चिट्ठाजगत
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रविवार, 14 नवंबर 2010

बिग बोस ,राखी का ईसाफ . गलत टिप्पणी ,अश्लीलता बंद करो -बंद करो

लगता है भारतीय समाज को तोड़ने की कसम खाकर  आई है राखी सावंत तभी तो लेकर आई है राखी का इन्साफ .एसा इन्साफ जो बिना समझे सोचे विचारे फैसले सुनाता है . जबान से एसा निकलता है मानो कोई तानाशाही बादशाह सामने बैठकर फैसला सूना रहा हो . तभी तो एक भले चंगे आदमी को तनाव में भेज दिया जिससे  उसकी मृत्यु हो गयी .अब टीवी चैनल की गलती है या राखी को इस कार्यकर्म का होस्ट बनाने वालो की झासी का एक शख्स तो इन सबने मिल कर बलि ले लिया है . वैसे राखी ही नही एक और रियलिटी शो है जो भारत में अश्लीलता को इस कद्र फैला रहा के अच्छे अचो के पसीने छूट जाए . नाम उसका बिग बोस है बिग बोस में जिस तरह के लोगो ने भाग लिया उस प़र महान ब्लोग्गर सुरेश चिपलूनकर जी लिख चुके है . बिग बोस में सोच का दिवालियापन तो देखिये दो पति -पत्नी की सुहागरात दिखाकार या उसके कुछ दृश्य  दिखाकार टीआरपी कमाने के हथकंडे अपनाए जा रहे है . कभी पाकिस्तानी कलाकारों को बुलाते है कभी कसाब के वकील को और अब सेक्स का तडका . और भारतीय समाज गूंगा बहरा होकर इन्हें देख रहा है क्या भारतीय समाज भी अब पूरी तरह पश्चिमी सोच सभ्यता का हो चला है अथवा ये टीवी चैनल भारत को भी मानसिक तोर प़र दिवाला कर देंगे 

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

अरै म्हारे सारे भाईया अर बहाणा न दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये

हां तो भाइयो अर बहैनो तम सब नै दीपावली की हार्दिक  शुभकामनाये .यूपी ,गुजरात , हरियाणा , महाराष्ट्रा , बिहार , उतराखंड , जम्मू , देल्ली , एम् पी , मद्रास , राजस्थान , पंजाब  सारया नै शुभकामनाये . एक और बात सै मेरे मन मह इस दिवाली  पै जो थारते कैहैन आया सू  इस दिवाली पै एक कार्य ईसा करो के जातिवाद की जड़ गड़ ज्या , इब सोचो वो कुकर भला .लेकिन उस्तै पहलया एक और बात वा या सै भाइयो जातिवाद ए नही बल्कि अमीरी गरीबी का भी अर उंच नीच का भेद भाव भी मिट ज्या . वो न्यू मिटाओ हर बार के होवे सै कोई भी आमिर आदमी अपने लेवल के अदमिया नै ए मिठाई गिफ्ट दे सै . किन्तु इब कै इसका उलटा करो भाइयो ठहार्रै घर धोरे कोए गरीब सै अथवा कोई दूसरी जाती का सै उसके घर नै तहम मिठाई पहुचाओ बल्कि ख़ुद देन जाओ .या शुरुआत तो कर की देखो मिठाई और भी ज्यादा मीठी और दिवाली और भी ज्यादा सुन्दर लगेगी .  अछ्या  भाइयो राम राम .
जय बाबा मुंगीपा . जय क्ष्री   राम   

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

बोलीवूड में जमकर तुष्टिकर्ण

कुछ साल पहले एक फिल्म बनी नाम था उसका गदर एक प्रेमकथा . इस फिल्म को मै भारतीय समाज के लिये मत्वपूर्ण मानता हूँ चुकी इस फिल्म ने एक तरफ उन हिन्दुओ का दर्द दिखाया जिन्हें मत्परिवार्त्न होने की वजह से अपना देश छोड़ना पड़ा  . एक बहुत ही सपष्ट बात इस फिल्म में कही गयी एक डाएलोग के जरिये ' आखिर पाकिस्तान निकला तो भारत में से ही है , बाप बाप होता है और बेटा बेटा . यह वह बात है जो शायद हमारे नेता नही कह सकते . एक फिल्म और है जिसे मै देखता हूँ तो आँसू निकलते है नाम है बोर्डर . इस फिल्म में कारगिल की लड़ाई दिखाई गयी है इस फिल्म में देशभक्ति के डएलोग है , जोश है . लेकिन अब की फिल्मे देखता हूँ तो लगता है आने वाले दिनों में इस देश के लोग देशभक्त काम या फिर न के बराबर होंगे क्यों की दिमाघ अब सेक्स की तरफ बढ़ रहा है . युवाओं की गलती नही है किन्तु फिल्म बनाने वालो की है . फिल्मे बनती है माई नेम इज खान , एक खान की अमेरिका में चैकिंग हो तो पूरे वर्ड को कपडे फाड़ कर दिखाओ . लेकिन जब हिन्दुस्तानी को जबरन अपने ही देश से अपने गाव , शहर से निकाला जाए तब कोई बोलने तक को तैयार नही होता . अपने लोगो अपने देश को भूल अमेरिका में खामिया धुनधने चले ये लोग भारत के मूल निवासियों की समस्याओं को मुह चिडाते नजर आते है .आज इस देश में हिन्दुओ को भाईचारे ,अहिंसा के बड़े बड़े पाठ पढाये जाते है लेकिन जिन लोगो को पाठ पढ़ाने की जरुरत है  उन्हें  कोन से पाठ पढाये जाते है ?

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

आतंकी के घर आतंकी पैदा होना ही हमारा दुर्भागया

यह एक पुरानी कहावत है राक्षस के घर राक्षस और सज्जन पुरूष के घर गुणवान ,देवता सवभाव ओलाद होती है . वैसे ये कहावत बनी है तो सोच समझ कर ही बनी बनाई गयी होगी लेकिन इसके गलत मतलब भी निकाले गये . कोई खुनी , चोर ,अथवा डाकू है उसका बेटा यही सब होगा . यदि वह अपने पुत्र को इस तरह के माहोल से दूर रखता है तो वह कैसे इन सबमे से कुछ भी होगा . मान लीजिये पाकिस्तान में किसी आतंकवादी को बेटा हुआ और वह भारत में किसी आतंकी घटना को अंजाम देने आया और किसी कारणवश अपने परिवार को भी ले आया लेकिन वह और उसकी पत्नी मारी जाती है और उसकी संतान को कोई गोद ले लेता है अच्छी शिक्षा संस्कार मिलते है क्या १८ साल बाद उसे कोई आतंकवादी का बेटा कह सकता है . रावण एक राक्षस था उसका भाई बिभीषण राम भक्त , या भक्त पर्लाहद इस तरह की प्राचीन कहानिया जो आपको केवल भारत में ही मिलेंगी उनमे भी इस तरह का सपष्ट सन्देश मिलता है . इसी तरह अगर पकिस्तान को ही लीजिये पकिस्तान में आज आतंकी क्यों पलते है क्यों की उन्हें एसी ही शिक्षा मिलती है यदि भारत में भी पाकिस्तानी शिक्षा दी जाए तो क्या भारत में भी तालिबानी विचारों के लोग जन्म नही लेंगे . पकिस्तान एक नाकाम देश तो है ही साथ ही एक एसा देश भी है जो भारत की ख़ुशी देखकर कभी चीन तो कभी अमेरिका के आगे कटोरा लेकर खड़ा हो जाता है . ये भी उसके संस्कार होंगे लेकिन पकिस्तान में भी कुछ पर्तिशत जनता एसी होगी जो ख़ुद को इन विचारों से अलग रखकर अपनी पहचान बनाना चाहती होगी . मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना है जो भीख अमेरिका और चीन जैसे देश पाक को भीख में देते है उसे सही ढंग से शिक्षा या उधोगो को बढवा देने में लगाया जाये . सभी देशो को सख्ती से पाक में प्रेम भाईचारे का सन्देश देना होगा जिससे पाकिस्तानी जनता का जीवन केवल आतंकी के बेटे जैसा न होकर भक्त पर्ल्हाद जैसा हो . लेकिन भाइयो और बहनों किसी देशी या विदेशी बुद्धिजीवी , मीडिया , नेता , या किसी देश  में इतनी हिम्मत कहा के आतंकी को आतंकी कहे और उसके बेटे को भक्त पर्ह्लाद की राह दिखाए क्यों की दाल रोटी इसी से चल रही  है . और पैदा हो रहे है राक्षस के घर राक्षस ,आतंकी के घर आतंकी पैदा होना ही हमारा दुर्भागया बनता जा रहा है

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

किसान गरीब अथवा व्यापारी ?

किसान नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर आती है मटमैले कपडे पहने हुए एक व्यक्ति की जो या तो खेत में पानी लगा रहा है या फिर कुछ बुवाई अथवा कटाई कर रहा है . लगता है गरीब वो जैसे गरीबी का मारा मजबूर . और दूसरी तरफ व्यापारी जिसके चहरे प़र हसी साफ़ कपडे . लेकिन मन में दिमाघ में चिन्ताओ का अम्बार लगा है . किसान क्या अब भी वही किसान है इसका जवाब खोजेंगे तो नही में मिलेगा . आज्ज का किसान व्यापारी से ज्यादा सम्पन्न और पैसे वाला है . न ही अब वह मेहनत है और न ही वह पसीना बहता है . संसाधनों ने किसान की दशा में काफी हद्द तक खुशहाली लाई है . वही व्यापारी के हालात आज ज्यादा बदतर है किसी भी दंगे फसाद लड़ाई झगडे में वायापरी को नुक्सान झेलना पड़ता है . लड़ाई झगड़ा हो या बंद या फिर किसी आरक्षण की आग झुलसता हमेशा व्यापारी वर्ग ही है . आखिर व्यापारी की इस दशा के पीछे जिम्मेदार कोन है राजनीति ? या फिर व्यापारी का  वोट बैंक न होना . व्यापारियों की ये हालात उनकी कमी के कारण तो नही हुए कही . कमी यह की उनका संगठित न रहना . आखिर क्या कारण है किसान को सुखा पड़ने प़र मुआवजा ,बाढ़  आने प़र मुआवजा ,और व्यापारी का नुक्सान बढ़ या किसी भी तरीके से नुक्सान हो उसका कोई वाली वारिस क्यों नही ? किसान का बेटा किसी दंगे की चपेट में आये तो वाह बीस लाख का और एक घरवाले को नोकरी . लेकिन व्यापार वर्ग से कोई बेटा हो तो  ? किसलिए ये भेदभाव क्या व्यापारी वर्ग इस देश का हिस्सा नही है . हालात इस प्रकार के है की सोचने को मजबूर करते है इन दोनों में से कोन गरीब कोन आमिर . कोन लाचार है कोन कमजोर है अथवा किसकी आवाज़ दबती जा रही है ये देश और देश के व्यापारियों को तय करना होगा .......................ये मीडिया को परखना है हम और आप को भी . आखिर यह देश चारदीवारी है . ब्राह्मण ,वैश्य ,क्षुद्र , क्षत्रिय
जय हिंद

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

इस धारावहिक की सभी घटनाये काल्पनिक है ?

इस धारावहिक की सभी घटनाये काल्पनिक है ? इनका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नही है हम ओरतो प़र हो रहे अत्याचारों का विरोध करते है?  ये लेने  आपको हर रोज टीवी चैनल्स प़र दिखाई सुनाई देती होंगी . एक ओरत है अम्मा जी जो नही चाहती गाव में लड़की पैदा हो तभी तो वह उसे गिरा देती है अथवा लड़की की माँ को जान से मरवा देती है . वाह भई वाह क्या कहानी है . लाल टिका लगाये माला पहने लोग उन ओरतो के पीछे दोड़ते है जिनके पेट में लड़की हो . जैसे उन्हें और कोई काम ही नही है ? दस दस पहलवान एक ओरत के पीछे पड़े है क्यों की वह  एक बच्ची को जन्म देने वाली है . आखिर एसा कोन सा गाव है जहा की मुखिया का काम केवल इतना है लड़की को पैदा न होने देना ? क्या अपने कोई एसा गाव देखा या सूना जहा लड़की ही नही हो . क्या आपने  एसे गुंडों की फोज़ देखि जो सभी तरह की गुंडागर्दी छोड़ दबंगई  छोड़ एक ओरत के पीछे पड़े है वह भी इसलिए की उस ओरत की कोख में एक बच्ची है . आजकल टीवी चैनल मनोरंजन कम  और जहर ज्यादा फैला रहे है ओरत और मर्द के बीच एक एसी खाई उत्पन्न की जा रही है जिसे शायद भरना कुछ सालो में नामुनकिन होगा .देश में तमाम तरह की बुराइया है परन्तु उन्हें यही एक बुराई नज़र आती है . लेकिन इसमें जितना मसाला लगाकर पेश किया जा रहा है वह सब  पारिवारिक बुनियाद को तो हिला ही रहा है साथ ही भारत के घर घर में नफरत के विस्फोट पैदा कर रहा है . आखिर इस तरह के एक्सपेरिमेंट्स सस्ती टी आर पी के लिये होते है  .  यह एक विशेष समाज प़र निशाना भी होता है उस समाज को जलील करने के लिये वाह समाज है देश का बहुसंख्यक समाज .हिन्दू समाज को जलील करने का कोई मोका टीवी चैनल्स नही छोड़ना चाहते इसीलिए तो विलेन के कोस्तुम भी भारतीय संस्कृति के होते है जिससे भारतीय संस्कृति को बदनाम किया जा सके . मै इनसे पूछना चाहता हूँ कोन सा वह धर्म है जिसमे बच्चियों के पाँव धोये जाते है उनका माता कहकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है . कोन सा धर्म है जिसने स्त्री को पूरे जगत की माँ मना है . किस धर्म में धरती को माता इश्वर को माता कहा जाता है . इन सभी बातो के जवाब ये जानते है परन्तु इन्हें हिन्दू समाज के घर घर में नफरत का बीज बोना है और उसमे हिन्दू समाज को सड़ता हुआ देखना इनका उदेश्य है

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

अखिल भारतीय पंचनद समरक समिति से पंजाबियों को उम्मीदे .मेरी भी एक परार्थना है आपसे

अखिल भारतीय पंचनद समरक समिति उन पंजाबियों का एक संगठन है जो वर्तमान पंजाब से विस्थापित होकर आये थे . पंजाब जिसका आधा टुकडा पाकिस्तान में स्थित है उस प्रांत के पंजाबी हिन्दू , सिखों को एक जुट करने के लिये  और जिन बेकसूर लोगो की जाने दंगो में गयी थी जिनका कोई दोष न था उन्हें याद करने के लिये ही इसे साधू संतो और पंजाब केसरी के सम्पादक ने खड़ा किया है . इस संगठन ,समिति में कोई जाती नही है चारो वर्गों का मिश्रण है ये समिति . जिसमे पूरे देश से आकर हिन्दू समाज के लोग अपने पितरो का तर्पण करते है और उन्हें याद करते है . आजादी के ६२  सालो के बाद पंजाबी समुदाय एक मंच प़र आने की कोशिश कर रहा है . लेकिन मै  अपने ब्लॉग के माध्यम से  अखिल भारतीय पंचनद समरक समिति के साधू संतो और राष्ट्रिय अध्यक्ष से एक प्रार्थना करता हूँ  जो मेरे मन मस्तिष्क में वर्षो से है . वह इस परकार है .
वर्षो से पंजाबी समाज जीतोड़ मेहनत कर अपने परिवार का लालन पोषण कर रहा है . अपनी जमीन , खेत , पशु , गहने , घर सब कुछ गवाने के बाद भी पंजाबी समाज ने अपनी हिम्मत नही हारी . और उसी मेहनत का फल आज पंजाबी वर्ग देश के बड़े - बड़े महकमो में अग्रणीय भूमिका निभा रहा है . धर्म कर्म से लेकर  व्यापार . फिल्म इंडस्ट्री से खेल - कूद . हर जगह पंजाबी समुदाय ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है . लेकिन अभी कुछ कमिया है कुछ खामिया है जब तक उन्हें दूर नही किया  जाता हम नही कह सकते 'ओल इज वेल  ' . जैसे आज भी पंजाबी समुदाय की महिलाओं को गरीबी के चलते काम करना पड़ता है , बच्चो को दुकानों प़र नोकरी करनी पड़ती है रेहड़ीया लगाने को मजबूर होना पड़ता है . आखिर यह सब अब तक क्यों है क्यों ओरतो को बर्तन धोने के लिये मजबूर होना पडा , क्यों बच्चो को खेलने - पढने की उम्र में रेहड़ीया लगानी पड़ी . यह सब गरीबी के कारणहै  लेकिन हमारे समाज ने उन गरीबो के लिये किया क्या है असल सवाल तो यह है . क्या हम सभी जिम्मेदारिया सरकार प़र ड़ाल सकते है ? क्या पंजाबी समाज हो या देश का कोई भी समाज हमारी उनके पर्ती कोई जिम्मेदारी नही बनती . अब सवाल यह है हम उनकी मदद कसे करे . उनकी मदद करने के लिये हर गाव हर शहर में एक कमेटी नियुक्त की जाए जो एसी महिलाओं ,एसे बच्चो को शिक्षा दे रोजगार दे . ताकि हमारे समाज की एक बेहतर छवि बने . हम मिसाल बने बाकी समाज और जातियों में कुछ एसा किया जाए पंचनद समिति द्वारा . हर घर को महीने में १०० रूपए के लिये वचनबद्ध किया जाए और उस पैसे को पंजाबियों की तरक्की में लगाया जाए . यही हमारे बजुर्गो को सच्ची श्रधांजलि होगी . यही हिन्दू संस्कार होंगे और हिन्दू समाज की छवि पूरे विश्व में और भी अधिक बलशाली होगी .

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

योग गुरु के दावो में कितना सच ?

बाबा रामदेव जिन्हें योग गुरु के नाम से दुनिया जानती है लेकिन उनकी पहचान बदल रही है . वह एक योग गुरु , सन्यासी ही नही एक अच्छे बिजनेसमेन  भी है आज भारत ही नही विदेशो में भी दिव्यफर्मेची के काउंटर है . इतना सब है परन्तु कुछ तो कमी है कही ना कही की बाबा राजनीति में भी पाँव जमा रहे है . बाबा के मुद्दे देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना , काला धन लाना है .गरीबी खत्म करना  भारत सवाभिमान जो की बाबा का ट्रस्ट  है को भगतो द्वारा  दान राशी भी मिलती है .बाबा में जो देशसेवा करने का जज्बा है क्या वह राजनीति में आये बिना पूरा नही होगा ? जब की आज बाबा के २ करोड़ से भी ज्यादा  अनुयायी है .जो हर संभव मदद दान देने को तत्पर रहते है . अब तक बाबा के ट्रस्ट को जो रुपया मिला है उस पैसे से कितने गरीबो का मुफ्त इलाज़ हुआ , कितने भूखो तक खाना पहुचा , कितने बाढ़ पीडितो को राहत मिली , कितनी गरीबी दूर हुई ?
                          यह बात न ही आजतक मेरे ज्ञान भण्डार  में है क्यों की मैंने या मेरे किसी भी दोस्त रिश्तेदार से मुझे इस तरह की जानकारी मिली . इतना जरूर है बाबा  गाडियों प़र गावो में जाकर भारत स्वाभिमान का प्रचार कर रहे है लेकिन इस तरह की कोई तस्वीर या विडिओ मैंने अब तक नही देखि जिसमे बाबा भारत के गरीबो की किसी परकार की मदद कर रहे हो . हो सकता है आपने देखि हो लेकिन मैंने न देखि हो इसके लिये मै क्षमा चाहता हूँ  . अगर कोई भाई इस बारे में कुछ बताये तो मै उसका आभारी रहूंगा . मै ये जाना चाहता हूँ की बाबा सत्ता में आने से पहले देश के गरीबो के लिये अथवा देश के लिये क्या कर रहे है .

बुधवार, 4 अगस्त 2010

कावरियो प़र लापरवाही हर बार कोई न कोई हादसा . आखिर क्यों ?

साल में दो बार आती है शिव रात्रि .करोडो कवरिये लाते है कावर .हर बार कोई न कोई हादसा . आखिर क्यों ?
कोन है लापरवाह इन सब हादसों का . कोन है है इन मोतो का जिम्मेदार . सरकार या कावरियो की लापरवाही .

या हिन्दुओ का जागरूक न होना . हर बार कावरिये किसी सडक दुर्घटना में मारे जाते है . आखिर क्यों शिव्भ्ग्त मारे जाते है . सरकारे क्यों नही देती जवाब . क्यों की कावरिये एक एसे समुदाय से है जो समुदाय अपने हक़ की बात तक नही करता . जो समुदाय है तो बहुसंख्यक परन्तु सो रहा है जैसे वह है ही नही . गहरी नींद में सो रहा है .  सदियों से . लेकिन क्या वह एसे ही सोता रहेगा . आपस में लड़ता रहेगा या शिव भगतो के साथ हुए हादसों प़र गंभीर होगा  या समझेगा देश को देशवासियों को उनकी या अपनी तकलीफों को  . अथवा अपने घर को ही देश दुनिया  समझता रहेगा .

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

भगत सिंग तो पैदा हो परन्तु .........

आज फिर से एक क्रांति की जरुरत  है .                         है ना .........
लेकिन वह मेरे आपके घर में नही पडोसी के घर में पैदा होना चाहिए . है ना
क्यों मेरे घर में क्यों नही या आपके घर्म में क्यों नही ?
मेरे लड़के को डॉक्टर ,इंजिनियर , बनना है .
है ना ?
फिर कैसे हो भगत सिंग कैसे उठाये अन्याय के खिलाफ आवाज़ ?
मेरा लड़का क्यों पड़े इन चक्कर में .
यही सोच है हम भारतीयों की . आज की ढक लो कल किसने देखा .जिन्दगी को जियो मोज लो . यही सोच तो हो गयी है हम भारतीयों की . खाओ पियो मोज करो और सो जाओ .
फिर क्यों करते हो देश की चिंता . क्यों ख़ुद को राष्ट्रवादी कहते हो जैसा चल रहा है चलने दो . कभी कहते हो बाबा रामदेव हमारा , क्या तुम्हारी देश के पार्टी कोई जिम्मेदार नही है . अगर मोज लेनी है तो क्यों करते हो राष्ट्रवाद की बाते . राष्ट्रवादी बाते करते हो तो राष्ट्रवादी बनो अपन्प्नी जिम्मेदार को समझो . मै कोई आम आदमी नही तुम भी कोई आम आदमी नही ..........इस धरती की संतान है हम इसके लिये जान देना सिखों ............
याद करो अपने पूर्वजों की कुर्बानियों को . जातियों प़र मत लड़ो लड़ो तो देश के लिये मरो तो देश के लिये .

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

काश्मिरियो प़र फिल्म ?

आजकल फिल्मो में कुछ नया दिखने लगा है .अरे आप सोच रहे होंगे मै आज भी अश्लीलता प़र लिख रहा हूँ . लेकिन आज अश्लीलता प़र नही आज बात होगी काश्मिरियो की . मासूमो की ? नई फिल्म आ रही है" लम्हा " इस फिल्म के प्रोमो देखकर लगता है की यह फिल्म कश्मीरी युवको की समस्याओं प़र है .पता नही फिल्म वाले मासूमो ? प़र फिल्म क्यों बना रहे है . चलो काश्मिरियो प़र फिल्म बन रही है तो इससे हमें क्या . लेकिन एक बात समझ में नही आती कब जाकर बनेगी कश्मीरी हिन्दुओ प़र कोई फिल्म . कब बनेगी असम के हिन्दुओ प़र कोई फिल्म ? कब बनेगी बरेली दंगो प़र कोई फिल्म ? कब बनेगी कोई पकिस्तान में हो रहे हिन्दुओ प़र अत्याचारों प़र फिल्म ?
शायद कभी नही ............
ये फिल्म वाले भी लगता है शर्मनिरपेक्षता  प़र उतारू हो गये है . माई नेम इज खान , चक दे इण्डिया , इन दोनों फिल्मो में क्या दिखाया गया . क्या दिखाने की कोशिश की गयी वही कोशिशे अगली फिल्मो में होंगी .फिल्मे समाज के लिये एक आईने का काम कर सकती है अगर समाज देश की समस्याओं को समान नजर से देखा जाए . लेकिन भाइयो हर सरकारी संसाधन प़र एक ख़ास समुदाय का पहला हक़ है . अब एक बात और लगती है कही बोलीवूड प़र भी किसी ख़ास समुदाय का पहला ...............तो नही .?

सोमवार, 14 जून 2010

गंगा को किसने किया मैला

टीवी चैनल प़र एक खबर दिखाई जा रही है जिसमे गंगा से कैंसर होने का दावा किया जा रहा है . वज्ञानिक जांच के बाद यह सब कहा जा रहा है . सालो से फैक्ट्रियो का गंदा पानी गंगा को गंदा करता रहा तब तक मीडिया क्यों सोता रहा , सरकारे सोती रही . गंगा जिसे माँ कहते है ८०% हिन्दुओ की आस्था का पर्तिक है गंगा . फिर भी सरकारों ने क्या किया मदरसों , हज यात्रियों को सब्सिडी देने वाली सरकारे गंगा के लिये करती क्या है ? . जो गंगा धार्मिक आस्था से तो महत्व रखती ही है यहा तक की करोड़ो भारतीयों की प्यास भी भुजाती है . उस नदी की सफाई के लिये सरकारों ने क्या किया . पैसा तो दिया लेकिन इतना की समुद्र में से एक लोटा निकालने के बराबर . गंगा भारत की बड़ी नदी है जिससे देश के करोड़ो नागरिको तक जल पहुचता है फिर क्यों सरकारे गंगा के महत्व को नही समझती . जिस गंगा नदी के दर्शनों के लिये विदेशो से लोग आते है उस गंगा नदी को जहर बनाने में किसका हाथ है . क्या उन लोगो का जो भारत की सत्ता प़र काबिज है परन्तु भारतीय संस्कृति का सम्मान करना नही जानते . जो विकास का नारा तो देते है लेकिन जीवन जीने का आधार जल उसका महत्व नही समझते . जो विदेशी कम्पनियों को रिझाने के लिये कुछ भी कर सकते है लेकिन भारत की प्राक्रतिक ख़ूबसूरती को न ही समझते है और न उसका सम्मान करते है . दोष आम आदमी का भी है जो आधुनिकता में बहकर भारत की संकृति को खत्म करने लगा है . हिन्दू संस्कृति को मिटाने में हमारी अध्निकता  भी दोषी है हम जिस पश्चिम की राह प़र चल रहे है . जिस सोच प़र चल रहे है उसमे अपनी पहचान अपना धर्म सब कुछ धीरे - धीरे भूलते जा रहे है .

शुक्रवार, 4 जून 2010

आतंकियों प़र एक शेर

पिछले दिनों एक नेता आतंकवादियों के घर दुःख जताने पहुचे . क्या जमाना आ गया है आतंकियों के घर दुःख जताने नेता इसलिए जा रहे है की उनकी राजनीति चमक जाए . पहले जमाना था के शहीदों के घर नेता जाते थे उनके परिवारों को सहानुभूति देने . जिस तरह से कलियुग अपने कदम बधा रहा है धरती प़र पाप और पापी दोनों बढ़ रहे है और सज्जन व्यक्तियों की जनसंख्या घट रही है . इसे देखते हुए हमारे देश में एक शेर था जो शहीदों प़र था परन्तु आने वाले सालो में यह कहावत कुछ इस परकार होगी . और इसमें तुष्टिकर्ण की नीतिया जिम्मेदार होंगी

आतकवादियो के घरो प़र लगेंगे हर बरस नेताओं के मेले
वतन को तोड़ने वालो का बाकी अब यही एक निशा होगा

रविवार, 30 मई 2010

धर्म क्या है ?

कई बार सोचता हूँ धर्म है क्या इस्लाम ,हिन्दू ,क्र्श्चियन. सभी कहते है मेरा धर्म बेहतर है शान्ति का है . फिर आपस में लड़ते क्यों है अगर सभी का धर्म शान्ति का है तो ? जब सभी शान्ति धर्म है तो क्यों लड़ते है आपस में . एक एक धर्म को समझने की कोशिश करता हूँ बार बार करता हूँ . कोई कहता है मेरा धर्म ले लो कोई कहता है मेरा ले लो . लगता है धर्म को बेच रहे है खरीद रहे है . तब जाता हूँ भारतीय धर्म की और जो न हिन्दू धर्म है और न ही इस्लाम और न ही करिश्चियन . देखता हूँ एक अजीब सी आजादी है शान्ति है कोई भी किसी को भी  मान रहा है,पूज रहा है  . पत्थर  में भी भगवान ,धरती में भी माँ , पेड़ पोधो में भी ,पशुओ में भी , पक्षियों में भी , . हर जगह इश्वर का रूप दिखता है जिन्होंने मंदिर,गुरुद्वारों , में भगवान देखा . मस्जिद ,गिरजा घरो हर जगह एक इश्वर देखा .जल से लेकर थल से लेकर गगन सभी जगह एक इश्वर को देखा . दुसरो के दुःख में इश्वर को देखा सुख में इश्वर को देखा . कोन सा धर्म था वह ? वह धर्म किसी एक का नही किसी कोम का नही वह सम्पूर्ण सृष्टि के भले में सनातम धर्म था और है . जिसमे कोई बंधिश नही , कोई जबरदस्ती नही . जिसमे योगीजन ,देवी -देवता ,पहाडो ,नदियों , पत्तो ,पड़ो , सभी को पूजा जाता है . किसी की हत्या नही की जाती कोई अधर्म नही होता . यही तो है सच्चा धर्म जिसमे प्यासे को पानी ,भूखे को अन्न मिलता है . क्रूर राक्षसों को भी दया मिलती है .वही तो है धर्म जिसमे क्षमा , दान , है . वही तो है धर्म .

बुधवार, 26 मई 2010

जरा सोचिये

चारो तरफ से घिरे है भारतीय


भारतीय चारो तरफ से घिरे है यह बात १६ आने एकदम सच है स्थिति विस्फोटक है . ग्रह युद्ध की आशंकाओं से भी इनकार नही किया जा सकता . साम्प्रदायिक दंगे तो होते ही रहते है . पाकिस्तान अपनी चालो से बाज़ नही आ रहा रोज इंतज़ार कर रहा है कब भारत को दैहलाये . बांग्लादेशी घुसपैठिये हर गाव और बड़े शहर में मोजूद है और संख्या बढती जा रही है . नक्सली चीन के इशारे और उनके हथियारों प़र जब चाहे देश को दहला रहे है ट्रेनों की पटरिया उखाड़ रहे है विस्फोट कर रहे है . विदेशी लोग भारत के टुकड़े म्तान्त्र्ण से करना चाहते है सभी का एक ही सपना है भारत के टुकड़े कर कोई न कोई भाग हथिया लिया जाए . आसान टार्गेट है समय ज्यादा . सभी ज्यादा से ज्यादा भाग प़र कब्जा करेंगे . हम विकास के झुनझुने से खेलते रहेंगे सोटे रहेंगे सेना के जवान शहीद होते रहेंगे और विदेशी विकास की नीव के ठीक नीचे बारूद बिछाते रहेंगे .

हम क्या कर सकते है हम जातियों के नाम प़र लड़ते रहेंगे अपनों का लहू बहता देखते रहेंगे . यही तो हिन्दुस्तान में होता आया है और एसा ही होता रहेगा . हमें देश से क्या लेना हम आधुनिका में अंधे हो चुके है हम निजी स्वार्थो में खो चुके है . लेकिन वो नही सोये ता में बठे है इंतज़ार में बैठे देश के रहनुमा भी सत्ता में चूर है विकास कर रहे है और हम चमचमाती सडको को देखकर ख़ुशी से कूद रहे है उछल रहे है . लेकिन क्या हमारी आने वाली पीढ़ी  भी कूदेगी  झूमेगी या इन लोगो का शिकार बनेगी .जरा सोचिये

मंगलवार, 25 मई 2010

मायावती के राज में हिन्दू देवी देवताओं का अपमान

चुनाव से पहले मायावती का नारा था 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ' इसी नारे को जनता में भुनाकर मायावती ने सत्ता का सफर तट किया था . सोशल इंजीनियरिंग का उनका फार्मूला सफल रहा . लेकिन सत्ता में आने के बाद लगता है मायावती अपने उस नारे को भुल गयी है . घटना कुछ दिन पहले की है लखनऊ से प्रकाशित एक पत्रिका अम्बेडकर टुडे’ पत्रिका का मई- 2010  के अंक में हिन्दू देवी देवताओं और वेदों के बारे में गलत बाते कही गई  है . जिस सोशल इंजीनियरिंग का मायावती दम भरती है उन्ही के प्रदेश में एसी अपमानजनक घटनाए हो रही है . क्या कोई पत्रिका बिना राजनितिक संरक्षण के एसे कृत्य कर सकती है . देखिये क्या क्या कहा गया है इस पत्रिका में हिन्दू धर्म’ मानव मूल्यों पर कलंक है, त्याज्य धर्म है, वेद- जंगली विधान है, पिशाच सिद्धान्त है, हिन्दू धर्म ग्रन्थ- धर्म शास्त्र- धर्म शास्त्र- धार्मिक आतंक है, हिन्दू धर्म व्यवस्था का जेलखाना है, रामायण- धार्मिक चिन्तन की जहरीली पोथी है, और सृष्टिकर्ता (ब्रह्या)- बेटी***(कन्यागामी) हैं तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी- दलितों का दुश्मन नम्बर-1 हैं।

इस पत्रिका के सम्पादक डॉ0 राजीव रत्न अपनी इस पत्रिका के विशेष संरक्षकों में मायावती मंत्रिमण्डल के पांच वरिष्ठ मंत्रियों क्रमशः स्वामी प्रसाद मौर्य (प्रदेश बसपा के अध्यक्ष भी हैं।), बाबू सिंह कुशवाहा, पारसनाथ मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दकी, एवं दद्दू प्रसाद का नाम बहुत ही गर्व के साथ घोषित करते हैं। क्या इस षड्यंत्र में मायावती के मंत्रियो का भी हाथ है . राजनीति को चमकाने के लिये किसी धर्म को बदनाम किया जाना जायज है . भले ही पत्रिका के मालिक ने यह मायावती को खुश करने के लिये किया हो अथवा नही  लेकिन वह यह क्यों भुल गये वह भी एक हिन्दू है . अभी यह साफ़ नही हो पाया है की मुख्यमंत्री  मायावती से इनके सम्बन्ध है भी या नही लेकिन एक बात तो तय है अगर यह खबर देश के कोने कोने तक पहुची तो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग वाली छवि को धक्का  लगेगा . एक बात समझ से बाहर है अब तक यह खबर किसी चैनल ने नही दिखाई क्या यह पत्रिका साम्प्रदायिक नही है . अगर किसी और धर्म प़र एसी टिप्पणी होती तो ?.








प्रदेश सरकार ने हालांकि विवादित पत्रिका के मई अंक जब्त करने के साथ जोन्पूर के जिलाधिकारी को उसके शीर्षक को निरस्त करने के आदेश दिए है .

सोमवार, 24 मई 2010

क्या हम लोगो ने इसलिए वोट दिए थे इन लोगो को

जब से हम आजाद हुए है तभी से भारत आतंक से पीड़ित है . पाक परस्त आतंक हो या नक्सलियों का आतंक हर समय  अपनी दस्तक देता रहता है . और अपनी दहशत छोड़ जाता है भारतीय मानस के मन प़र . जिसमे अब तक हजारो सेना के जवान और आम आदमी अपनी जाने गवा चुके है . हजारो माओ की कोख उजड़ चुकी है सेकड़ो की मांग का   सिंदूर सिंदूर छीन गया है . बच्चे अनाथ हुए है मॉस के चीथड़े लोगो ने देखे है . एसा मंजर देखकर गुस्सा तो आता ही है और दया भी आती है . लेकिन भारत सरकार इन हमलो की मूल जडो में न पहुचकर या तो राजनीति में उलझी रहती है या फिर मुआवजा देकर सब कुछ भुल जाती है . इंसान की कीमत को सरकार मुआवजों पैसो के बल प़र तोलती है क्या हमारे नेताओं ने अपना जमीर बेच खाया है . जब इन लोगो का कोई अपना जान गवाएगा क्या तब भी ये लोग मुआवज़े से संतुष्टि पायेंगे . एसी तुच्छ राजनीति है की देश की सुरक्षा उसके नागरिको की सुरक्षा में भी वोट बैंक की राजनीति में तोला जाता है . जब मीडिया में कोई मुद्दा हावी होता है तब ये लोग विकास विकास चिलाते है . गरीब दलितों के घर खाना खाते है हिन्दू आतंक चिल्लाते है . भारत की अब तक की विफल सरकारे आतंक और नक्सल प़र कोई रोक नही लगा पाई है . देश का ग्रहमंत्री कहता है उसके पास पूरे अधिकार नही है फिर क्यों वह कुर्सी प़र बैठा है क्या देश के लोगो का बहता खून देखने के लिये . पाकिस्तान से मित्रता की बाते करते है ये लोग नक्सलियों से बाते करने की पेशकश करते है ये लोग . रस्सी का साप बना कर रख दिया है इन लोगो ने  . अब दंतेवाडा , का मुद्दा मीडिया प़र नही है अब एक और मुद्दा लाये है ये लोग . ' क्या राहुल बनेंगे प्रधान मंत्री  . अरे मेरे देश के रहनुमाओं पहले वर्तमान  स्थिति को तो संभाल लो २०१४ की सत्ता हथियाने की रणनीति पहले ही तयार कर रहे हो . मीडिया भी इन लोगो का साथ दे रहा है राहुल गांधी को एक हीरो की तरह बना दिया है इन लोगो ने . गरीबो के घर खाना खाने से क्या इनके सारे पाप धुल जायेंगे .क्यों की इनके लिये खून की अपने  देश की कोई कीमत नही है घिन आती है एसी सरकारों प़र . जो अपने लोगो का खोंन बहता देखे और फिर गरीबो के घर खाना खाए .क्या हम लोगो ने इसलिए वोट दिए थे इन लोगो को

रविवार, 23 मई 2010

राष्ट्र अपमानित है

कनाडा द्वारा बी  एस ऍफ़  के खिलाफ अपमान जनक टिप्पणी की गयी बी एस ऍफ़ को हिंसक सेना बताया . यह राष्ट्र के मुह प़र तमाचा है लेकी उससे बड़ी बात केंद्र ने इस प़र कोई सख्त प्रतिक्रिया  नही दी . जिस बी एस ऍफ़ के बाल प़र आज राष्ट्र सुरक्षित है जिसके बाल प़र हमारे राजनीतिज्ञ  सुरक्षित है क्या उसके खिलाफ भारत की धरती प़र ही एसा कहना उचित है . और उपर से केंद्र का ढुल मूल रवैया .जो लोग टन - मन - धन से देश सेवा कर रहे है क्या यह बात उनके मनोबल को नही घटाती . अपनी जान प़र खेलकर जो देश की सुरक्षा कर रहे उनके खिलाफ एसी टिप्पणी .  राष्ट्र को कब तक अपमान सहना पडेगा इन विदेशियों से . एसा ही एक मामला कुछ माह पहले सामने आया था जब जर्मनी से आये सांसदों के एक शिष्टमंडल ने गुजरात के मुख्यमंत्री को हिटलर कहा था . क्या यह गुजरात की जनता का अपमान नही है . एक लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए मुख्यमंत्री को हिटलर कहना देश की जनता के मुह प़र तमाचा है लेकिन केंद्र की सरकार तब भी खामोश थी और अब भी . वैसे बी एस ऍफ़ के मामले में विदेश मंत्रालय ने कनाडा सरकार के समक्ष आपति दर्ज करा दी है . लेकिन बड़ा सवाल कब तक हमारे ही देश में हमारे ही भारतवासियों को विदेशी अपमानित करते रहेंगे . अभी कुछ देर पहले एक खबर और भी आई है उनकी तरफ से सफाई दी जा रही है ' मै इस बात प़र जोर देना चाहती हूँ की कनाडा भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का असीम सम्मान करता है कनाडा के मन में भारतीय सशत्र सेना और उससे जुडी संस्था के लिये बहुत सम्मान है . लेकिन यह तो वही बात पहले गाली दी और बाद में माफ़ी मांग ली

गुरुवार, 20 मई 2010

जागो ग्रहमंत्री जी देश का सवाल है

देश की स्थिति बिगडती जा रही है कभी नक्सली तो कभी आतंकी देश को देहला रहे है लेकिन हमारे देश के ग्रहमंत्री  कहते है उनके पास सिमित अधिकार है . आज चिदम्बरम गृह  मंत्री की कुर्सी प़र बैठे है और रोज हो रहे हमलो को देखकर ब्यान दे रहे है उनके पास सिमित अधिकार है . तो क्या उनकी सरकार ने उनके हाथ बाँध रखे है यह सीधा आरोप है अपनी सरकार प़र . फिर क्यों वे पद प़र बने है जब उन्हें काम करने की आजादी ही नही ही है . यह तो सीधे - सीधे देश की सुरक्षा और देशवासियों के साथ खिलवाड़ हुआ . एक और ब्यान देखिये गृह मंत्री जी का ' सभी राज्यों के मुख्य मंत्री साथ दे . अब इस ब्यान से सवाल यह उठता है कोन सा मुख्यमंत्री है जो साथ नही दे रहा  . छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंग जी ने तो इतना तक कह दिया ये नक्सली आतंकी है . फिर भी देश के ग्रह  मंत्री कोई ठोस निर्णय  नही ले पा रहे है . जब २६ - ११ का आतंकी हमला हुआ तब भी पूरा विपक्ष एक सुर में सरकार के साथ था . फिर भी हमले के १ साल बाद भी हाफिज़ सैयद , हेडली जैसे मास्टर माइंड भारत के हाथ नही लगे है . उलटे हम उस देश से कह रहे है की आतंकियों  प़र कारवाई करो जो इनका जन्म दाता है जिसका मकसद ही भारत की बर्बादी है . हमारी सरकार न तो आतंकियों के खिलाफ कुछ करती है और न ही अपने देश में पनप रहे नक्सली जो की तालिबानियों का रूप धारण कर रहे है के खिलाफ कोई ठोस कारवाई करती है . तो क्या चिदम्बरम जी हम यह समझे नक्सली हो या आतंक ये दोनों ही आपके बलबूते के बाहर है . देश का ग्रहमंत्री पद प़र बने रहने के लिये देश की सुरक्षा को सिर्फ इसलिए ताक़ प़र रखे है चुकी उसे पद प़र रहना है भले ही देश की जनता को रोज - रोज कभी आतंकियों का तो कभी नक्सलियों का शिकार होना पड़े . भले ही देश की १०0 करोड़ जनता भैय  के माहोल में पल - पल रोज मरे लेकिन आपको कोई फर्क नही पड़ता . आज आप  लोगो के पास पावर है आदेश देने के लिये पावर है फिर भी आप  लोग आम जनता को मरता  देख कोई कारवाई नही करते और जब विपक्ष सख्त कारवाई की मांग उठाता है  तो पता नही क्यों आप मानवता की बाते करते है . लेकिन आप लोगो  को ये नही भूलना चाहिए नक्सली हो या , आतंकी आप  तक भी पहुच सकते है क्या तब भी आप  इसी प्रकार हाथ बांधे रहेंगे . जागो ग्रहमंत्री जी  देश का सवाल है

मंगलवार, 18 मई 2010

आधुनिकता की भूख में अंधे भारतीय

भारत जो सम्पूर्ण विश्व के देशो से अलग है जहा लोग शान्ति और मोक्ष की तलाश में आते है . जब सब जगह भटक कर कुछ हासिल नही होता तब हताश होकर लोग भारत में आते है . आखिर क्यों आते है सभी को पता है भारत एक प्राक्रतिक खूबसूरती का देश है हर गाव में योगी , मंदिरों की शंख ध्वनी , गंगा जैसी पावन नदी , काश्मीर की वाडिया , उतराखंड की शान्ति , हिमाचल की ख़ूबसूरती , ये सब विदेशियों और भारतीयों दोनों को आकर्षित कर एक अलग सी शांति का अनुभव कराती है . यहा की सभ्यता छोटे बड़े का सम्मान श्रम लाज लज्जा जो पूरे विश्व में सबसे अलग और अनोखी है . इन सब चीजों के भारतीयों को पैसे नही देने पड़े और ये सब प्राक्रतिक है प्राचीन है . लेकिन अब भारत के लोग भी पश्चिम की लीक प़र चल निकले है अपने देश की खूबसूरती का बत्ठा ख़ुद बैठाने प़र तुले है . भारतीय संस्कृति को नष्ट करने में लगे है . यह काम तब से जारी है जब दो ; चार भारतीय विदेशो में शिक्षा लेने गये और उन्होंने भारत को भी वैसा ही बनाने के सपने संजोय . यहा की प्रक्रति से छेडछाड की और ये काम आज जोरो प़र है . आधुनिकता के अन्धो ने सदा अपने देश की मान मर्यादा को ध्यान में न रखकर भारतीयों को असभ्यता में धकेल दिया . और वही काम निरंतर जारी है पैसे कमाने की इस अंधी दोड़ में भारत को भी फ्रांस , इटली बनाना चाहते है .जंगलो , वनों , नदियों , पहाड़ो - पर्वतों , सब कुछ रोजगार के नाम प़र बर्बाद किया जा रहा है . हमारी आस्थाओं , संस्कार आधुनिकता  के नाम प़र सभी कुछ नष्ट - भ्रष्ट किया जा रहा है . और सरकार का इन प़र कोई प्रतिबंध नही है हम अपनी पहचान को मिटाकर कसे रोजगार पा सकते है . क्या इस तरह के जो काम भारत में चल रहे है भारत को विकसित देश बनाने के नाम प़र ये भारत में महंगाई , जमीन के रेटों में महंगाई को नही बढा रहे है जिससे आम आदमी पिस्ता जा रहा है और विदेशी कम्पनिया चाँदी कूट रही है . मक्खन  वो ले जा रहे है और भारत के १० % लोगो के हाथ लस्सी लग रही है . और बाकी के लोग इन सब के नीचे दबते जा रहे है और हम अध्निकता में यह सब देख नही पा रहे या जो लोग देख रहे है समझ रहे वे लोग आँख मिचे बैठे है

शुक्रवार, 14 मई 2010

हिन्दू मुस्लिम एकता के रोड़े

भाइयो और बहनों बहुत से लोग हिन्दू मुस्लिम एकता के ख्वाब देखकर सो जाते है . किन्तु सुबह हते ही वह ख़्वाब कांच के महल की तरह चकना - चूर हो जाते है . फिर भी वे लोग ख्वाब देखते और दिखलाते है लेकिन क्या कारण है की हिन्दू मुस्लिम एकता नही हो सकती . क्या कारण है देश में कही न कही से दंगो - अलगावाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है . वैसे इस देश में एसे मुसलामन भी है जो हिन्दुओ के साथ घुल मिल कर रहते है और सैकड़ो  सालो से रह रहे है लेकिन फिर भी दंगे और अन्य तरह की घटनाए होती रहती है . इनका कारण पहला तो यही है इस देश में बिना किसी वीजा के अवैध तरीके से बंगलादेशी , पाकिस्तानी मुसलमानों का आना और बेरोजगारी को और बढ़ाना . जिससे मुसलमान की आर्थिक दशा देखने में कमजोर लगती है लेकिन लाखो की संख्या में बंगलादेशी भारत में अवैध  रूप से रह रहे है वे यहाँ हीरे - ज्वारात लेकर नही आते . इन्ही के कारण मुसलमानों की स्थिति  बदतर हो रही है और ये लोग सरकारी नोक्रिया , और काम धंधे भी करने लगे है जिससे भारतीय मुसलमानों और हिन्दुओ का काम -  धंधा छीन रहा है . और हमारी सरकारे इन्हें निकालने की जगह इन्हें हर सुविधा उपलब्ध कराती है .  जिससे हिन्दू और मुसलमान के बीच तनाव बढ़ रहा है . जिसमे आम मुसलमान और हिन्दू पिस्ता है . दुसरा कारण यह है मुसलमानों की पुरानी और कट्टर -  पंथी सोच जिसके तहत वे लोग अधिक से अधिक ध्र्मान्तर्ण करवाना चाहते है . और इसमें साथ हमारी सरकार देती है इन लोगो का इन्हें आरक्षण , और मदरसों प़र करोड़ो खर्च कर जिससे धर्म - परिवर्तन की समस्या बढती है और जब मत परिवर्तन हो जाता है तब यह स्थिति दंगो का रूप धारण कर लेती है . परन्तु सरकारे  न तो दंगाईयो के खिलाफ कारवाई करती है और न ही कट्टरपंथियों प़र लगाम कसती है . हिन्दू मुसलमान एकता हो सकती है लेकिन कैसे आइये देखते है .
  • धर्म परिवर्तन प़र पर्तिबंध लगे
  • बंगलादेशी घुसपैठियों  को बाहर का रास्ता दिखया जाए ताकि मुसलमानों की आर्थिक दशा सुधरे
  • मदरसों को बंद कर सभी को सामान शिक्षा दी जाए ताकि मुस्लिम मानसिकता में सुधार हो
  • जो भी दंगो की पहल करे उसे सख्त सज़ा दी जाए
  • फतवों प़र नियन्त्रण कसा जाये
  • कश्मीर में धारा ३७० रद्द की जाए
  • मुसलमानों को मेवात के मुसलमानों से सिख दी जाये जहा आज भी मुसलमान ५ लाख गए पाले है और ख़ुद को कृष्ण का वशज़ कहते है
  • सभी धर्मिक आरक्षण खत्म कर आर्थिक रूप से कमजोरो को आरक्षण  दिए जाए
लेकिन क्या ये सब हमारी सरकार कर सकती है जब तक एसा नही होगा तब - तक हिन्दू मुस्लिम एकता दिन में ख़्वाब देखने के बराबर है

बुधवार, 12 मई 2010

मुस्लिम महिलाओं के लिये फतवा

कल ही मुस्लिम महिलाओं के लिये फतवा निकाला गया है की कोई भी मुस्लिम महिला उस जगह काम न करे जहा उसे मर्दों के साथ काम करना होता है अथवा जहा मर्द काम करते है . ये फतवा मुसलमानों की आजादी और आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर देगा . अगर इस फतवे को मुस्लिम-  महिलाओं ने माना तो न जाने कितनी मुस्लिम महिलाए अपना काम छोड़ देंगी . क्या ईस तरह के फतवे मुसलमानों को और अधिक पिछड़े - पण में नही ड़ाल देंगे . आज मुस्लिम महिलाए पत्रकारिता में है , राजनीति में है , स्कूलों में है , कालेजो  में है और भी कई विभागों में मुस्लिम महिलाए कार्यरत है . जिनसे इन्हें समाज में इज्ज़त और घर का खर्च चलाने में मदद मिलती है . इस तरह के फतवे निकालकर मुसलमानों की स्थिति को कमजोर किया जाता है और फिर मुस्लिमो के पिछड़ेपन और आरक्षण की बाते की जाती है . आज हिन्दू समुदाय बहुत सी बातो को त्याग चुका है और अधिकतर हिन्दुओ की खुशहाली का राज भी यही है और अपने संस्कारों को भी बचाए है . अगर हिन्दू संस्कृति में इस तरह के फतवों के लिये जगह होती तो क्या आजादी में जो योगदान महिलाओं का था वह आज होता और क्या हम इस तरह के फतवों से आजादी हासिल करते  . पुरूषों के साथ प़र फतवा निकालने से क्या होगा जब एक मुस्लिम तीन बीवी रख सकता है और जब चाहे तब तलाक दे सकता है क्या इस तरह से मुस्लिम महिलाओं को सम्मान की पद्धति से नवाज़ा जा रहा है . इस तरह के फतवे दिए जा रहे है जो की इतिहास में भी सुनने को शायद ही मिले क्या यह बाबर - के जमाने भी पुरानी सोच है .

मंगलवार, 11 मई 2010

हिन्दू विवाह एक्ट में बदलाव जरूरी

आज कल हिन्दू विवाह को लेकर मीडिया में बहस छिड रही है लेकिन क्या वाकई इस क़ानून  में बदलाव की जरूरत है . हमारे शास्त्रों में वर्णित है माँ . नानी , और परनानी का गोत्र छोड़ा जाना और पिता का गोत्र . लेकिन अंग्रेजो के बनाये क़ानून इनका विरोध करते थे वही क़ानून आज तक चले आ रहे है . और मीडिया भी इन बातो प़र घंटो बहस कर इसे दकियानूसी बाते बता रहा है .  लेकिन हिन्दू समुदाय इन संस्कारों को भुला नही है और भुल  भी नही सकता . क्या नई चीज़ के नाम प़र भाई - बहन का विवाह जायज है . जिस प्रकार से अंग्रेजो ने हिन्दुओ के रीती - रिवाजों प़र प्रहार किया था वही प्रहार आज का मीडिया कर रहा है और नई पीढ़ी को बरगलाने का कार्य कर रहा है . जब भारत का बहुसंख्यक वर्ग एक गोत्र में विवाह नही करना चाहता फिर क्यों इस तरह की बहस कर और मुद्दे को उछाल कर हिन्दुओ को अपमानित किया जाता है . क्या मीडिया अंग्रेजो की लीक प़र नही चल रहा है . खाप - पंचायतो की जायज मांग को भी पुराने ख्यालात बताया जाता है और नये के नाम प़र हर पश्चिमी गलत चीज़ हम प़र थोप  दी जाती है . और भारतीय समाज इन सब बातो का खुलकर विरोध भी नही करता . एसा ही लिव इन रिलेशनशिप क़ानून   में हुआ.  मीडिया क्या चाहता है जो भी पश्चिमी देशो में चल रहा है वही ईस देश में भी चले . और हिन्दुओ की आस्था तार - तार होती रहे . सदियों से जिस गलत विचारों और गलत सभ्यता में कुछ देश चल रहे हम भी उन्ही के क़ानून अनुसार चले . यह बाते सिद्ध करती है की आज भी राज अंग्रेजो का ही है वह जो चाहते है वह इस देश प़र थोप देते है और हिन्दू बेचारा घर बैठ कर मन को मसोस कर बैठ जाता है . पता नही हमारे सांसद और सरकार , बुद्धिजीवी भी इन लोगो प़र लगाम क्यों नही कसते . जब की यह रीती- रिवाज ऋषि मुनियों के गहरे अनुभवो और रिसर्च के बाद बने है  क्या इस  तरह से मीडिया किसी और धर्म को कटघरे में खड़ा कर सकता है अथवा हिदुओ की ही सहनशीलता का गलत फायदा उठाया  जाता रहेगा .

सोमवार, 10 मई 2010

हिन्दू धर्म प़र ऊँगली उठाने वालो के लिये एक लेख

मेरी यह पोस्ट उन लोगो के लिये है जो लोग अक्सर हिन्दू धर्म प़र ऊँगली उठाते है और प्रतिदिन बखेड़ा खड़े करे रहते है . तभी कुछ दिनों से मै भी कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा था . जो मेरे ही नही हर हिन्दू के मन में भी उठते है . उन सवालों के जवाब तलाशने के लिये मै कई साधुओ के पास गया और जितनी जानकारी मै एकत्रित कर सका वह प्रस्तुत है उसके कुछ अंश .मै समझता हूँ टीवी प़र धारावाहिकों के माध्यम से हिन्दू धर्म प़र जो दुष्प्रचार किया जा रहा है वह भ्रम लोगो में फैलना कम होगा और लोग जागृत होंगे .




क्यों करते है तुलसी है पूजा =हिन्दू स्तरीय तुलसी की पूजा अपने सोभाग्य एवं वंश वृद्धि के लिये करती है . र्रमयं कथा में वर्णित एक परसंग के अनुसार राम दूत हनुमान जी जब सीता का पता लगाने गये तो वहा उन्होंने एक घर के अंगन में तुलसी का पोधा देखा जो की विभिष्ण का घर था उन्होंने तुरंत अनुमान लगा लिया की यह किसी धर्म परायण व्यक्ति का घर है अर्थात तुलसी पूजा की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है .
वज्ञानिक अर्थ  = तुलसी की पतियों में स्क्राम्क ' कितानुओ ' को मारने की अद्भुत शक्ति होती है . तुलसी एक दिव्य ओषधि का पोधा है . जुकाम खासी , मलेरिया आदि में लाभदायक है . इतना ही नही केंसर जैसी भयानक बिमारी में भी ठीक करने में लाभदायक है .
क्यों हिन्दू धर्म में मृतक की अस्थियो को गंगा में प्रवाहित करते है = हिन्दुओ की धार्मिक आस्था के अनुसार मृतक की अस्थियो को गंगा में प्रवाहित करने से मृतक की आत्मा को शान्ति मिलती है .
वज्ञानिक अर्थ = वज्ञानिक प्रिक्ष्नो से यह निष्कर्ष निकला है की अस्थियो में फास्फोरस अत्याधिक मात्रा में पायी जाती है जो खाद के रूप में भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक है . गंगा नदी के जल से हमारी अन्न उपजाने वाली जमीन की सिचाई होती है . जमीन की उर्वरा शक्ति बढाने में फास्फोरस सहायक है जो की गंगा के जल में अस्थिया प्रवाहित करने के कारण बहुत अधिक मात्रा में निहित है
 
आज के लिये इतना ही वक्त की कमी के कारण बाकी का लेख कल लिखा जाएगा . लेकिन इन दो बातो से भी यह प्रमाणित होता है की जिन बातो को आज रुढ़िवादी बताया जा रहा है और प्रहार किये जा रहे है वे बिलकुल निराधर है और ऋषि मुनियों ने जो परम्पराए बनाई है उनका वज्ञानिक अर्थ भी है

रविवार, 9 मई 2010

एक तरह चका चोंध ' और दूसरी तरफ गरीबी

जब भी घर से बाहर निकलता हूँ मन में एक अजीब सी पीड़ा होती है छोटे - छोटे बच्चे बेच रहे है सडको प़र पानी के पतासे . कोई फटे हुए कपडे पहना भीख मांग रहा है तो कोई पढ़ाई से वंचित है . कोई सर्दी से ठिठुर  रहा है तो कोई गर्मी में लू से तप रहा है . तभी देखता हूँ आगे चलकर शानदार पार्क बना है लगभग १४ एकड़ जमीन में मन को शांति मिलती है देश तरक्की प़र है . बाजारों की चका चोंध देखकर लगता है रोजगार में भी भारत आगे निकल रहा है . तभी लाइनों में भीख का कटोरा लिये खड़े है कुछ बच्चे ,  कुछ बजुर्ग ,  कुछ महिलाए . मन सिहर उठता है तभी एक बजुर्ग कटोरा लेकर एक बड़ी सी दूकान में जाता है दूकान मालिक उसे ५० पैसे कटोरे में डाल देता है . जैसे ही सुबह हुई तो स्टेशन  से देहली की गाडी पकड़ी और बैठ गया मै उसमे  . तभी एक बच्चा आया हाथ में कुछ संगीत का यंत्र लिये . तभी कुछ आवाज़ आई ' गरीबो की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा . तभी एक दोस्त जेब से एक रुपया निकलता है और उसकी कटोरी में तेज़ से डालता है और कहता है ' चल बे . एसे सारे रास्ते कभी कोई मांगने आ रहा है तो कभी कोई चाय , चाय , छोले - छोले . तभी अपना स्टेशन आया और में गाडी से उतरा शहर में लाखो रूपए की महंगी गाडिया थी बड़े बड़े मोल  . दुकाने , लाइटे , चोडी - चोडी सड़के , बड़ी महंगी गाडियों का काफिला जा रहा था कोई भी गाडी १० लाख से कम नही थी चका चोंध से भरा शहर था नेता जी  महंगी गाडियों में मिनरल वाटर की बोतल का पानी पीते हुए सर से गुजर रहे थे . सारा शहर घुमा एक चमकदार शहर है दिल्ली . शाम को वापस ट्रेन  में बैठा फिर वही सब झोपड़ पट्टी बच्चे चाय बेचते . मन में एक सवाल कुरेद रहा था कही आधुनिकता और विकास के नीचे ये तबका दब न जाए . बड़ी बिल्डिंग के नीचे मजदूर न दब जाए . एक तरह चका चोंध ' और दूसरी तरफ गरीबी ठण्ड से सिकुड़ते बच्चे जो आजादी के ६३ सालो बाद भी एक पैसा मांग रहे है गा रहे है . २ रोटी के लिये हाथ फैला रहे है भले ही कितने मदर दे मना लो , फादर  दे मना लो  , चिल्ड्रन  दे मना लो लेकिन अंतिम सच्चाई तो यही है . आज भी बजुर्ग , महिलाओं , और बच्चो का ये हाल है युवा का भी कुछ एसा ही हाल है . यही है भारत  जो की मीडिया और नेता और ख़ास आदमी देख नही पाता समझ नही पाता जब की ये भी जीव है भारतीय है

अमेरिका में आतंकी हमला नही होता ' कुछ सिखों

अमेरिका ९ - ११ के बाद कोई हमला न तो हुआ है और अभी होने की कोई उम्मीद भी नही है . भारत २६ - ११ के बाद भी हमले हुए और उससे पहले भी . इन दोनों देशो को देखिये आखिर क्या कारण है इन दोनों देशो में इतना फर्क है . एक देश आतंक से डरता है तो दुसरा कुछ भी नही करता है . अमेरिका आतंक से डरता है और चोक्न्ना रहता है तभी तो ९ -११ के पश्चात अमेरिका में एक भी हमला नही हुआ वह स्थिति को भाप गया और वह चेत गया . लेकिन भारत में आतंक को लेकर दहशत भी है परन्तु उसके खिलाफ करवाई नही . हम एक हमला झेलकर सब कुछ बहुल जाते है और अमेरिका बम की गंध सूंघकर भी पाकिस्तान , इरान जैसे देशो को अपनी गर्जना से ही डरा देता है .हम लोग बार - बार उस देश से कहते है आतंक के खिलाफ करवाई करे और अमेरिका उस देश को ही तह नहस कर देता है जहा से उसके खिलाफ कोई खतरा हो . वैसे आज का जमाना भी यही है या तो तुम सामने वाले प़र ख़ुद पकड मजबूत करो नही तो वो तुम्हे ही ख़ा - निगल  जाएगा . लेकिन अपन न तो पकड मजबूत कर रहे और न ही उसे मजबूर कर रहे है की वो आतंकियों प़र लगाम कसे बल्कि अपन तो दोस्ती की पींगे बांधते आये है . वो जितना हमें देश को नुक्सान पहुचाता है हम उतने उसके करीब होते है . एक अमेरिका है जो उसकी तरफ ऊँगली करता है वह उसकी बाजू उतार लाता है . सभी कहते है मेरा भारत महान लेकिन आने वाली पीढ़ी पूछेगी क्या हम इसलिए महान है की हमने आतंक को  सहा  उस प़र कोई कारवाई नही की अपनों को खोकर हम कैसे बनेंगे महान . इतिहास में भारत ने  बहुत  से युद्ध जीते है लेकिन देश के भीतर जो युद्ध चल रहा है क्या वह हम जीत पाएंगे

शनिवार, 8 मई 2010

विस्फोटको के ढेर प़र भारत

अभी - अभी खबर मिल रही है अमृतसर में विस्फोट से लदी  एक कार पकड़ी है . और बमों को डिफुज़ की करवाई चल रही है . यह आतंक की साजिश है अधिकारियों का मानना है . लेकिन एसी साज़िशे रोज हो रही है कभी बंगलूर तो कभी डेल्ही , मुंबई हर जगह बम मिलने की खबरे आती है कभी अफवाहे आती है . लेकिन अफवाह हो या घटना एक बात तय है भारतीय आज बारूद के ढेर प़र बैठे है और एक डर की जिन्दगी जीने को मजबूर है . रोज - रोज के आतंकी साजिशो और अफवाहों ने भारतीयों को बहुत ही डरा सा सहमा सा दिया है . क्या ये सब यु ही चलता रहेगा हम यु ही डर - डर कर जीते रहेंगे . आखिर ये आतंकवादी हमारी धरती में घुसकर कैसे अपनी साजिशो को अंजाम दे जाते है अगर दे जाते है तो इन प़र कारवाई क्यों नही होती . जब तक इनकी कारवाइयो का जवाब हम मुहतोड़ नही देंगे तब तक भारतीय समाज में डर की भावना पनपती रहेगी . हम एक आजाद देश के नागरिक है हमारे पास बेहतरीन सेना है सेना के पास हथियार है फिर भी हम डर के जीने को मजबूर है . . आखिर इन आतंकवादियों का मुह क्यों नही तोड़ा जाता हम आज अपनी ही जमीन प़र अपने लोगो का लहू बहता देख रहे है  . बड़े शहरो में ट्रेनों प़र जाने से डर , भीड़ भाड़ वाले इलाको में जाने प़र डर , दहशरा दिवाली जैसे त्यौहार मनाने में भी डर हर जगह डर ही डर . कब तक हम विस्फोट के ढेर प़र बठे रहेंगे और उस ढेर प़र क्या हम सुरक्षित है . आतंकवादियों की धमकियों से अलर्ट जारी हो जाते है रेड अलर्ट , हाई अलर्ट . लेकिन उन प़र विस्फोटो से पहले देश के नागरिको का खून बहने से पहले कारवाई क्यों नही होती . कब तक किस्तों में सास लेते रहेंगे हम कब तक सरकारे मुआवजों से जख्मो को भरती रहेगी . क्या भारतीय नागरिको की कीमत पैसो से ज्यादा कुछ नही है आतंक का शिकार बनो और मुआवजा लो नोकरी लो . और बहुल जाओ सब कुछ फिर से कोई हमला झेलने को तैयार रहो .

शुक्रवार, 7 मई 2010

मुस्लिम बहुल इलाको में ही दंगे क्यों होते है

देश में अब तक जहा भी दंगे प्रसाद हुए है ज्यादातर मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में ही हुए है . हम ज्यादा दूर जाए तो हम पायेंगे बटवारे के दोरान भी पंजाब , सिंध , बलूचिस्तान से ही शुरुआत हुई थी . जो वर्तमान में इस्लामिक राष्ट्र है . और वर्तमान में भी स्थिति कुछ एसी ही है बरेली और हद्राबाद के दंगे कुछ एसा ही दर्शाते है . कुछ लोग कहते है हिन्दू बहुल क्षेत्रो में मुस्लिम से भेद - भाव होता है उन्हें बेवजह तंग किया जाता है क्या यह बात सच है . अगर एसा होता तो क्या हरियाणा , महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश , राजस्थान जैसे राज्यों में मुसलमानों की जनसंख्या इतनी बढ़ सकती . आज भी बहुत से मुसलमान यह मानते है की हिन्दुस्तान में पाकिस्तान के मुकाबले मुस्लिम ज्यादा खुशहाल और सम्पन्न है . फिर एसा क्यों होता है की जनसंख्या बढ़ने प़र दंगे शुरू हो जाते है हिन्दुओ को खदेड़ा जाता है जब की आज जहा जिस भी राज्य , शहर अथवा गाव में मुसलमानों की आबादी ५ % भी नही है वहा भी मुसलमानों को किसी प्रकार की कोई तकलीफ नही है . मुसलमान अच्छी तरह से अपने बीवी बच्चो का पालन पोषण कर रहे है और खुशहाल भी है . लेकिन ध्र्मान्तर्ण के जरिये मत परिवर्तन होने प़र ही दंगे शुरू हो जाते है क्या यह हिन्दुओ के साथ अत्याचार नही है या यह हमारी सहिष्णुता का गलत फायदा है . मै सभी मुसलामनो का विरोध नही करता लेकिन इतना जरुर समझता हूँ जो मुसलमान राष्ट्रवाद की बाते करते है और मानवता को भली - भाति समझते है उनकी आवाजो को भी कट्टरपंथियों द्वारा दबा दिया जाता है . और कुछ एसे भी होते है जो मत परिवर्तन प़र अपने सुर ही बदल देते है और आक्रामक रूप अख्तियार कर लेते है . शान्ति का सन्देश इस्लाम भले ही देता हो लेकिन मुस्लिम बहुल इलाको में शान्ति क्यों नही टिकती क्यों पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते है क्यों घरो दुकानों में आग लगा दी जाती है जैसा की बरेली में हुआ . और तब वे लोग इस सब को बंद करने की अपील तक नही करते फिर क्यों बार - बार मुसलमानों प़र अत्याचार की बाते करते है आखिर क्यों होता है एसा . क्या उनका मकसद यही होता है. वैसे देखा जाये तो सभी दंगो की जड़ है ध्र्मान्तर्ण फिर इस धर्मान्त्र्ण प़र प्रतिबंध क्यों नही लगाता . जो विशेषाधिकार अंग्रेजो ने दिए थे वे आज तक चालू है . जब की स्थिति आज पहले से भी  ज्यादा विस्फोटक है . क्या हम अंग्रेजो की लीक प़र ही चलते रहेंगे या हमारे देश में कुछ बदलाव होगा जिससे हिन्दू - मुस्लिम जनसंख्या बढ़ोतरी प़र ध्यान न देकर देश की तरक्की के बारे में सोचे . और देश मजबूत हो

मुस्लिम बहुल इलाको में ही दंगे क्यों होते है

देश में अब तक जहा भी दंगे प्रसाद हुए है ज्यादातर मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में ही हुए  है . हम ज्यादा दूर जाए तो हम पायेंगे बटवारे के दोरान भी पंजाब  , सिंध , बलूचिस्तान से ही शुरुआत हुई थी . जो वर्तमान में इस्लामिक राष्ट्र है . और वर्तमान में भी स्थिति कुछ एसी ही है बरेली और हद्राबाद के दंगे कुछ एसा ही दर्शाते है . कुछ लोग कहते है हिन्दू बहुल क्षेत्रो में मुस्लिम से भेद - भाव होता है उन्हें बेवजह तंग किया जाता है क्या यह बात सच है . अगर एसा होता तो क्या हरियाणा , महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश ,  राजस्थान जैसे राज्यों में मुसलमानों की जनसंख्या इतनी बढ़ सकती . आज भी बहुत से मुसलमान यह मानते है की हिन्दुस्तान में पाकिस्तान के मुकाबले मुस्लिम ज्यादा खुशहाल और सम्पन्न है . फिर एसा क्यों होता है की जनसंख्या बढ़ने प़र दंगे शुरू हो जाते है हिन्दुओ को खदेड़ा जाता है जब की आज जहा जिस भी राज्य , शहर अथवा गाव में मुसलमानों की आबादी ५ % भी नही है वहा भी मुसलमानों को किसी प्रकार की कोई तकलीफ नही है . मुसलमान अच्छी  तरह से अपने बीवी बच्चो का पालन पोषण कर रहे है और खुशहाल भी है . लेकिन ध्र्मान्तर्ण के जरिये मत परिवर्तन  होने प़र ही दंगे शुरू हो जाते है क्या यह हिन्दुओ के साथ अत्याचार नही है या यह हमारी सहिष्णुता का गलत फायदा है . मै सभी मुसलामनो का विरोध नही करता लेकिन इतना जरुर समझता हूँ जो मुसलमान राष्ट्रवाद की बाते करते है और मानवता को भली - भाति समझते है उनकी आवाजो को भी कट्टरपंथियों  द्वारा दबा दिया जाता है . और कुछ एसे भी होते है जो मत परिवर्तन प़र अपने सुर ही बदल देते है और आक्रामक रूप अख्तियार कर लेते है . शान्ति का सन्देश इस्लाम भले ही देता हो लेकिन मुस्लिम बहुल इलाको में शान्ति क्यों नही टिकती क्यों पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते है क्यों घरो दुकानों में आग लगा दी जाती है जैसा की बरेली में हुआ . और तब वे लोग इस सब को बंद करने की अपील तक नही करते फिर क्यों  बार - बार मुसलमानों प़र अत्याचार की बाते करते है आखिर  क्यों होता है एसा . क्या उनका मकसद यही होता है

कसाब की फ़ासी के बाद और पहले के कुछ सवाल

कसाब को फ़ासी मिल गयी सजा का एलान हो गया कोर्ट ने फैसला सूना दिया है . लेकिन कसाब की फ़ासी से पहले और बाद में कुछ सवाल उठते है और उठते रहेंगे  . जब तक यह सवाल और इनके जवाब नही मिलते भारतीय खून के आसू रोते रहेंगे .
  1. कसाब के साथियो प़र कारवाई कब होगी
  2. कब तक एसे क्साबो अफ्ज़लो को हम झेलते रहेंगे
  3. कब तक आतंक की फसल लहराती  रहेगी और हमारे देश को तबाह करती रहेगी
  4. क्या एसे ही भारतीयों का खून बहता रहेगा
  5. कब तक हेडली जैसे लोग भारत को नुक्सान पहुचाते रहेंगे
  6. क्या कसाब की फ़ासी के बाद आतंक खत्म हो जाएगा
  7. पाक में चल रहे आतंकी शिविरों प़र कारवाई कब होगी
ये एसे सवाल है जो भारत के लोगो को न तो आतंक के खोफ से निकलने देते है और न ही भारत को आर्थिक दृष्टि  से मज़बूत होने देते है . कसाब को फ़ासी तुरंत दे दी जाए तो बेशक एक सन्देश पहुचेगा लेकिन इस पूरे प्रकरण में पकिस्तान के कई आतंकी संगठन शामिल थे उन प़र कारवाई का न होना उनके होसलो को और बुलंद करता है . जिन लोगो को जन्नत और हुरो के सपने दिखाए जाते हो क्या वे लोग भारत में फिर से हमले करने की कोशिश नही करेंगे  . फ़ासी कसाब के गुनाहों का हिसाब किताब है लेकिन जो लोग इन्हें आतंकवादी बनाते है और नित्य नये - नये षड्यंत्र रचते है उनकी लगाम कब कसी जायेगी . या फिर से कोई कसाब १६६ लोगो का लहू बहायेगा  और बदले में हम उसे फ़ासी दे देंगे

बुधवार, 5 मई 2010

इस देश में अच्छे मुसलमानों की कोई कमी नही

एक आम मुसलमान जो मेहनत ,मजदूरी  कर अपना और अपने बच्चो का पेट पाल रहा  है  उसे दंगे प्रसादों से क्या लेना . सच में आम मुसलमान भारतीय संस्कृति में घुल मिल भी सकता है और एसे बहुत से मुसलमान है भी . लेकिन क्या कारण है वही आम मुसलमान भी दंगो की भीड़ में शामिल हो जाता है . देश के संविधान को मानने  से इनकार करने अथवा उसका विरोध करने लगता है . इसका कारण सपष्ट है और बिलकुल पारदर्शी है जो मुसलमान को एक भारतीय से पहले  एक मुसलमान बना देता है . रोज - रोज के दुष्प्रचार कभी कैसे फतवे तो कभी वैसे  जो देश हित में नही है जो देश की विचारधारा से मेल नही खाते . मुसलमानों के लिये अलग पढ़ाई इस तरह की बाटे अथवा मुद्दे जो देश का विरोध करती है यही वह चालबाजो की रणनीति है जो आम मुसलमान को भारत से अलग करती है . जिससे देशभक्त मुस्लिम की मानसिकता को भी परिवर्तित कर दिया जाता है . भारत में एसे बहुत से मुस्लिम मिल जायेंगे जो मंदिर में भी माथा टेकते होंगे लेकिन मुल्ला - मोलवी इनकी सोच में परिवर्तन कर देते है . और टकराव की स्थिति को उत्पन्न कर देते है .हिन्दू किसी भी जगह मंदिर - मस्जिद - गुरुद्वारे चर्च कही भी जा सकते है और सभी का सम्मान करते है . इसी तरह कई मुस्लिम भी भारतीय संस्कृति में घुल - मिल गये है लेकिन उन्हें यह अहसास कराया जाता है तुम अल्लाह के बन्दे हो . तभी मुस्लिम समाज पूरे विश्व में अलग - थलग पड़ता जा रहा है . मंदिर जाने  या किसी तरह की पूजा अर्चना प़र भी फतवे निकाल दिए जाता है कभी वन्दे मातरम प़र फतवे निकाले जाते है और मुस्लिम को एक अलग मानसिकता में ड़ाल दिया जाता है . और यही दंगे प्रसाद की जड़ है इसी तरह की बाटे हिन्दू - मुस्लिम एकता नही होने देती और हम खो देते है कई राष्ट्र भगत .

लिव इन रिलेशनशिप ' शादी से पहले रिश्ते कितने जायज

भारत में लिव इन रिलेशनशिप ' को मान्यता मिलने की बाटे हो रही है . कुछ परसेंट लोग एसे रिश्तो से सहमती जता रहे है . लेकिन भारत के सभ्य लोग जो आज भी अपने देश की संस्कृति से जुड़े है वह इसे गलत मानते है . टीवी प़र बहस छेड़ी जा रही है  बोलीवूड की हीरोइनों को मीडिया इस प़र अपनी राय परकत करने के लिये स्टूडियो में ला रहा है . लेकिन यह मुद्दा मात्र बोलीवूड से जुड़ा नही है यह पूरे देश की सभ्यता संस्कृति से जुड़ा एक सवाल है . यह सभ्यता और असभ्यता की लड़ाई है . भले ही कुछ परसेंट लोग इसे जायज माने लेकिन भारत की जनता क्या चाहती है यह भी तो दिखाया  जाना चाहिए .इस प़र भी कोई सर्वे होना चाहिए . इस  तरह के रिश्तो को अगर कानूनी मान्यता मिलने लगी तो शादी ब्याह जसे पवित्र रिश्ते के क्या माईने रहेंगे . पश्चिमी संस्कृति से पश्चिम के लोग भी अब उब चुके है और पश्चिम में लोग शान्ति की तलाश में भटक रहे है तो क्या इस तरह की बाते भारत के लोगो में कैसा सन्देश देंगी . क्या प्रभाव  पडेगा भारत प़र इसका भारत को भारतीय सभ्यता से जाना जाता है लेकिन भारत में बढ़ रहा पश्चिमी प्रभाव भारत को असभ्यता की और ले जाएगा . जिसमे न तो रिश्तो की कोई अहमियत होगी और न ही कोई जरुरत . क्या यह वंश परम्परा खत्म होने की तरफ पहला कदम तो नही है

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

कृपया मदद करे

मै अभी कुछ ही माह से ब्लोगिंग की दुनिया में आया हूँ आप लोगो के प्यार आशीर्वाद से जो बात मुझे गंभीर लगती है मै उस प़र लिख देता हूँ . मै आपसे कुछ मदद चाहता हूँ क्यों की आप लोग बहुत सालो से ब्लोगर हो इसलिए मेरे कुछ सवाल है आपसे कृपया उतर देने का कष्ट करे . मै भडास , दैट्स हिंदी  , और रफ़्तार जैसी वेबसाईट्स की सदस्यता लेना चाहता हूँ क्या यह साइटे भी ब्लोगवाणी की तरह निशुल्क है अथवा इनमे किसी प्रकार का कोई शुल्क लगता है . आपसे निवेदन कृपया बताये और जागरण प़र ब्लॉग डालने प़र भी किसी किस्म का कोई शुल्क है या वह निशुल्क है

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

फतवों और फरमानों का देश


भारत में लोकतंत्र भले ही बहाल हो  भले ही क़ानून  , प्रशासन हो परन्तु अब भी फतवों पंचायती फरमानों का डोर आरम्भ है . आखिर क्या कारण है की लोग ख़ुद को क़ानून से उपर समझ रहे है . क्या कारण है फतवों और पंचायत के फरमान हर माह मीडिया प़र छा जाते है . आजादी के ६३ सालो बाद भी पंचायतो प़र किसी जाती विशेष का अधिकार है फैसला , सज़ा देने का हक़ भी उसी जाती को है . भले वह फैसला कोई थोपा हुआ हो थोपे हुए फैसलों प़र भी सरकारे पुलिस हाथ बांधे क्यों खड़ी रहती है . क्या यह वोट बैंक की राजनीति है तभी सरकार ,पुलिस  कोई कारवाई नही करती . एसा क्यों होता जा रहा है जिस क्षेत्र में जिसकी संख्या अधिक वही उसका मालिक . क्या यही है समानाधिकार . वोट की राजनीति में दबंगई को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है अराजकता , अन्याय बढ़ने के कारणों को और शैह देने वाले कोन लोग है . पंचायत समाज को सही दिशाए देने के लिये होती है लेकिन आजकल की पंचायते जाती जैसी तुच्छ  मानसिकता में सिमट कर रह गयी है .  लेकिन इन्हें एसी मानसिकता प्रदान किसने  की फतवे कैसे भी हो लेकिन किसी किस्म की कोई भी करवाई का नही होना क्या दर्शाता है . इस तरह के फतव , पंचायती हुकूमत तो राजो , महाराजो के समय में होने का भी उल्लेख नही है . तब भी राजा का दरबार न्यायालय हुआ करता था लेकिन हाल कुछ एसा है जिसकी लाठी उसकी भैंस . लेकिन इन्हें चोधरी बनाने वाले लोग कोन है जिनके कारण इस  सबमे आम इंसान पिसा जा रहा है आज आम आदमी को ठीक से साफ़ पानी पिने तक की आजादी नही है और इन लोगो को अपने फरमान थोपने की . ये फतवे और ये दबंग लोगो का रवैया भारत को कहा ले जा रहे है समाज को अलग - थलग करने का हथकंडा भी यही से शुरू होता है . एक समाज को हर किस्म की भागीदारी दोऔर बाकी के लोगो के लिये कोई पॅकेज नोकरी कुछ नही .  ताकि बगावते हो और भारत के लोग जाती के नाम प़र लड़ते रहे मरते रहे . लेकिन ये चाहता कोन है कही यह फिर से भारतीयों को कमजोर करने की साज़िश तो नही जिसे भारत के लोग समझ नही पा रहे है

खाने में सुधार लाये बच्चो के सुनहरे भविष्य के लिये जागरूक हो



भारत मै शहर तेज़ी से बढ़ रहे है और उसी तेज़ी से खानपान भी बदल रहा है . खानपान महज़ स्वाद का मुदा बनकर रह गया है चाहे स्वाद के लिये स्वास्थ्य से समझोता ही क्यों न करना पड़े . एसा खानपान स्वाद की वजह भारतीयों को कायल तो बना रहा है लेकिन हड्डियों मै कमजोरी पैदा कर रहा है . शहर हो या गाव अब तो हर जगह ही यह प्रचलन चल निकला है . घी , दूध , दही , ताज़ा मखन खाने वाले लोग आइसक्रीम खाने प़र बड़ा ही गर्व अनुभव करते है . आज से लगभग १० साल पहले तक हरियाणा में सुबह का नाश्ता लह्स्सी घी और बाजरे के रोट और चटनी हुआ करते थे लेकिन अब चाए ब्रेड या बिस्कुट . जेम , ब्रेड टोस्ट और भी पता नही कितने पदार्थ सवाद से भरपूर . जो केवल स्वाद देते है और यही आदत आगे चलकर मजबूरी का रूप धारण करती है .लेकिन माँ बाप इसे मजबूरी बनाने में अहम भूमिका निभा रहे है आखिर क्यों . जो खाना शारीर को लगता नही है वही अपने बच्चो को खिलाया जा रहा है बच्चो के साथ कैसा खिलवाड़ है यह . एसा करने वाले दो तरह के माँ - बाप है १ वह जिन्हें सुबह दफ्तर जाना होता है और एक वह जिन्हें अमीरों के चोचले करने होते है या जो सुबह प्राथी आलू की गोभी की या दही जमाने में आलस बरतते है और अपना समय बच्चो में न देकर अपने जीवन का लुत्फ़ उठाते है . लेकिन आगे चलकर यह खाना बच्चो को उनकी हडियो को विकसित नही होने देता और उनकी हड्डिया चुने की तरह हो जाती है जो मजबूत नही होती .और व्यक्ति समय से पहले बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है . जिससे की मानसिक संतुलन और शारीरक संतुलन बिगड़ सकता है आज कल खान पान में बहुत अधिक परिवर्तन आ गया है जो भारतीयों को बीमारियों की और ले जा रहा है . लेकिन माँ - बाप सही खुराक अपने बच्चो को दे तो वह भी एक बेहतर जीवन जी सकते है . अगर आपका बच्चा १० से १२ साल का है तो आप उससे केवल अच्छा पढने की ही उपेक्षा न करे उसके शारीर प़र भी ध्यान . बाजारों के चटर - पटर से बचाए और अपने पैसो को सही इस्तेमाल करे . अगर १६ से १८ साल की उम्र आपके बच्चे की है तो आप उसे कम से कम  १ ग्लास जूस रोजाना पिलाए . और बर्ह्म्चार का पालन कराए सुबह ४ या चाह बजे उठाकर आप उसे दोडाये . शुरुआत १ किलो मित्र से करे बाद में धीरे - धीरे बढाकर इसे आप चार किलो मित्र तक ले जाए . जिन बच्चो का स्पोर्ट्स में मन लगता है उन्हें १६ साल से रेस शुरू कर देनी चाहिए . स्पोर्ट्स में कारीअर भी है और नाम भी यश , पैसा सभी कुछ . लेकिन इस सब के लिये माँ - बाप के मार्गदर्शन की जरूरत होती है .  यह सब सवच्छ  भोजन से ही हो सकता है

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

अछे कर्म करने से आगे का भाग्य सुधार सकता है


दुखो के आने का कारण क्या होता है मनुष्य के कर्मो का फल . कर्म दो प्रकार के होते है एक भले कर्म और दुसरा बुरे . जब मनुष्य साधन - सम्पन्न हो जाता है तो वह जमकर उत्पात मचाता है और सभी धर्म कार्यो को भूलकर इश्वर भक्ति को भूलकर केवल रुपया कमाता है अथवा कमाए हुए रुपयों को खुलकर जीता है उनका आनन्द लेता है . मोह - माया मै डूबा मनुष्य अपने मित्रो से भी मुह मोड़ता है और कई बार परिवार भी उसे कोई ख़ास मैने नही लगता . वह सब कुछ गलत अच्छा खाने लगता है पश्चिमी सभ्यता का हो जाता है और अपनी आस्थाओं के साथ खिलवाड़ भी कर जाता है या उन्हें अंधविश्वास बताकर उनका अपमान करने लगता है . लेकिन समय चक्र जब सुखो का पूरा होता है तब धीरे - धीरे किसी न किसी तरीके से कर्मो का फल सामने अता है और मनुष्य या तो गरीब हो जाता है अथवा कोई बिमारी से गर्स्त भी हो जाता है . फिर भी बहुत सालो तक उसका घमंड नही टूट पाटा क्यों की वह होश मै नही होता . और जब गरीबी - दुःख हद्द से बढ़ते है तब वह हर मंदिर मै जाता है और ज्योतिषियों के पास जाता है . लेकिन ज्यादा समय ज्योतिषियों के पास ही जाता है वह कर्मो के रहस्य को जान नही पाता . मनुष्य तब संभलता है जब वह अपने कर्मो को समझता है उसे अहसास होता है तब जाकर वह कुछ धर्म कर्म कर अपने जीवन और अपने परिवार की स्थिति को धीरे - धीरे संभाल सकता है . इसमें उसे यह ध्यान मै रखना होता है जो कुछ भी हो रहा है और होगा सब भगवान् की कृपा से ही है लेकिन कर्म करना उसकी जिम्मेदारी कर्तव्य है . सनातम मै समस्त संसार को एक परिवार माना गया है लेकिन आज का मनुष्य अपने बीवी - बच्चो को परिवार मानता है और बाहर की दुनिया मै लुट खसूट कर अपने भाग्य को उजाड़ लेता है . इसलिए मनुष्य के कर्म सुख - दुःख मै सामान हो और सामान रूप से पक्षियों को दाना , कुत्ते को रोटी , पक्षियों को पानी , गाय को रोटी या हरा , खाग्ड़ को सानी हरा   देता रहे तो दुःख जीवन मै कभी भी नही आयेगा . अगर आपकी आर्थिक स्थिति कहती ही आप इन प्राणियों मै से किसी एक को पाल सकते है अथवा इन्हें भोजन दे सकते है तब भी यह आपकी श्रद्धा है . क्यों की यही सवर्ग है और यही नर्क है कर्मो का ही फेर है .

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

पछतावा ' कवी कहता है की

सडक प़र चलते चलते ,दिखी एक चमचमाती सी चीज़ 
कपडे में लिपटी फिर भी , वो क्यों चमचमाए
सोच कर उसे उसने  , झोली में लिया  छुपाये
झोली में लिया छुपाये , सोचा क्या माल लगा हाथ में
दोड़ा दोड़ा जा रहा था , तभी ठोकर  लगी उसके  पाँव
टपक टपक कर रीस रही , फीर भी उसे  शर्म न आये
लालच से मन भरा था , घर जाकर जल्दी ये चीज़ झलक दिखाए
पहुच गया जब घर वह , तब चीज़ वो फूटी आँख न सुहाए
आत्मा भी गाली देने लगी , ये क्या तुम ले  आये
ये क्या तुम ले आये , क्या तुम ले आये
लालच भरा मन जब भी , कोई गलत चीज़ लाये
मन बड़ा पछताए , किसी का कोई क्यों फिर कुछ उठाये

क्या कोई हरिजन का लड़का ब्राहमण नही हो सकता

अगर कोई ब्राह्मण है और उसका बेटा व्यापारी तो उसे किस दृष्टि से ब्राह्मण कहा जाये . जब उसे कर्मकांडो और वेद , शास्त्र , गीता , पुराण का ज्ञान ही नही तो उसे किस तरह ब्राहमण कहा जा सकता है क्या उसे पंडित जी कह सकते है . या सही होगा उसे पंडित कहना ठीक इसी तरह किसी हरिजन का लड़का वेदों का कर्मकाण्डो का ज्ञान रखता है . उसे हरिजन कैसे कहा जा सकता है. उसे अधिकार क्यों नही ब्राहमण कहने का जब की उसे ज्ञान है . भगवान ने मनुष्य को कर्म करने के लिए धरती प़र भेजा है उसे अपना भविष्य बनाने के लिए दान धर्म करने के लिए पृथ्वी प़र भेजा है . कर्मानुसार वर्गो में शामिल होने का हक़ दिया है अगर किसी हरिजन का लड़का पवित्र रहता हुआ और सभी तरह के ज्ञान के बावजूद भी ब्राह्मण नही हो सकता यह मनुष्य की मनमानी करने जैसा है . कोई भी मनुष्य जन्म से महान नही होता तो जन्म से ही ब्राहमण या क्षत्रिय या शुद्र , वैश्य कैसे हो सकता है . जब से जातीय बनी है भारत कमजोर हो रहा है और धर्म परिवर्तन की समस्या से जूझने का भी कारण यही है . हम वर्ग व्यवस्था को भुलाकर जाती व्यवस्था में जब से आये है तभी से हम उलझते ही जा रहे है . भेद भाव बढ़ रहा है दबंगी बढ़ रही है और जो शुद्र है वह दबता ही जा रहा है . छोटा व्यापारी दब रहा है . और भारतीय विद्या से भारतीयों का कटाव हो रहा है अंग्रेजी बढ़ने का भी कारण यही है . अगर यह अधिकार दे दिया जाये तो वेद शास्त्रों गीता , और पुराणो की हर घर तक पहुच होगी. और भारतीयों में जाती - पाती की तुछ भावना दूर होगी

पानी बिन मै और तुम

 भले वैज्ञानिक चाँद प़र पानी ढूंढ़ रहे हो लेकिन धरती प़र पानी सिमट रहा है . राजस्थान , पंजाब, हरियाणा , मध्य परदेश सब जगह पानी को लेकर हाहाकार है . चार दिन बाद पानी की सप्लाई आती है हैंडपंप , कुए तालाब सुख रहे है . राजस्थान में लोग तालाब का पानी पी रहे है और साथ ही उसकी रक्षा के लिये रात को भी तालाब के पास लट्ठ लेकर खड़ा रहना पड़ रहा है कही कोई दुसरा गाव उनका पानी न चुरा ले . एम् पी , देहली में लोग पानी के लिये लड़ रहे है लम्बी लम्बी कतारों के बावजूद एक घडा ' मटका ' पानी मुश्किल से मिल रहा है . कई राज्यों में लोग २ , २ किलोमीटर की दूरी तय कर पानी की मटकी सर प़र उठाने को मजबूर है . पानी की किल्लत तक लोग सहन कर रहे है उपर से सूर्य देव की तपिश कई सालो का रिकार्ड तोड़ रही है एसे में एक मटका पानी और पैदल लाना पड़े तो सोचिये आज का इंसान कैसी जिन्दगी जी रहा है . जिसमे शोपिंग मोल , बड़ी बड़ी दुकाने तो है सड़के है लेकिन पिने का पानी नही अगर है तो सवच्छ नही . इंसान ग़रीबी से भले लड़ ले लेकिन प्यास से नही . भूख मिटाने की गोलिया भले ही मेडिकल साइंस में हो लेकिन प्यास भुजाने की नही . आखिर क्यों पानी सुख रहा है इसके कारणों में इंसान की आधुनिक होने की ललक भी हो सकती है आज इंसान पेड़ नही लगाता और न ही वनों का संरक्षण करने के लिये उसके पास समय है . हर इंसान को एक बड़ा घर बनाना है लेकिन उसके भीतर पेड़ लगाना जरूरी नही है हर इंसान को जमीन खरीदनी है फैक्ट्रिया लगाने का ब्योत बनाना है प्लाट काटने है कलोनिया काटनी है भले उसके लिये पड़ो से लदे बाग़ उजाड़ने पड़े . देशी- विदेशी कम्पनियों का दायरा बढ़ता जा रहा है बड़ी बड़ी इमारते बन रही है खेत खलिहानों को स्वार्थ पूर्ण खत्म किया जा रहा है . गाडी हर इंसान खरीद रहा है उनकी धुलाई - धुलाई प़र ही पर्तिदिन लाखो लिटर पानी खर्च हो रहा है . यह सब खरीद कर बनाकर भारत को आधुनिक बना दिया जाए लेकिन पानी से वंचित होकर . पानी बिना कहा होंगे हम और आप .

रविवार, 18 अप्रैल 2010

पानी बिन मै और तुम

भले वैज्ञानिक चाँद प़र पानी ढूंढ़ रहे हो लेकिन धरती प़र पानी सिमट रहा है . राजस्थान , पंजाब,  हरियाणा , मध्य परदेश सब जगह पानी को लेकर हाहाकार है . चार दिन बाद पानी की सप्लाई आती है हैंडपंप , कुए तालाब सुख रहे है . राजस्थान में लोग तालाब का पानी पी रहे है और साथ ही उसकी रक्षा के लिये रात को भी तालाब के पास लट्ठ लेकर खड़ा रहना पड़ रहा है कही कोई दुसरा गाव उनका पानी न चुरा ले . एम् पी , देहली में लोग पानी के लिये लड़ रहे है लम्बी लम्बी कतारों के बावजूद एक घडा ' मटका ' पानी मुश्किल से मिल रहा है . कई राज्यों में लोग २ , २ किलोमीटर की दूरी तय कर पानी की मटकी सर प़र उठाने को मजबूर है . पानी की किल्लत तक लोग सहन कर रहे है उपर से सूर्य देव की तपिश कई सालो का रिकार्ड तोड़ रही है एसे में एक मटका पानी और पैदल लाना पड़े तो सोचिये आज का इंसान कैसी जिन्दगी जी रहा है . जिसमे शोपिंग मोल , बड़ी बड़ी दुकाने तो है सड़के है लेकिन पिने का पानी नही अगर है तो सवच्छ  नही . इंसान ग़रीबी से भले लड़ ले लेकिन प्यास से नही . भूख मिटाने की गोलिया भले ही मेडिकल साइंस में हो लेकिन प्यास भुजाने की नही . आखिर क्यों पानी सुख रहा है इसके कारणों में इंसान की आधुनिक होने की ललक भी हो सकती है आज इंसान पेड़ नही लगाता और न ही वनों का संरक्षण करने के लिये उसके पास समय है . हर इंसान को एक बड़ा घर बनाना है लेकिन उसके भीतर पेड़ लगाना जरूरी नही है हर इंसान को जमीन खरीदनी है फैक्ट्रिया लगाने का ब्योत बनाना है प्लाट काटने है कलोनिया काटनी है भले उसके लिये पड़ो से लदे बाग़ उजाड़ने पड़े . देशी-  विदेशी कम्पनियों का दायरा बढ़ता जा रहा है बड़ी बड़ी इमारते बन रही है खेत खलिहानों को स्वार्थ पूर्ण खत्म किया जा रहा है . गाडी हर इंसान खरीद रहा है उनकी  धुलाई - धुलाई प़र ही पर्तिदिन लाखो लिटर पानी खर्च हो रहा है . यह सब खरीद कर बनाकर भारत को आधुनिक बना दिया जाए लेकिन पानी से वंचित होकर . पानी बिना कहा होंगे हम और आप .

रिश्ते बचेंगे कब तक ?

भारतीय जीवन पद्धति में रिश्तो की बड़ी अहमियत होती है परन्तु अब यह अहमियत धीरे - धीरे घटती जा रही है . भारतीयों का एक दुसरे से कटाव हो रहा है कुछेक कारण उंच - नीच होने लगी है तो कुछ कारण ओरतो और पुरुषो दोनों का ही  आत्याधिक मॉडर्न ' आधुनिक ' होना भी है . आज घर  आये मेहमान को चन्द घंटो में चलता कर दिया जाता है . कारण कोई भी रिश्तेदार आता है तब दोनों मिया - बीवी को काम प़र जाना होता है और संयुक्त परिवार तो पहले ही टूटते जा रहे है . ओरते पुरुषो की तरफ दफ्तर जाने लगी है घर प़र शाम को दोनों मिया बीवी का आना होता है एसे में रिश्तेदार कहा रहेंगे और कहा रहेंगी रिश्तेदारी . नारी अथवा पुरुष की यह सोच भारत में रिश्तो के महत्व को कम करने में लगी है . अगर यही हाल रहा तो माँ - बाप अपने बच्चो को बचपन में ही बाहर पढने भेज देंगे यह हाल अब भी है परन्तु अभी कुछ हद तक सिमित है . लेकिन इसका तेज़ी से फैलाव हो रहा है . अगर यही हाल रहा तो क्या आगे शादी जैसे रिश्ते की जरुरत रहेगी . पती - पतनी  के पवित्र रिश्ते में समय ही नही रहेगा आज से कुछ सालो बाद तो कोई शादी की अहमियत कैसे समझ पायेगा . रिश्तो की अहमियत माँ - बाप के प्यार को कोन समझेगा . आज तक भारतीय समाज जो पवित्रता बनाता आया है उसे कोन सहेज कर रखेगा . कही यह तनाव पूर्ण जीवन सवार्थी जीवन भारतीयों को मानसिक रोगों की तरफ तो नही ले जा रहा . जिसमे न ही बच्चो के लिये समय है और न ही सास - ससुर की सेवा के लिये . अगर भारतीय एसी जीवन शैली अपना कर मात्र पैसा कमाना चाहते है तो वह भारत में  पश्चिमी सभ्यता का ही परचम लेहरा रहे है . इस सभ्यता से न तो समाज का कल्याण होगा और न ही भावनाओं की कद्र और रिश्ते तो महज़ मजाक बन कर रह जायेंगे .

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

शाकाहार नहीं है चांदी का वर्क!


चांदी के वर्क में लिपटी मिठाई कैंसर जैसी बीमारी का घर तो है ही, लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है। जी हां, चांदी का यह वर्क पशुओं की आंतों के जरिए जिस तरह बनता है उससे यह शाकाहार तो कतई नहीं रहता। योगगुरु बाबा रामदेव ने इस तरीके से वर्क बनाने पर प्रतिबंध की मांग की है।


चांदी का वर्क बनाने की प्रक्रिया की जानकारी दैनिक भास्कर ने जुटाई। इसमें जो तथ्य सामने आए, वह ऐसी मिठाइयों का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को झकझोर सकते हंै। दरअसल इसे पशुओं की ताजा आंत के अंदर रखकर कूट-कूट कर बनाया जाता है। दूसरी तरफ विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि चांदी का वर्क मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

लखनऊ स्थित इंडियन इंस्ट्टियूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) के एक अध्ययन के मुताबिक बाजार में उपलब्ध चांदी के वर्क में निकल, लेड, क्रोमियम और कैडमियम पाया जाता है। वर्क के जरिए हमारे पेट में पहुंचकर ये कैंसर का कारण बन सकते हैं। 2005 में हुआ यह अध्ययन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वर्क बनाने की प्रक्रिया जस की तस है।

शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश कश्यप के अनुसार धातु चाहे किसी भी रूप में हो, सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होती है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान लीवर, किडनी और गले को होता है। आईटीसी की मेटल एनालिसिस लेबोरेटरी के एन. गाजी अंसारी के अनुसार चांदी हजम नहीं होती। इससे पाचन प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है, नर्वस सिस्टम भी प्रभावित हो सकता है।



आजकल बाजार में चांदी के नाम पर एल्यूमिनियम, गिलेट आदि के वर्क धड़ल्ले से बिक रहे हैं जो कही ज्यादा हानिकारक हंै। पुणो स्थित एनजीओ ब्यूटी विदाउट क्रुएलिटी (बीडब्ल्यूसी) के मुताबिक एक किलो चांदी का वर्क 12,500 पशुओं की आंतों के इस्तेमाल से तैयार होता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में सालाना लगभग 30 टन चांदी के वर्क की खपत होती है। इसे बनाने का काम मुख्य रूप से कानपुर, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, रतलाम, पटना, भागलपुर, वाराणसी, गया और मुंबई में होता है।





ऐसे बनता है वर्क:

चांदी के पतले-पतले टुकड़ों को पशुओं की आंत में लपेट कर एक के ऊपर एक (परत दर परत) रखा जाता है कि एक खोल बन जाए। फिर इस खोल को लकड़ी से धीरे-धीरे तब तक पीटा जाता है जब तक चांदी के पतले टुकड़े फैलकर महीन वर्क में न बदल जाएं। पशुओं की ताजा आंत मजबूत और मुलायम होने से जल्दी नहीं फटती है। इसी वजह से इसका उपयोग किया जाता है



बाबा रामदेव ने कहा- धार्मिक अशुद्धि का मामला



योगगुरु बाबा रामदेव ने भास्कर से कहा कि चांदी का वर्क बनाने के ऐसे कारखानों को तुरंत बंद करना चाहिए। यह धार्मिक अशुद्धि का मामला है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक दवा के रूप में चांदी की भस्म का सेवन ठीक रहता है, वह भी निश्चित मात्रा में। दिगंबर जैन आचार्य विशुद्ध सागर जी का भी मानना है कि ऐसे वर्क से बनी मिठाई खाने योग्य नहीं होती। ऐसी मिठाइयों से बचना चाहिए।





ऐसी चीजो को जीवन में शामिल करना है या नही फैसला आपके हाँथ है

ये लेख हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर से लिया गया हैhttp://ptstsanchar.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html

इस सबके पिछे माँ- बाप दोषी कितने

बिगडती संस्कृति के पीछे माँ बाप का दोष कितना है  लगभग  ८० %. बचपन से ही माँ - बाप अपने बेटे - बेटियों को भारतीय संस्कृति से अलग करने में लग जाते है सकूल में जाते ही माँ - बाप अपने बच्चो से अंग्रेजी कविता सुनना चाहते है . उसे दूध , घी , दही की जगह जो दिया जाता है वह केवल सवाद तक सिमित होता है . बच्चो को तरह - तरह की छूट दी जाती है आखिर क्यों . इसलिए भारतीय समाज से वह अलग दिखे उसके रंग ढंग कपडे सब कुछ पश्चिमी कर दिया जाता है . बड़े होते - होते उनके दिमाघ में ड़ाल दिया जाता है बड़ा होकर डॉक्टर , इन्ज़ीनीअर बनना है . और उसे व्यक्तिवादी बना दिया जाता है एसा व्यक्ति जिसे अपने देश की फ़िक्र कम ख़ुद के भविष्य की फ़िक्र ज्यादा होती है . पांच - पांच साल तक उसे बड़े शहरो में भेज दिया जाता है जहा कुछ लड़के मोज मस्ती में डूब जाते है . भारतीय सभ्यता को न समझने वाले ये बच्चे युवा होते - होते एक दम पश्चिमी हो जाते है जिन्हें परिवार से लेना - देना कम होता है . पहले के जमाने में ३० - ३० साल तक बटवारा नही होता था लेकिन अब नोकरी लगते ही शादी और बटवारा . संयुक्त परिवार टूट जाते है आखिर क्यों माँ - बाप की अकान्शाओ की  वजह         से  . एसी आकान्शाये  जो केवल पैसो से सिमित होती है जिसमे संस्कारतो की बलि देनी पड़ती है  पैसो के लिये एक दुसरे से आगे निकलने के लिये . इसमें व्यक्ति पैसा तो कमा लेता है लेकिन अपने देश से उसकी जड़े - पैर उखड़ने लगते है सही मायनों में उन बच्चो को शान्ति और प्यार नही मिलता . मिलता है तो सिर्फ तनाव और रहने के लिये पर्दुषित  हवा पानी , खाना छोटे - छोटे  घर न कोई पड़ोस . बस घर से दफ्तर और दफ्तर से घर एसी जिन्दगी हो जाती है आज के युवाओं की . माँ - बाप की सोच बचे को कामयाब देखने की होती है लेकिन कामयाबी के पिछे दर्दनाक अकेलापन होता है

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

यह कैसी सोच

भारत में राजनीति जाती प़र आधारित है जिस जाती के वोट की जनसंख्या अधिक उसी को कुर्सी . एम् पी होया एम् एल ए सभी जगह जातीय सम्मिकर्ण टटोलने के बाद ही टिकेट  मिलती है . आखिर भारतीय राजनीति किस और जा रही है जहा भले ही अपनी जाती का उम्मीदवार गुंडा हो लेकिन वोट अपनी जाती के उम्मीदवार को . भले सामने वाला पढ़ा लिखा या कुशल और नर्म सवभाव वाला उम्मीदवार हो उसे वोट नही दिया जाता . आखिर इस सबके पीछे कोन है . क्या आम जनता जो चोधर  का लोभ रखती है इसलिए उसकी मजबूरी अपनी जाती का दम ख़म  दिखाने की होती जा रही है  . या पार्टिया जो अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिये जातीय सम्मिकर्ण के आधार प़र टिकटे  बाटकर हमारी सोच को एक जाती तक सिमित कर रही है . हम देश के बारे में न सोचकर सवार्थी हो रहे है हमें कोन स्वार्थी बना रहा है हमें कोन बता रहा है तुम इस जाती से हो और अपनी जाती को ही वोट दो . हमें क्यों बताया जाता है हमारी जाती ने आजादी के लिये अथवा किसी भी क्षेत्र में  कितनी तरक्की की . हमारी सोच ने आजादी के समय राष्ट्रवादी रूप धारण किया था लेकिन कुछ सालो बाद हम अपने क्षेत्रो में बटे . लेकिन अब हम एक विस्फोटक स्थिति में खड़े है जिसमे हम अपना राजनैतिक अस्तित्व चाहते है अपनी जाती की बात करते है . जहा हम अपने देश के ही लोगो को ख़ुद से उपर नीचा समझते है यह कैसी सोच है जो अपने ही देश के लोगो को दीमक की तरह खाए जा रही है . भले ही नेताओं ने जनता को बाटा हो लेकिन हम इतिहास क्यों भूल जाते है क्यों फिर से वही गुलामी काल की पर्था को जीवित करने में लगे है क्यों उंच नीच का पाठ पढ़ और नयी पीढ़ी को पढ़ा रहे है .

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

असभ्यता , अश्लीलता पैर फैला रही है

भारत जिसे आज भी सभ्यता से जाना जाता है लेकिन इस सभ्यता प़र प्रहार हो रहा है . ख़ुद अपने ही लोग इसे असभ्य बनाने की तक में है और असभ्यता फैला रहे है . अश्लीलता फैलाई जा रही है युवा अपनी संस्कृति को छोड़ पश्चिमी होते जा रहे है . दो , दो गल्फरैंड रखना नोजवानो के शोक है सडको प़र हाथ में हाथ डालकर घूमना यह भारत को भारत कम और इण्डिया ज्यादा दर्शाता है . लेकिन युवा तो पहले भी होते थे और अधिक सवस्थ और हट्टे खट्टे  होते थे वह तो इस प्रकार की हरकते नही करते  थे . गर्ल फरैंड तो पहले भी होती थी लेकिन इस प्रकार सडको गलियों में नही घुमा जाता था . कही यह एक कारण तो नही है बढ़ते बलात्कारो का हमारे बदलते परिधान भड़काऊ कपडे .आज के युवा फ़िल्मी हीरो को अपनी जीवन शैली  में उतार रहे है आज की फिल्मो का हीरो भी अपनी गर्ल्फरैंड को सडको प़र घुमाता है और २ , ३ गर्फरैंड रखता है और इसी बात को आम नोजवान अपने जीवन में उतारते है . हीरो लोग हो या फिल्म निर्माता ये लोग तो यह सब पैसो के लिये करते है इन्हें इन बातो से मतलब नही होता की इससे देश के लोगो की मानसिकता पश्चिमी होती है जिसे इस देश के लोग इजाज़त नही देते . एसा ही कुछ बिजनैस में हो रहा है आई पी एल जो एक खेल भी है और बिजनेस भी इसमें भी दर्शको को खीचने के लिये चीयरगर्ल्स का सहारा लिया जा रहा है . करिकेट के खेल को भी एक तमाशा सर्कस बना दिया गया है जिस मैच को करोडो भारतीय देख रहे है वहा भी असभ्यता सडको से लेकर बाजारों तक सिनेमा से लेकर खेल के मैदानों तक . किसी साबुन को बेचना है तो उस प़र भी हीरोइन की अश्लील फोटो . किसी प्रोडक्ट की ऐड में भी हीरोइन के उत्तेजित दृश्य . देश यह जिस और जा रहा है उसमे सभ्य  इंसानों की कहा जगह होगी आज जिसकी गर्लफ्रैंड है उसी के दोस्त है . या उन्हें भी हिंदी भाषा की ही तरह दूसरी श्रेणी में ड़ाल दिया जाएगा

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

भारत का एक तबका बच्चा एक ही अच्छा की राह प़र

टीवी प़र प्रचार किया जाता रहा है एक लडका एक लड़की . हम दो हमारे दो एसा परचार बसों प़र ऑटो प़र टीवी प़र ऐड के द्वारा किया जाता रहा है . इस परचार से काफी कुछ सिखा है भारतीयों ने . आज भारतीय परिवार एक लड़का लड़की हम दो हमारे दो की राह प़र चल पड़े है जो देशहित के लिये जरूरी है . इससे बढ़ रही जनसंख्या नियन्त्रण में होगी . लेकिन कुछ लोग एसे भी है जो आज भी २ नही चार नही छः  या १० बच्चे पैदा कर रहे है देश की जनसंख्या पहले ही एक सो बीस करोड़ तक पहुच चुकी है . लेकिन आज भी भारत में बहुत से लोग ८ , ८ बचे पैदा कर जनसंख्या और बेरोजगारी को बढ़ा रहे है जो की चिंता का विषय  है . टीवी प़र भी परचार किये जाते है लेकिन बहुत से लोग इन पर्चारो इन देश से जुड़े मुद्दों का या तो विरोध में है या वह अपने जीवन में इन बातो को उतार नही पा रहे है . अगर भारत को जनसँख्या नियन्त्रण करना है तो सख्त नियम लागु करने होंगे

गुरुवार, 11 मार्च 2010

सहिष्णु हिन्दू यही तो कमजोरी है

बहुत से हिन्दू  अपनी सहनशीलता को अपना आभूषण  बताते है लेकिन वास्तव में यह सहनशीलता आभूषण नही एक फ़ासी की तरह बनती जा रही है . हम जितने ज्यादा सहनशील होते है उतने ही ज्यादा  अत्याचार बढ़ते जाते है हुसैन का मामला हो या और कोई भी दंगा फसाद हिन्दू सब कुछ सहन करता है . तभी उसे अपने ही देश में अपमान सहना पड़ रहा है . जब डेनमार्क में इस्लाम धर्म को कार्टून के रूप दिया गया तब सभी मुस्लिम देशो ने इस प़र जमकर हल्ला किया मजबूरन कार्टूनिस्ट को माफ़ी माँगनी पड़ी  . यहाँ मुसलमानों का विरोध जायज भी हो सकता है लेकिन हुसैन दवारा भारत में रहकर और भारत में जन्म लेकर भारत के बहुसंख्यक समाज की धर्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाना  नाजायज है क्या इन सब चीजों की इस्लाम आजादी देता है अगर नही तो भारतीय मुस्लिम्स को तो विरोध करना चाहिए . लेकिन कोई विरोध नही परन्तु असली मुद्दा तो हिन्दू समाज का है वह क्यों यह सब सहन करता है . अगर आज किसी जाती विशेष प़र टिप्पणी कर दी जाए तो हजारो मुकदमे दर्ज होंगे और भी बहुत कुछ होगा लेकिन जब बात देश की आती है संस्कृति की आती है तब हिन्दुओ को सहनशीलता की खुराक कहा से मिल जाती है . क्या कोई पाकिस्तानी हिन्दू इस्लामिक भावनाओं को पाकिस्तान में किसी परकार की ठेस पहुचा सकता है अगर पहुचा सकता है तो उसका हश्र क्या होगा . अजी पाकिस्तान छोड़िए क्या कोई भारतीय इस्लाम प़र कुछ लिख या कोई कार्टून बना सकता है . नही क्यों . बिलकुल साफ़ सी बात है इस्लाम के नाम प़र शिया हो या सुन्नी  सभी एक हो जाते हैं . लेकिन भारतीय जो अलग - अलग पन्थो में बटे है अलग - अलग जातियों में बटे है जिन्हें न ही देश दिखता है और न ही अपना धर्म केवल पैसा या फिर अपनी जाती

शनिवार, 6 मार्च 2010

जब टुकडो में बटे रहेंगे तो एसे ही पिटते रहेंगे हिन्दू.

नारी संगठन , युवा संगठन , ब्राह्मण ,, जाट , पंजाबी , मराठी , राजपूत , दलित चेतना यह कुछ झलकिया है हिन्दू समाज की जो अपने अपने हक़ के लिये लड़ रहे है अपनी जाती समाज के लिये . क्षेत्र के लिये अपने आप को उंचा साबित करने के लिये अच्छा है विदेशियों को तो इन सब कामो से बहुत राहत मिलती होगी . बहुत से भिन्न - भिन्न प्रकार के संगठन एक दुसरे से उप्पर पहुचने की ललक . भिन्न - भिन्न सोच क्षेत्र - क्षेत्र शहर , गाव में अलग अलग चोधरी . समाज के ठेकेदार कोई धन - धन सतगुरु कोई व्यास . बाते खिंडे टूटे कमजोर लोग जो एक धर्म एक देश के होकर आपस में लड़ रहे है अपनी - अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे है . लेकिन विदेशी लोग चूप - चाप अपना काम कर रहे है और करते रहेंगे दीमक की तरह खोखला कर रहे है करते ही रहेंगे . क्यों की जब घर में मान लो पांच सदस्य  है सबकी अलग अलग राय सबके अलग विचार तो घर को टूटने से कोई भी नही बचा सकता . देश को कैसे बचाओगे . अभी बरेली में दंगा हुआ जिन्होंने दंगा किया उन लोगो की केवल एक ज़ात थी . मुस्लिम . कभी हिन्दुओ से पुचो तो कहेंगे ब्राह्मण , ज़ात , राजपूत क्या कभी किसी ने कहा हिन्दू . क्या कभी कोई गर्व से छाती चोडिकर  कहता है वह हिन्दू है पहले अपनी जाती के ही गुण गाता है . लेकिन कोई भी मुसलमान ख़ुद को मुसलमान ही कहता है यही कारण है वे लोग मजबूत पड़ते है और हिन्दू कमजोर . जब टुकडो में बटे रहेंगे तो एसे ही पिटते रहेंगे .

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

होली के पीछे छुपे हैं कई वैज्ञानिक तथ्य

भारतीय  त्योहारों प़र अन्धविश्वास जैसे आरोप लगते रहते है . कुम्भ प़र गंगा स्नान  प़र तो कभी भगवान राम के अस्तित्व प़र . अब कुछ दिनों बाद होली है जाहिर है कुछ लोग इसे ' होली खेलने वालो को पागल भी कह सकते है  लेकिन हम लोगो को उनकी बातो में नही अना चाहिए साथ ही सत्य को देखना समझना चाहिए ताकि हिन्दू धर्म प़र ऊँगली उठाने वालो से भी रहा न जाए इन त्योहारों की महिमा गए बगैर . होली का धार्मिक महत्व तो है ही इसका वज्ञानिक महत्व भी है जो नई पीढ़ी को समझाने की आवश्यकता है ताकि सनातम धर्म की महानता को वह भी जान सके .होली का त्यौहार न केवल मौज-मस्ती, सामुदायिक सद्भाव और मेल-मिलाप का त्यौहार है बल्कि इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं जो न केवल पर्यावरण को बल्कि मानवीय सेहत के लिए भी गुणकारी हैं।




वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें अपने पूर्वजों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद उचित समय पर होली का त्यौहार मनाने की शुरूआत की। लेकिन, होली के त्यौहार की मस्ती इतनी अधिक होती है कि लोग इसके वैज्ञानिक कारणों से अंजान रहते हैं।



होली का त्यौहार साल में ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग उनींदे और आलसी से होते हैं। ठंडे मौसम के गर्म रूख अख्तियार करने के कारण शरीर का कुछ थकान और सुस्ती महसूस करना प्राकृतिक है। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं बल्कि बोलते भी थोड़ा जोर से हैं।



इस मौसम में बजाया जाने वाला संगीत भी बेहद तेज होता है। ये सभी बातें मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त रंग और अबीर शुद्ध रूप में- जब शरीर पर डाला जाता है तो इसका उस पर अनोखा प्रभाव होता है।



बापू नेचर क्योर हास्पिटल एवं योगाश्रम के डा. प्रधान ने बताया कि होली पर शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालने से शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है।



जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और पोरों में समा जाते हैं और शरीर के आयन मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं और उसकी सुंदरता में निखार लाते हैं। होली का त्यौहार मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है। हालांकि, यह होलिका दहन की परंपरा से जुड़ा है।



शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन, जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है। परंपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छ करता है।



दक्षिण भारत में जिस प्रकार होली मनाई जाती है, उससे यह अच्छे स्वस्थ को प्रोत्साहित करती है। होलिका दहन के बाद इस क्षेत्र में लोग होलिका की बुझी आग की राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन करते हैं।



कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि रंगों से खेलने से स्वास्थ्य पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कई तरीके से असर डालते हैं। पश्चिमी फीजिशियन और डाक्टरों का मानना है कि एक स्वस्थ शरीर के लिए रंगों का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे शरीर में किसी रंग विशेष की कमी कई बीमारियों को जन्म देती है और जिनका इलाज केवल उस रंग विशेष की आपूर्ति करके ही किया जा सकता है।



होली के मौके पर लोग अपने घरों की भी साफ सफाई करते हैं जिससे धूल-गर्द, मच्छरों और अन्य कीटाणुओंका सफाया हो जाता है। एक साफ सुथरा घर आमतौर पर उसमें रहने वालों को सुखद अहसास देने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा भी प्रवाहित करता है।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

क्या वास्तव में भारतीय कमजोर है

क्या वास्तव में भारतीय कमजोर है बहुत से लोग हां कहेंगे और बहुत से नही . वैसे ये मिली जुली प्रक्रिया भी सही है कुछ मायनो में . अगर इतिहास को देखा जाए तो हम लोग बहुत  समय तक गुलाम रहे कभी मुगलों तो कभी अंग्रेजो के अत्याचार सहते रहे .विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता को वे लोग बर्बाद करते रहे लेकिन भारतीय उन्हें खदेड़ न सके यह बाटे नई पुरानी पीढ़ी को सोचने प़र मजबूर करते है क्या हम वास्तव में कमजोर है या थे ?
                                   लेकिन कुछ लोग यह भी समझ सकते है की हम कमजोर कभी नही रहे श्री राम जी को ही ले हजारो सालो पहले रावण को उसी के देश में जाकर हराया था . या कलियुग की बात ले ९३,००० सैनिको को गुलाम बनाकर भारत ने पूरे विश्व में अपने साहस का परिचय दिया था . या पृथ्वी राज चोहान को ही ले जिन्होंने ७७ बार मुहम्मद गोरी को माफ़ी दी वह अलग बात है अठात्र्वी बार  मुह्हमद गोरी की फतह हुई और उसने पृथ्वीराज  जी की आंखे निकाल ली . या झाँसी की रानी साहस पुरुषो में ही नही महिलाओं में भी है भारतीय साहसी और निडर तो है इसमें दो राए बनाना गलत होगा .  लेकिन फिर क्यों हम कमजोर पड़ते है ?. हम एक दयालु देश और नागरिक है क्षमा हमारा आभुष्ण है और इसी का दुश्मन हर बार गलत फायदा उठाता है कभी हम गुलाम होते है और कभी हम आतंकी हमले में मरते है . भारत में युग युग , समय -समय प़र म्हापूरुशो ने जन्म लिया और सन्देश दिया अधर्म के खिलाफ लड़ो . गीता में श्री कृष्ण अर्जुन  से कहते है  ' हे अर्जुन उठो अधर्म के खिलाफ लड़ो क्षत्रिय धर्म निभाओ ' . यहा वह किसी एक जाती को सन्देश नही दे रहे है वह हर भारत वंशी को कह रहे है अधर्म से लड़ो . लेकिन क्षत्रिय को एक जात समझ लिया  गया  और युद्ध केवल एक जाती तक सिमित होने लगा . कुछ एसा ही सन्देश गुरु गोबिंद सिंग जी ने दिया था और उन्होंने नारा दिया था 'एक लाख से एक लदाऊ तभी नाम गोबिंद कहलाऊ ' . और एसा ही उन्होंने किया . लेकिन आज तक हम इन संदेशो को अपने जीवन में नही उतार सके तभी हमारे दुश्मन देश हम प़र बम फोड़ते है और हम उन प़र दया करते है

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

अमन की आशा '''''''' fuuuuuuuuuusssssssssssss '

२६ - ११ के बाद एक बार फिर से भारत प़र बड़ा हमला हुआ है इस बार निशाने प़र सिर्फ और सिर्फ भारत ही था  . कई न्यूज़ चैनल कहते है यहूदियों का पूजा सथल निशाना था लेकिन पूजा सथल किसी और देश में नही भारत में ही तो था . कुछ विदेशियों को आतंकियों का निशाना बताते है लेकिन वह  भी तो भारत में हमारे मेहमान ही है . कुछ ही दिन पहले आतंकियों ने बड़ी रैली की लाहोर में जिसमे खुलम - खुल्ला भारत प़र हमले की चेतावनी दी गयी थी . और हुआ भी वैसा ही . और इसी बीच निकली एक आशा '  अमन की आशा ' . और तुरंत ही फूस साबित भी हो गयी होना ही था . पाक के साथ दोस्ती अथवा मधुर सम्बन्ध ठीक उसी तरह है किसी पागल कुत्ते के गले में रस्सी बांधकर उससे लाड प्यार करने के बराबर . क्यों की पाक की हालात भी उसी पागल की तरह है जिसे हम कितना भी प्यार दे वह हमे काटेगा ही . उसका हमारे हरियाणा में तो एक ही इलाज़ होता है ' लठो से पीटकर मारना ' . ठीक है हम लोग दयालु है लेकिन दया की हद्द हो गयी है अब क्या हमने मार खाने का ठेका ले रखा है . होना तो ये चाहिए की पाक हमारे पैरो में गिरकर माफ़ी मांगे लेकिन जो हो रहा है वह दुनिया की नजर में हमे कमजोर साबित कर रहा है . हम इतिहास से सिख भले ले अथवा नही वर्तमान से तो सिख ले . पाक प़र हमें सिर्फ और सिर्फ हमला करना चाहिए ' आर या पार  ' . कोई बात नही  केवल हमला बारूद का जवाब बारूद से हर एक जख्म का जवाब देना चाहिए . कोई आशा की तरंग नही फूटनी चाहिए  ' इनफ इज इनफ

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

गरीबी मिटाई जा सकती है लेकिन मिडिया को उसका प्रचार बेहतर ढंग से करना होगा

आजादी के तरेसठ साल बाद भी ७० करोड़ लोग बीस रूपए से कम प़र गुजारा  कर रहे है . दूसरी तरफ केवल एक फिल्म को चलाने के लिए १ दिन के लाखो रूपए खर्च किये जा रहे है . और मीडिया भी दिन - भर शिव सेना - राज ठाकरे मसाला लोगो की कवरेज में लगा रहता है . मीडिया को शाहरुख़ , कारण जोहर , अमिताभ बच्चन ,एश्वर्या राए , कटरीना कैफ इन लोगो में दिलचस्पी है लेकिन भूख से मरते लोगो की तरफ सरकार का ध्यान दिलाने में नही . अमिताभ को अगर कोई बीमारी हो जाये तो पूरे भारत को हिला दिया जाता है लेकिन असम जैसे राज्य में ३०० लोग भी बम विस्फोट से मार जाये तो कोई चीटी भी नही रेंगती कान के पास से . अगर भारत किरकेट   में जीत जाये तो ' चक दे इण्डिया ' सारा दिन . लेकिन उड़ीसा जैसे राज्य में लोग भूख मारी से तडपते रहे देश का ध्यान उस तरफ खीचना बिलकुल भी उसकी जिम्मेदारी नही . गरीबी भारत में है लेकिन इसे मिटाया जा सकता है बस जरुरत है तो साफ़ नियत की . जैसे बाढ़ बिहार में आती है तो पूरा भारत दिल खोलकर मदद करता है यह सब मिडिया की अछाई से कवरेज के कारण संभव होता है . भावनाओं को जगाया जाये इमानदारी से कोई पहल की जाये तो उड़ीसा ही नही भारत के हर राज्य से गरीबी को खत्म किया जा सकता है . लेकिन मीडिया वाले तब तक उस जगह प़र नही जाते जब तक की वहा कोई बड़ा हादसा या आतंकी वारदात न हो जाए . अगर मीडिया वाले गरीब राज्यों में जाकर वहा की स्थिति से भारतीयों को रूबरू कराये और कुछ भावनाए जगाई जाये तो भारत में दानियो की कोई कमी नही है . क्यों की यह दानवीर कर्ण की नगरी है जिस प्रकार अग्रसेन महाराज ने एक नियम लागू किया था एक रुपया एक ईट एसा ही नियम आज लागु करने की जरुरत है . ताकि इस देश में से गरीबी को मिटाया जा सके इस तरह के नियमो में हर आदमी दिल खोलकर देता है चाहे वह गरीब हो या आमिर . लेकिन मीडिया को यह बेहतर लगता है आज कोन सी फिल्म रीलिज़ हो रही है अथवा आज किस हीरोइन   का जन्मदिन है

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

कलर्स चैनल के कुछ धारावाहिक सच्चाई से दूर

भाइयो कलर्स का कोई भी धारावाहिक हो पहले कुछ लिखा आता है ' हम इन बुराइयों के खिलाफ है ' हमारा किसी जाती विशेष ' से इस धारावाहिक का कोई सम्बन्ध नही . लेकिन जो लोग इन धारावाहिकों को देखते है वे भली भांति जानते है किस तरह की छवि प्रस्तुत की जा रही है . अब देखिये एक धारावाहिक १० बजकर ३० मिनट प़र ' न आना इस देश लाडो ' शुरू होता है . उस धारावाहिक में एक किरदार है अम्मा जी जिनकी बोली हरियाणवी है . अब जो इस धारावाहिक को देखता होगा तो उसके मन में हरयाणा की क्या छवि उतरती होगी . हरयाणा एक भारत का प्रान्त है जहा गाव की लड़की के पती को पूरा गाव दामाद मानता है . लेकिन इस धारावाहिक में अम्मा जी अपनी भतीजी को एक सरकारी अपसर को सोपती दिखाई जाती है . हरयाणा में बड़े ही स्वाभिमानी लोग रहते है लेकिन ये सब उट पटांग बाते  हरयाणा की कोन सी छवि पर्स्तुत करते है . या हिन्दू समाज की कोन सी छवि प्रस्तूत करती है . एक और धारावाहिक है जिसमे एक ठाकुर को लड़की प़र अत्याचार करता दिखाया गया है . क्या यह किसी जाती विशेष प़र निशाना नही है क्या इस तरह की बातो से समाज मज़बूत होता है . या समाज में अधिक कडवाहट बढ़ रही है . हर समाज में बुराई होती है लेकिन बार बार ठाकुर . ठाकुर कहना हमारे दिलो में कड़वाहट  भी घोल सकता है . क्या सभी ठाकुर एक जैसे होते है अगर इस प्रकार से दिखाते है महाराणा प्रताप को प़र कोई धारावाहिक नही बनाया जाता . समाज में एक बेहतर सन्देश भी दिया जा सकता है . इसी तरह हरयाणा के लोगो में देशभक्ति    की भावना कूट कूट कर भरी है कारगिल युद्ध हो या १९७१ ,१९६५ की लड़ाई सभी ल्दैयो में हर्यानावासियो ने बढ़ चढ़ कर  भाग liya  है . हरयाणा आज भारत का एसा राज्य है जहा लड़की के पैदा होने प़र भी थालिया बजाई जाती है . लड्डू  बाटे जाते है . मै कभी क्षेत्र वाद की बात नही करता लेकिन एसी बातो का विरोध तो करना ही पड़ता है . भारत के इतिहास प़र भी कोई धारावाहिक बन सकता है पहले भी तो श्री कृष्ण , रामायण , जैसे धारावाहिक बनते थे लेकिन आजकल तो उंच नीच बस और कोई मुद्दा ही नही जैसे . एसी बाते दिलो को जख्मो को कुरेदती है अब भारत में कुछ कुछ क्षेत्रो में जातिवाद कम हो रहा है . लेकिन इस तरह धारावाहिक दिलो और दिमाग़ो में जहर भर रहे है . कलर्स हो या कोई भी चैनल अपनी तो एक ही विनती है समाज को तोड़ो मत  मज़बूत करो

रविवार, 31 जनवरी 2010

कविता

जीवन एक कोरा कागज


कागज प़र कुछ तो लिख दो

नींद में सपने लेने से बेहतर

दिन में कुछ तो कर लो

हर दिन एक उजाला

हर रात है इक अँधियारा

अंधियारों से निकलकर

कुछ तो जीवन में रंग भर लो

स्वप्न में ना खोकर

नींद में न सोकर

जागकर जीवन में खुशियों

के रंग तो भर लो

शनिवार, 30 जनवरी 2010

क्या कोई हरिजन का लड़का ब्राहमण नही हो सकता

अगर कोई ब्राह्मण है और उसका बेटा व्यापारी तो उसे किस दृष्टि से ब्राह्मण कहा जाये . जब उसे कर्मकांडो और वेद , शास्त्र , गीता , पुराण का ज्ञान ही नही तो उसे किस तरह ब्राहमण कहा जा सकता है क्या उसे पंडित जी कह  सकते है . या सही होगा उसे पंडित कहना ठीक इसी तरह किसी हरिजन का लड़का वेदों का कर्मकाण्डो  का ज्ञान रखता है . उसे हरिजन कैसे कहा जा सकता है.  उसे अधिकार क्यों नही ब्राहमण कहने का जब की उसे ज्ञान है . भगवान ने मनुष्य को कर्म करने के लिए धरती प़र भेजा है उसे अपना भविष्य बनाने के लिए दान धर्म करने के लिए पृथ्वी प़र भेजा है . कर्मानुसार वर्गो में शामिल होने का हक़ दिया है अगर किसी हरिजन का लड़का पवित्र  रहता हुआ और सभी तरह  के ज्ञान के बावजूद भी ब्राह्मण नही हो सकता यह मनुष्य की मनमानी करने जैसा है . कोई भी मनुष्य जन्म से महान नही होता तो जन्म से ही ब्राहमण या क्षत्रिय या शुद्र , वैश्य कैसे हो सकता है . जब से जातीय बनी है भारत कमजोर हो रहा है और धर्म परिवर्तन की समस्या से जूझने का भी कारण यही है . हम वर्ग व्यवस्था को भुलाकर जाती व्यवस्था में जब से आये है तभी से हम उलझते ही जा रहे है . भेद भाव बढ़ रहा है दबंगी बढ़ रही है और जो शुद्र है वह दबता ही जा रहा है . छोटा व्यापारी दब रहा है . और भारतीय विद्या से भारतीयों का कटाव हो रहा है अंग्रेजी बढ़ने का भी कारण यही है . अगर यह अधिकार दे दिया जाये तो वेद शास्त्रों गीता , और पुराणो की हर घर तक पहुच होगी

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

मोल्वियो को आगे आना होगा कट्टरता कम करने के लिए

भारत में मुसलमान सबसे ज्यादा सुरक्षित भी है और सम्मान के साथ जीते भी है . पश्चिमी देशो से ज्यादा सम्मान मुसलमानों को भारत में मिला है लेकिन यह बात मुसलमान समझ नही पा रहे है . इन बातो को बहुत ही सरलता पूर्वक समझा जा सकता है . अभी हाल ही में स्विज़ेरलैंड की घटना गोर करने लायक है क्यों की भारत में एसा कभी भी नही हुआ और एक और घटना  शाहरुख़ के साथ घटी जिसमे उनकी चेकिंग की गयी इसलिए की उनके नाम के पीछे खान था . और वह घटना कैसे भुलाई जा सकती है जब एक भारतीय डॉक्टर प़र आस्ट्रलिया में आरोप लगे थे . कदम कदम प़र मुसलमानों को पश्चिमी देश में बदनाम किया जाता है . भारत में मुसलमानों का इतिहास लगभग २५० सालो का है लेकिन अब भी बहुत सी शिकायते है जिनमे से कुछ जायज कुछ नाजायज़ है .आजादी के समय मुस्लिम जनसंख्या २०% थी इस दोरान मुसलमानों को कई उचे उचे पद मिले लेकिन कट्टरता फिर भी बनी रही . कभी किसी कट्टरपंथी ने फतवा निकाला तो कभी किसी मोलवी ने . अगर मोलवी लोग हक़ के लिए फतवे निकालते है तो उन्हें बढ़ रही जनसंख्या प़र भी कोई फ़तवा निकलना चाहिए .  ३ ,३ शादियों से अपने समाज को जागरूक करना  चाहिए . मोलवी लोग गणेश पूजा प़र फतवे निकलते है तब तो उन्हें अपने धर्म में फैली कुछ बुराइयों  को भी दूर करना चाहिए अगर सच में आम मुसलमान का हित चाहते है तो उन्हें मुसलमानों को शिक्षा के प्रति भी जागरूक करना चाहिए . हर समय शिकायत तो की जाये और कट्टरता के बीज बो दिए जाये लेकिन समाधान न किया जाये कहा की इंसानियत हुई . कट्टरता को कम करने का पाठ भी पढ़ाया जा सकता है . मैंने अपनी जिन्दगी में एसे मुसलमानों को भी देखा है जिन्हें अपने कम से मतलब है और एसे मुसलमानों को भी जिन्हें केवल कट्टरता फैलानी आती है . लेकिन बुराई के साथ अच्छाई भी बह जाती है लेकिन बड़े लोगो का कर्तव्य बनता है बुराई को अच्छाई में तब्दील किया जाये 

शनिवार, 23 जनवरी 2010

हिंदी का अपमान भारतीयों का अपमान

कहने को तो हिंदी राष्ट्र भाषा है मातर भाषा है लेकिन इसे कितना सम्मान मिलता है इसका अंदाजा तभी लग जाता है तब कोई भी बड़ा नेता अथवा व्यापारी मिडिया के सामने कुछ भी बोलता है . कभी किसी नेता को हिंदी बोलते देखा है आपने या कोई बड़ा व्यापारी . आज किसी भी शहर में चले जाइये आपको कोई भी दुकान या शोपिंग मोल हो अथवा कोई भी सरकारी इमारत बड़े बड़े बोर्ड दिखाई देंगे जिन पर अंग्रेजी में महकमे का (डिपार्टमेंट) का नाम लिखा होगा . आप हमारे फ़िल्मी कलाकारों को ही लीजिये वे लोग भी खाते हिंदी की है पर गुण अंग्रेजी में गाते है . आज भारत में एसे सैकड़ो स्कूल है जहा हिंदी बोलने तक पर मनाही है या यु कहे सजा भी दी जाती है . लेकिन बात करते है कैम्ब्रिज विश्वविधालय की जहा १५० सालो से संस्कृत और हिंदी पर अध्यन चाल रहा था या यु समझिये पढाई जा रही थी वह पिछले वर्ष ही बैन कर दी गयी . लेकिन भारत में हिंदी स्कूलों की जनसंख्या घट रही है और अंग्रेजी स्कूलों की बढ़ रही है यानि हिंदी अब यहाँ भी सुरक्षित  नही है . अपने ही देश में . कुछ लोगो की राय है अंग्रेजी सीखना बहुत जरूरी हो गया है वश्विक तोर पर . लेकिन क्यों क्या हिंदी को जानने वाले केवल भारत में है .  नही एसा नही है पाकिस्तान , मलाशिया ,नेपाल , मारीशस ,भूटान जैसे कई देश है जहा हिंदी बोली समझी जाती है . कैम्ब्रिज में अगर हिंदी पर बैन लग सकता है तो भारत में अंग्रेजी पर क्यों नही . जिन अंग्रेजो ने हम पर २०० साल राज किया .हमें गुलाम बनाया लुटा यहाँ तक की देश के दो टुकड़े भी कर दिए हम उनकी शैली को इतना सम्मान क्यों दे रहे है . हम उन्ही की संस्कृति अथवा भाषा को माथे का तिलक लगाये क्यों घूम रहे है. वे लोग हमें पैरो तले रोंदते  रहे हम उन्हें सर पर बैठा रहे है

आज का निर्माता फिल्म बनाता है केवल मुनाफे के लिए

फिल्मे समाज का दर्पण  होती है जो हमें हमारे समाज की बुराई और अच्छाई से रूबरू करती है . लेकिन भारतीय फिल्मे अपने पथ से भटक रही है  . फिल्म निर्माता अब एसी कहानी परदे पर नही उतारते जो समाज से जुडी हो अथवा वह हमें कुछ सन्देश दे सके . आज का निर्माता फिल्म बनाता है केवल मुनाफे के लिए और भारतीयों को उलझाये रखता है मनोरंजन के मसाले में और कुछ निर्माताओ का एजेंडा तो अश्लीलता  दिखाकर मुनाफा कमाना होता है  . भारतीय समाज को अपने इतिहास से केवल फिल्म के जरिये ही रूबरू करवाया जा सकता है सभी की गीता  , राम चरितमानस , वेद शास्त्रों , अथवा गुलामी से जुडी  अथवा किसी भी एतिहासिक पुस्तक तक पहुच नही होती . कारण बहुत हो सकते है समय या हमारा अपनी संस्कृति के पर्ती गंभीर न होना . लेकिन फिल्म देखने के लिए भारतीय समय निकाल ही लेते है . अगर हम बोलीवूड की फिल्मो को शुरुआत से अंत तक देखे तो कुछेक फिल्मो को छोडकर सभी फिल्मो में मनोरंज़न का तड़का ही मिलता है . कोई भी फिल्म  हमारे इतिहास से या फिर गुलामी काल में हुए हम पर अत्याचारों को पर्दर्शित नही करती . मुगले आजम फिल्म बनी उसमे एक सुल्तान का अपनी बेगम के प्रति प्यार दिखाया गया जोधा अकबर बनी उसमे भी अकबर को भारतीयों  के प्रति नर्म दिखाया गया . इसी तरह एक फिल्म बनी ' चक दे इण्डिया ' उसमे भी एक मुसलमान की ईमानदारी दिखाई गयी . लेकिन कभी किसी फिल्म निर्माता ने ओरंगजेब के अत्याचारों को परदे पर क्यों नही उतारा . कभी मुहम्मद गोरी , चंगेज खान की भारतीयों  के प्रति कट्टरता को परदे पर क्यों नही उतारा जाता .विदेशो की चमक धमक तो दिखाई जाती है लेकिन भारत में बढ़ रहा भ्रष्टाचार नही दिखाया  जाता . बड़ी बड़ी इमारते तो दिखाई जाती है लेकिन उनके तले दबे कुचले लोग नही दिखाए जाते . किसी भी जात की महानता तो दिखाई जाती है लेकिन भारतीयों में फ़ैल रही जाती के प्रति अज्ञानता नही . नई पीढ़ी को बरगला कर अमिताभ , शाहरुख़ , सलमान , आमिर को भगवान बनाना कहा  तक उचित है . युवाओ को लड़की को दोस्त बनाने अथवा पटाने के तरीके तो बताये जाते है लेकिन देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी नही बताई जाती . पैसे की अहमियत तो गिने जाती है लेकिन देश की अहमियत भुलाकर .यही है हमारा दर्पण जो समाज की बुराइयों को दीखाने का दावा करता है .

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

अब तो हर इन्सान का नकली लहू यहा

धर्म भी भी बिकता है यहा अब
कर्म भी बिकता है यहा अब
हर आदमी  बिकता है यहा अब
चाहे नेता हो या चोर यहा अब
हर इन्सान का इमान भी बिकता यहा

इज्ज़त के सोडे होते दो रोटी वास्ते
बच्चो से भीख मंगवाते   बोटली वास्ते
नकली दूध  है यहा घी भी नकली यहा
अब तो हर इन्सान का नकली लहू यहा





 

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

एक देश को देखा था कभी मैंने

जब से कुछ समझने लगा हूँ तब से देख रहा हूँ मेरे देश के लोग हमारी संस्कृति को भुला रहे है या किसी न किसी रूप में नुकसान पंहुचा रहे है जाने अनजाने . सभी मेरे देश को सोने की चिड़िया कहते थे तभी इसे लुटने आते थे और अब भी कई देशो की गिद्ध दृष्टि इस पर लगी है . लेकिन उन्हें अलग रखकर देखे तो हम ख़ुद भी अपनी संस्कृति अपनी मर्यादाओ को भुला रहे है . गंगा जी में देखता हूँ तो हमारे ही भारतवासी उसमे गन्दा पानी छोड़ रहे है यही हाल जमुना का . यही हाल गौ माता का गौ वध निरंतर जारी है . भारत में प्रक्रति से भी खिलवाड़ हो रहा है . न ही बडो का सम्मान है और न ही छोटो की कोई मर्यादा . आज जो विदेशी भारत दर्शन को आते है उनमे से कोई विदेशी २०१५ में भारत आयेगा तो उसकी सोच यह होगी यह सब देखकर .




एक देश को देखा था कभी मैंने

जहा लगते थे शहीदों की चिताओ पर मेले


जहा करते थे साधू तप


जहा होता था सम्मान बड़ो का

एक देश को देखा था कभी मैंने






जहा नदियों को पूजा जाता था


जहा धरती को पूजा जाता था माँ कहकर



एक देश को देखा था कभी मैंने

जहा होती थी गाय जिन्हें कहते थे माँ

लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा

लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा

एक देश को देखा था कभी मैंने

एक देश को देखा था कभी मैंने

जब से  कुछ समझने लगा हूँ तब से देख रहा हूँ मेरे देश के लोग हमारी संस्कृति को भुला रहे है या किसी न किसी रूप में नुकसान पंहुचा रहे है जाने अनजाने . सभी मेरे देश को सोने की चिड़िया कहते थे तभी इसे लुटने आते थे और अब भी कई देशो की गिद्ध दृष्टि इस पर लगी है . लेकिन उन्हें अलग रखकर देखे तो हम ख़ुद भी अपनी संस्कृति अपनी मर्यादाओ को भुला रहे है . गंगा जी में देखता हूँ तो हमारे ही भारतवासी उसमे गन्दा पानी छोड़ रहे है यही हाल जमुना का . यही हाल गौ माता का गौ वध निरंतर जारी है . भारत में प्रक्रति से भी खिलवाड़ हो रहा है . न ही बडो का सम्मान है और न ही छोटो की कोई मर्यादा . आज जो विदेशी भारत दर्शन को आते है उनमे से कोई विदेशी २०१५ में भारत  आयेगा तो उसकी सोच यह होगी यह सब देखकर .

एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा लगते थे शहीदों की चिताओ पर मेले
एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा करते थे साधू तप
एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा होता था सम्मान बड़ो का
एक देश को देखा था कभी मैंने


एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा नदियों को पूजा जाता था
एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा धरती को पूजा जाता था माँ कहकर

एक देश को देखा था कभी मैंने
जहा होती थी गाय जिन्हें कहते थे माँ
एक देश को देखा था कभी मैंने
लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा
 लेकिन देखा फिर तो अब क्या है बचा यहा
एक देश को देखा था कभी मैंने