आजकल फिल्मो में कुछ नया दिखने लगा है .अरे आप सोच रहे होंगे मै आज भी अश्लीलता प़र लिख रहा हूँ . लेकिन आज अश्लीलता प़र नही आज बात होगी काश्मिरियो की . मासूमो की ? नई फिल्म आ रही है" लम्हा " इस फिल्म के प्रोमो देखकर लगता है की यह फिल्म कश्मीरी युवको की समस्याओं प़र है .पता नही फिल्म वाले मासूमो ? प़र फिल्म क्यों बना रहे है . चलो काश्मिरियो प़र फिल्म बन रही है तो इससे हमें क्या . लेकिन एक बात समझ में नही आती कब जाकर बनेगी कश्मीरी हिन्दुओ प़र कोई फिल्म . कब बनेगी असम के हिन्दुओ प़र कोई फिल्म ? कब बनेगी बरेली दंगो प़र कोई फिल्म ? कब बनेगी कोई पकिस्तान में हो रहे हिन्दुओ प़र अत्याचारों प़र फिल्म ?
शायद कभी नही ............
ये फिल्म वाले भी लगता है शर्मनिरपेक्षता प़र उतारू हो गये है . माई नेम इज खान , चक दे इण्डिया , इन दोनों फिल्मो में क्या दिखाया गया . क्या दिखाने की कोशिश की गयी वही कोशिशे अगली फिल्मो में होंगी .फिल्मे समाज के लिये एक आईने का काम कर सकती है अगर समाज देश की समस्याओं को समान नजर से देखा जाए . लेकिन भाइयो हर सरकारी संसाधन प़र एक ख़ास समुदाय का पहला हक़ है . अब एक बात और लगती है कही बोलीवूड प़र भी किसी ख़ास समुदाय का पहला ...............तो नही .?