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सोमवार, 4 जनवरी 2010

एक मीठा सा एहसास जो तोड़ देता है नफरत की सीमाओ को

संगीत छु लेता है तार दिलो के .एक मीठा सा एहसास जो तोड़ देता है नफरत की सीमाओ को . संगीत अगर सही दिशा में जाये तो भारतीयता को विकसित भी कर सकता है यही एक माध्यम है जो हिंदी को विदेशो में भी लोकप्रिय बना सकता है .इसके उदाहरण भी है आर रहमान का गया वन्दे मातरम हो या जय हो ये एसे गाने है जो भारतीयता को दर्शाते है . इसमें रोजगार भी अच्छा खासा है और युवाओ में भी इसे लेकर दिलचस्पी है .लेकिन कुछ खामिया भी है टच मी , और ' तेरी शोक अदाए ' जैसे गाने डिजे पर तो चल जाते है लेकिन वह कोई गंभीर छाप नही छोड़ पाते . जैसे ८० के दशक के आस पास के गाने अब भी जुबा पर है कोई होता ' जिसको हम अपना , मेरा जीवन , पत्थर के सनम , अ  मेरे वतन के लोगो  ' इन गानों मी एक प्योरिटी होती थी लेकिन आजकल कुछ गाने galafaadu होते है . अछे गाने अब भी बनते है जैसे मंगल मंगल , लेकिन ' कभी मेरे साथ कोई रात ' जैसे गाने फूहड़ता दिखाते है .धार्मिक गाने भी अब पहले जैसे नही बन पा रहे है पहले ' शिव शंकर को जिसने पूजा , रम गयी माँ मेरे रोम रोम में , भेजा है बुलावा , रघुपति राघव , अ मालिक तेरे बन्दे हम , रखता हूँ हर पल ध्यान तुम्हारे चरणों में ये पहले के भजन है लेकिन आजकल फ़िल्मी गानों की अकाल पर ही धार्मिक भजन बनते है . कुछ बाते एसी है जिसे हम अपनी अंग्रेजी मानसिकता की वजह से खो देते है . आज का कोई भी गाना एसा नही जो हमे २० साल बाद भी याद रहे

2 टिप्‍पणियां:

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