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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

क्या अन्ना के आन्दोलन के पीछे अमेरिका है ? (एक अनुमान )

पिछले दिनों लीबिया का तानाशाह कर्नल गद्दाफी मारा गया उसकी मोत की तस्वीर जब हिलेरी कलिन्टन के पास पहुची उस  समय वे पकिस्तान में थी तस्वीर देखते ही झट से बोली .............वाओ . जैसे कोई आतंकवादी मारा गया हो  या फिर  अमेरिका अमेरिका बड़ा दुश्मन .........लीबिया का सर्वोच्च पद गरहन करते ही गद्दाफी ने अमेरिका को झटका दे दिया था  एस्सो आयल कम्पनी जो की अमेरिका में लम्बे समय से तेल उत्पादन का काम कर रही थी . सर्वोच्च पद हासिल करते ही गद्दाफी ने तेल के उत्पादन पर नियन्त्रण करना शुरू कर दिया .यानी अमेरिका से दुश्मनी पहले ही कर ली थी गद्दाफी ने . फिर  तो खुश होना ही था हिलेरी या ओबामा को ..........लेकिन पिछले ६ माह में जो क्रान्ति लीबिया में हुई उसमे अमेरिका का ख़ास योगदान रहा लीबिया की क्रान्ति में भले ही अमेरिकी पैदल सेना का योगदान न रहा हो लेकिन मित्र देश ब्रिटेन ,फ्रांस ने पूरी मदद की .इन देशो ने हवाई हमले करके अय्याशा तानाशाह को उसके महल से खदेड़ने में विद्रोहियों की मदद की .३० मार्च २०११ को अमेरिका के एक अखबार लांस एंजिल्स टाइम्स ने लिखा "सूचनाओं के संकलन के लिहाज से सिआईए वहा मोजूद है .लेकिन विद्रोहियों को हथियार देने के बारे में न तो हाँ कर सकते  है और न ही ना  .इसी खबर के साथ रायटर ने एक और खबर प्रसारित की थी की अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक गुप्त अनुमति पात्र हस्ताक्षर किया है जिसमे लीबिया के विद्रोहियों को मदद करने की अनुमति दी गयी है . लेकिन मिडिया ने इन दोनों खबरों को जनता के सामने पेश नही किया और गदाफी को एक तानाशाह ,अय्याश दिखाने की कोशिश की गयी . जाहिर है मीडिया का आका अमेरिका है और उसे उसी के इशारे पर चलना होगा ..................
चलिए अब बात करते है अन्ना हजारे की ..
मित्रो आज से दो साल पहले देश में इस शख्स को कोई जानता भी नही था ,उस समय इस देश में केवल एक ही शक्स भर्ष्टाचार के प्रति आवाज़ बुलंद कर रहा था वह थे बाबा रामदेव .बाबा रामदेव के मुद्दों में पूर्ण सवराज ,सव्देशी शिक्षा चिकित्सा ,काला धन ,भ्रष्टाचारियो को फ़ासी जैसे मुद्दे थे . उस समय पूरे देश में एक अलख सी जाग गयी थी भ्रष्टाचार को लेकर और काले धन पर भी बाबा रामदेव ने सरकार पर दबाव डाला था . जब सरकार की चूल्हे हिल रही थी तब खतरा अमेरिका और ब्रिटेन सविज्र्लैंड जैसे देशो को भी था . चुकी  इस देश में यदि काला धन आ गया तो उनके देश की अर्थवयवस्था का क्या होगा जिनकी अर्थवयवस्था हमारे देश के पैसे से चल रही है . ठीक उन दिनों में जब बाबा रामदेव का आन्दोलन चरम पर था उनकी लोकप्रियता देशभर में थी  ठीक उस समय एक शख्स मिडिया में आता है और अनशन करने की बात करता है वह जो कुछ बोलता है मीडिया उसे एक हीरो की तरह प्रस्तुत करता है .जिस दिन वह जन्तर मन्त्र पर अनशन करता है उस दिन जो भीड़ बाबा रामदेव के साथ थी उस भीड़ को उस जनता को अन्ना के साथ लाने की भरपूर कोशिश मिडिया द्वारा की जाती है यानी आन्दोलन को बाटने की कोशिश और जनता को भी . उसके कुछ माह बाद बाबा रामदेव का सत्यग्रह होता है तब बाबा से यही मिडिया उल - जलूल  सवाल पूछता है और उस साधू पर ऊँगली उठाता है जो देश के लिए भरष्ट राजनितिज्ञो से लड़ रहा है .इस आन्दोलन में सरकार और पुलिस का रवैया भी कुछ एसा ही होता है गोली ,लाठी डंडे सभी कुछ चलाकर मंच को तहस  -नहस कर दिया जाता है और बाद में यही मीडिया उन पर नारी के वेश में भागने के भद्दे आरोप लगता है होना तो याह चाहिए था ये मीडिया सरकार से इस बर्बरता पर सवाल पूछता खैर ............... अब एक दूसरा अध्याय शुरू होता है वही शक्स जिसे भारत की जनता जानती नही जो कभी भारत के ज्यादातर गावो -शहरो में गया नही है उसे महात्मा कहा जाता है वह अनशन पर बैठता है इस बार सरकार का रवैया भी अलग होता है और पुलिस का भी और मीडिया द्वारा तो यह सारा खेल रचा गया था .जब वह शख्स अनशन पर बैठता  है तब सरकारी घोटाले सामने आ रहे होते है बीजेपी सडको पर होती है शीला का इस्तीफा मांग रही होती है .लेकिन जिस समय अनशन शुरू होता है सभी घोटाले दब जाते है जैसे इस शक्स ने सरकार को एक संजीवनी दी हो , काले धन से ध्यान हट अब बस एक जन्लोक्पाल पर बात अटक जाती है . इस पूरे आन्दोलन में अन्ना एक हीरो बन जाते है जनता सडको पर ,सांसदों का घेराव होता है . पूरे देश में लोग सडको पर लेकिन अचानक खबर आती है की अन्ना अनशन तोड़ रहे है मिडिया फिर से इसे एक बड़ी जीत के तोर पर दिखाता है अन्ना को गांधी की तरह दिखाने की कोशिश होती है . लेकिन जनता को अँधेरे में रख दिया जाता है सरकार ने अन्ना की कोई भी ठोस मांग नही मानी होती लेकिन फिर भी इसे एक जीत मिडिया द्वारा अन्ना द्वारा बताया जाता है . क्या ये जनता से सीधा धोखा नही था उस जनता से जो आजादी के कई सालो बाद संघठित  होकर देश के लिए कुछ करने को निकली थी ?लेकिन उसे धोखा ही मिलता है ...........उससे भी बड़ी बात इसे मिडिया और अन्ना दोनों द्वारा बड़ी जीत बताना .........इस पूरे आन्दोलन से दो सवाल पैदा होते है क्या यह आन्दोलन अमेरिकी रणनीति का एक हिस्सा था .क्या इस अन्ना आन्दोलन का उद्देश्य और अन्ना को बेवजह एक हीरो बनाना बाबा रामदेव के आन्दोलन की धार को कम करना था .चुकी जिन मुदो की बात बाबा रामदेव कर रहे थे काला धन वापस लाओ , सव्देशी शिक्षा ,चिकित्सा ,और पूर्ण सवराज . इन सबमे अमेरिकी हितो को धक्का लगना तय था .
१ काला धन -काला धन भारत में आ जाने से पश्चिमी देशो की अर्थवयवस्था को धक्का लगना और भारत का विश्वपटल पर  एक मजबूत अर्थवयवस्था वाला  देश बन जाना .
२ सव्देशी चिकित्सा - यदि सव्देशी चिकित्सा इस देश में लागू हो गयी तो पश्चिमी मुल्को की दवाई कम्नियो को भारी नुक्सान होगा चुकी उनके लिए भारत एक बड़ा बाजार है .
३ सव्देशी शिक्षा -यदि सव्व्देशी शिक्षा लागू हो गयी तो भारत के लोगो में हिंदुत्व के प्रति आस्था बढ़ेगी और भारत के लोगो का स्वाभिमान जाग जाएगा . जिससे अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशो को भारत में धर्मपरिवर्तन करना मुश्किल होगा और  हिन्दुओ को दलित-सरवन के नाम पर बाटना  भी 
४ पूर्ण सवराज - यदि भारत में पूर्ण सवराज हुआ तो अमेरिका या कोई भी अन्य देश यहाँ अपनी मनमानी नही कर पायेगा 

इनमे से किसी भी मुद्दे को अमेरिका या कोई भी पश्चिमी देश नही चाहता और जब बाबा रामदेव की वजह से उसे इस देश में लोगो का स्वाभिमान जागता दिखा तभी उसने मिडिया की मदद से (जो की अमेरिका के इशारे पर ही चलता है ) एक ऐसे शख्स को हीरो बैठे -  बैठाए हीरो बना दिया जिसके मुद्दे बहुत ही छोटे थे . इसी संदर्भ में ओबामा द्वारा अन्ना की तारीफों के पूल बांधे गये ( पता नही एसा अन्ना ने क्या कर दिया ? .चुकी अन्ना की वजह से काला धन का मुद्दा गर्त में चला गया और बाबा रामदेव की लोकप्रियता भी कम हुई यानी अब अमेरिकी हितो में अडंगा लगाने वाला कोई नही बचा  .........
  
इन सबमे अन्ना को हीरो बनाने की अमेरिका की दो वजह हो सकती है एक तो उसे लग रहा है की अगला शासन बीजेपी का होगा और भारत में फिर से हिन्दुत्त्व का राज होगा सत्ता होगी तभी वह अन्ना को मीडिया की मदद से खड़ा कर रहा है चुकी वह अन्ना को जनता की नजर में बीजेपी से बेहतर साबित करना चाहता है .इससे उसे दो फायदे होंगे 
१ बीजेपी के वोट बटेंगे और बीजेपी सत्ता में नही आएगी 
२ फिर से वही सरकार बनेगी धर्मनिरपेक्ष जिसमे अमेरिकी हितो की अनदेखी नही हो सकती 
और अगला चुनाव होगा अन्ना vs  कोंग्रेस यानी धर्मनिरपेक्ष vs  धर्मनिरपेक्ष ..............यानी जो लड़ाई लीबिया में अमेरिकी मदद से चली चुकी गदाफी भी अमेरिका के हितो में एक बड़ा रोड़ा था वही लड़ाई इस देश में अमेरिका ने अन्ना की मदद से चलाई बाबा रामदेव के आन्दोलन का तोड़ धुंध कर जिससे उसके हित सुरक्षित रह सके और भारत को विदेशी ऐसे ही लूटते रहे ........
नोट - लेख अनुमानित   

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

मिडिया रामदेव आडवाणी से नाराज और अन्ना पर मेहरबान क्यों ?

जैसे ही एल के आडवाणी ने अपनी यात्रा की घोषणा की थी तब से मीडिया और कुछ ब्लोग्गरो द्वारा उन पर तरह -तरह के आरोप लगने शुरू हो गये थे .किसी ने कहा वह पीएम बन्ने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे है ,किसी ने कहा   उनकी यात्रा सफल नही होगी ,किसी ने कहा  आडवाणी अवसरवादी है तो किसी ने उन्हें साम्प्रदायिक करार दिया .यहाँ तक की उनकी पार्टी के नेता और संघ भी शुरुआत में उनसे नाराज दिखे .लेकिन बाद में आडवाणी को संघ का समर्थन मिल ही गया .इस विरोध में बीजेपी के नेता भी शामिल थे .लेकिन असली सवाल यह उठाता है की इस देश में भ्रष्टाचार ,कला धन ,गरीबी ,आतंकवाद जैसे मुद्दे उठाने वाला कोन नेता है .बाबा रामदेव ने इस मुद्दे को उठाया था लेकिन पूरे देश ने उनका हश्र अपनी आँखों से देखा .वाही अन्ना हजारे ने भी भ्रष्टाचार और जन्लोक्पाल के मुद्दे पर मीडिया की मदद से भीड़ को बुलाया लेकिन हुआ क्या ?जन्लोक्पाल बिल अभी तक लटक रहा है बेवजह देश की ऊर्जा बेकार गयी ..........अब एक बार फिर अन्ना सरकार को अनशन करने धमकी दे रहे है यानी फिर से मीडिया की मदद से अनशन उसके बाद भी सरकार मान जायेगी कोई गारंटी नही ?
जब की एक ८४ साल का बजुर्ग देश के हार राज्य ,गाव ,शहर में जा रहा है जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहा है रथयात्रा के माध्यम से काला धन ,भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भारत के  लोगो में अलख जगाने की कोशिश कर रहा है लेकिन यह बात कुछ लोगो को हजम नही हो रही कई लोग अडवानी पर संघठित होकर तरह -तरह के आरोप लगा रहे है .इसी लोगो से मै पूछता हूँ की क्या अब इस देश में अन्ना और उनकी टीम को ही अनशन , यात्राए ,विरोध करने का हक़ रह गया है .बाबा रामदेव यदि सत्यग्रह  करे तो उस सत्यग्रह की मीडिया में कोई कवरेज नही ,यदि बाबा रामदेव झांसी से स्वाभिमान यात्रा की शुरुआत करे तो मीडिया भी मीडिया केवल प्रारम्भ में ही कुछ झलकिया दिखाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है .लेकिन अन्ना यदि सरकार कोई छोटी -मोटी  टिका टिप्पणी भी करदे तो वह बड़ी खबर बन जाती है ,अन्ना यदि ब्लॉग लिखे तो भी मीडिया उसे खबर बना देता है .आखिर हमारा मीडिया एल के अडवानी -बाबा रामदेव से इतना नाराज और अन्ना पर इतना मेहरबान क्यों है ?आखिर मीडिया का ये दोगला रवैया क्यों है ?आखिर किसलिए अन्ना को जनता की नजर में एक हीरू की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है ?आखिर किसलिए अन्ना हजारे को एक भगवान बनाने की कोशिश हो रही है मीडिया द्वारा ? मेरा विरोध अन्ना से नही है .......मेरा मन्ना है लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्वक विरोध ,रैली या अनशन करनी का अधिकार है लेकिन जब बार -बार अन्ना को आडवाणी और रामदेव से मजबूत दिखाया जता है तब लगता है कही न कही  कोई षड्यंत्र जरूर रचा जा रहा  है .जब की अन्ना की टीम के दो -दो सदस्य काश्मीर पर दी गए बयानों पर फसे हुए है वह ब्यान न तो मीडिया ने दिखाए और न ही अन्ना से इस बारे में कोई सवाल पूछे गये बल्कि  इस तरह के बयानों को अभिवयक्ति की आजादी मीडिया द्वारा बताने की कोशिश की गयी .तब मीडिया और अन्ना पर संदेह होना लाजिमी है .......
वैसे तो देशहित में जो भी लोग सामने आये उन सभी का समर्थन करना चाहिए न की किसी एक ही व्यक्ति को सविधान और देश से उपर मान लिया जाना चाहिए और न ही केवल उसी  की बातो को देशहित से उपर मान लेना चाहिए और न ही बाकियों को हाशिये पर धकेल दिया जाना चाहिए .जैसे सचिन करिकेट से संन्यास ले लेंगे तब करिकेट को भगवान भरोसे नही छोड़ दिया जाएगा तब भी भारत में अच्छे -अच्छे खिलाड़ी पैदा होते रहेंगे . वैसे ही अन्ना हजारे का आन्दोलन सफल नही होगा तो जनता और मीडिया को अडवाणी या फिर बाबा रामदेव के आन्दोलन को सफल करने की मुहीम में जुट जाना चाहिए .

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

कब तक ?

धर्मपरिवर्तन
आतंकवाद
गो ह्त्या
घुसपैठ
बंगला देशी घुसपैठ
सेकुलरिज्म का नंगा नाच
तिरंगे का अपमान
संस्कृति का अपमान
भ्रष्टाचार ,भूख ,गरीबी
सोने जैसी धरती mere देश की
लेकिन देश की आधी आबादी
भूखी ,नंगी
कब तक आखिर कब तक ?
हर रोज आतंक में
हर रोज दंगो में
आखिर मरू तो मै कब तक ?
भारत माता की जय का नारा लगाऊ तो
साम्प्रदायिक
अपना कोई त्यौहार मनाऊ तो
रुढ़िवादी
आजादी कैसी आजादी
झूठी आजादी
मात्र चार पांच हजार लोगो की आजादी
लूटने की ,जमीन अधिग्रहण की ,बोलने की
बाकी देश गुलाम , कैसी है ये आजादी ?
एसी आजादी किसके लिए
कुछ कोर्प्रेट परिवारों के लिए
कुछेक राजनीतिज्ञों के लिए
कुछेक जयचंदों के लिए
फिर मेरी क्या ओकात है इस आजादी में
मै कुछ बोलू तो खुलकर नही बोल पाता
देश हित की बाते साम्प्रदायिक
देश विरोधी बाते अभिव्यक्ति की आजादी है
आखिर कब तक ?
कब तक सोचु मै सुरक्षित हूँ , मेरा घर सुरक्षित है
कब तक मतलबी ,स्वार्थी ,लालची ,बन कर जीता रहू
कब तक देश को लुटते ,विभाजित होते देखता रहू
एक मूकदर्शक की तरह
कब तक चुप रहू ?
गुरु गोबिंद सिंह ,भगत सिंह ,वीर सावरकर
भी तो एसा सोच सकते थे
चुप रह सकते थे
लेकिन लड़े वो देश की खातिर
लेकिन मै क्या कर रहा हूँ ?
कब तक सिर्फ अपने हित के बारे सोचता रहू
कब तक ?

आडवाणी ही बीजेपी को सत्ता तक पंहुचा सकते है

भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम है लालकृष्ण आडवाणी । लालकृष्ण आडवाणी जी को कभी पार्टी का कर्णधार कहा गया तो कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी। महात्मा गांधी के बाद अडवानी जी ही जननायक हैं जिन्होंने हिन्दू आंदोलन का नेतृत्व किया और पहली बार बीजेपी की सरकार बनवाई । हिन्दुओ में नवचेतना लाने वाले भी अडवानी ही है . लाल कृष्ण अडवानी तीन बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर रह चुके है . 1984 में केवल दो सीटों वाली पार्टी को 1999 में 182 सीटों तक पहुँचाने का श्रेय आडवाणीजी को ही दिया जाता है।आडवाणी अपने हिन्दू राष्ट्रवाद की अवधारणा के दम पर भाजपा को नब्बे के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर ले आए और अयोध्या आंदोलन के नायक बने। लेकिन २००५ की पकिस्तान यात्रा और एक ब्यान ने उनकी छवि को काफी नुक्सान पहुचाया .संघ ,मिडिया ,तमाम तरह के बुद्धिजीवी उनके योगदान को भुलाकर उन्हें कोसने लगे . कुछ ऐसे हालत भी पैदा कर दिए गये की लोग मोदी में नेत्रित्व क्षमता देखने लगे और शायद आज भी देख रहे है लेकिन वह बीजेपी के कट्टर वोटर है पार्टी में ऐसे लोगो की कमी भी नही है जिन्हें लगता है मोदी का चेहरा ही बीजेपी को सत्ता तक पंहुचा सकता है ऐसे लोग एक व्यक्ति (मोदी) को पार्टी से ऊपर मानने की भारी भूल कर रहे है …..लेकिन वह सही नही है नही है मोदी को पीएम घोषित करके बेशक बीजेपी अपना कट्टर हिंदुत्व का वोट ले सकती है परन्तु आम वोट नही ले सकती जो सत्ता के शीर्ष पद तक पहुचाता है सता में आने के लिए बीजेपी को किसी ऐसे नेता की जरूरत है जो केवल एक राज्य से नही पूरे देश से जुडा हो जिसमे आगे भी जमीन से जुड़ने की क्षमता हो जिसके पास मुद्दे हो ,जो दूरदर्शी हो ,जिसने राजनीती की उबड खाबड़ को देखा हो ,जो जरूरत पड़ने पर बाकी पार्टियों से गठबंधन कर सके . ऐसे नेता बीजेपी में केवल एक ही है वह है आडवाणी ….जो न केवल रथयात्रा के माध्यम से उन राज्यों में जा रहे है जहा बीजेपी पहले से सता पर काबिज़ है बल्कि उन राज्यों के लोगो को भी यह अहसास करा रहे है की केवल बीजेपी ही सुशासन दे सकती है जहा बीजेपी की सरकारे नही है . जनचेतना यात्रा करके आडवाणी जी ने न सिर्फ खुद को एक राष्ट्रिय नेता के रूप में उभारा बल्कि पार्टी में भी एक नई जान फुक दी है . तेलंगाना ,असम ये दोनों राज्य ऐसे है जहा बीजेपी की सरकारे नही है लेकिन लोगो का भारी समर्थन मिल रहा है जहा से आडवाणी गुजरे सडको पर पैर रखने की जगह तक नही बची . यह रथयात्रा ही बीजेपी को फिर से सत्ता दिला सकती है जिसमे न सिर्फ आडवाणी जी बल्कि रविशंकर प्रसाद , जेटली ,सुषमा ,गड्कारी सभी नेता जनता के बीच पहुच रहे है उन्हें अपने विचारों से अवगत करा रहे है जनता को एक अहसास karaa रहे है की विपक्ष नाम की कोई चीज़ बाकि है इस देश में . यही यात्रा राम रथ यात्रा की तरह ही बीजेपी को सत्ता तक पहुचायेगी न की नरेंद्र मोदी की अमेरिका द्वारा की गयी मात्र एक तारीफ .