी न के बराबर है । हर जगह सिर्फ़ क्रिकेट ही जनून है । शायद इसमे पैसा ज्यादा है इसलिए । में क्रिकेट या फूटबल किसी भी खेल के खिलाफ नही हूँ । लेकिन हर भारतीय की तरह मेरा भी एक ही सपना है । भारत की ख़ुद की पहचान हो । जैसे आज पूरा विशव योग का कायल है कोई एक खेल हो जो भारतीय गर्व से कह सके ये हमने दिया है विश्व को
वसे भारत ने भोत कुछ दिया है विश्व को । दुनिया की तमाम किताबे भारतीय वेदों से ही बनी है । और दुनिया की सभी भाषाओ की जननी संस्कृत है । आज भी संस्कृत सबसे सम्मानीय भाषा है । एसा ही कुछ खेलो में नाम कमाया जाए तो में समझता हूँ भारत को खेलो में एक अलग पहचान मिलेगी ।
वसे भारत ने भोत कुछ दिया है विश्व को । दुनिया की तमाम किताबे भारतीय वेदों से ही बनी है । और दुनिया की सभी भाषाओ की जननी संस्कृत है । आज भी संस्कृत सबसे सम्मानीय भाषा है । एसा ही कुछ खेलो में नाम कमाया जाए तो में समझता हूँ भारत को खेलो में एक अलग पहचान मिलेगी ।
गुरुवार, 26 नवंबर 2009
हिन्दी से भारतीय कितने जुरे है ?
आज की हिन्दी देश की भाषा है , पर परिसथियो में हिन्दी को कोई भी भारतीय कितना सम्मान दे रहा है , यह किसी ने समझने की कोशिश ही नही की , राजनीती से अलग एक दुनिया है , जिसमे लगभग १११ करोड भारतीय रहते है , उनमे से कितने लोग हिन्दी भाषा का इस्तेमाल करते है , जो लोग हिन्दी को बेहतर तरीके से जानते है वे आज अंग्रेजी बोलने की कोशिश करते है क्या आम भारतीय हमारी राष्ट्र भाषा का सम्मान कर रहा है ,
कोई भी देश अपनी संस्कृती से महान होता है लेकिन क्या हम अपनी संस्कृति को बचा पा रहे है , मन की परिवर्तन ही संसार का नियम है परन्तु हम अपनी राष्ट्र भाषा को एक सम्मानित स्थान भी नही दे पा रहे , देश को आजाद हुए आज ६२ साल हो गये परन्तु इन् ६२ सालो में भारत में कितने ही परिवर्तन नही हुए , जैसे हमारे कपड़े , खाना , रहना , सब कुछ पश्चिमी होता गया और हमने भुत कुछ पाया जैसे स्वईन्न फ्ल्यू , बल्ड परेषर हम अब्ब एक नई गुलामी कर रहे है अपनी भाषा को भूलकर और अपनी पहचान खो रहे है , क्यो की क्या हिन्दी की पहचान कुछ राज्यों तक ही सिम्त कर रह गयी है , अगर हिन्दी भी राज्य और देश की सीमा से आगे निकल कर पश्चिम में झंडा बुलंद करे तो देश के सम्मान में एक और तारा लग सकता है , में समझ सकता हूँ कुछ लोग इसे बेतुकी कहेंगे परन्तु आप अंग्रेजी को ही ले लीजिये आज अंग्रेजी अन्तराष्ट्रीय भाषा है आज से ७० साल पहले क्या अंग्रेजी भारत में थी , ठीक इसी तरह अगर पर्यास किए जाए तो हिन्दी अगले ४० सालो में पूरे विश्व में SATHAPIT होगी
कोई भी देश अपनी संस्कृती से महान होता है लेकिन क्या हम अपनी संस्कृति को बचा पा रहे है , मन की परिवर्तन ही संसार का नियम है परन्तु हम अपनी राष्ट्र भाषा को एक सम्मानित स्थान भी नही दे पा रहे , देश को आजाद हुए आज ६२ साल हो गये परन्तु इन् ६२ सालो में भारत में कितने ही परिवर्तन नही हुए , जैसे हमारे कपड़े , खाना , रहना , सब कुछ पश्चिमी होता गया और हमने भुत कुछ पाया जैसे स्वईन्न फ्ल्यू , बल्ड परेषर हम अब्ब एक नई गुलामी कर रहे है अपनी भाषा को भूलकर और अपनी पहचान खो रहे है , क्यो की क्या हिन्दी की पहचान कुछ राज्यों तक ही सिम्त कर रह गयी है , अगर हिन्दी भी राज्य और देश की सीमा से आगे निकल कर पश्चिम में झंडा बुलंद करे तो देश के सम्मान में एक और तारा लग सकता है , में समझ सकता हूँ कुछ लोग इसे बेतुकी कहेंगे परन्तु आप अंग्रेजी को ही ले लीजिये आज अंग्रेजी अन्तराष्ट्रीय भाषा है आज से ७० साल पहले क्या अंग्रेजी भारत में थी , ठीक इसी तरह अगर पर्यास किए जाए तो हिन्दी अगले ४० सालो में पूरे विश्व में SATHAPIT होगी
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