कुछ लोग साधुओ को भोतिक वाद होते अप्रसन्न है . उन्हें लगता है भोतिक्तावाद में खोकर साधू अपना धर्म कर्तव्य भूल जाते है .वे सभी विदेशो के दोरो पर ख़ुद को उलझा लेते है . इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है लेकिन यह पूर्णतय सत्य नही . अगर साधू संत भोतिक्वादी न हो और सभी प्राचीन साधू संतो की तरह ३० ३० सालो तक तप करे वे सिधिया तो पा सकते है लेकिन अपने धर्म का परचार नही कर सकते . श्री श्री हो या बाबा रामदेव भारत की संस्कृति का विदेशो में भी विस्तार करने को प्रयासरत है . आसाराम बापू , मुरारी बापू सभी विदेशी धरती पर सनातम धर्म को प्रचारित करने को प्रयासरत है .इसमें हमे कामयाबी दिलाने में ओशो महाराज और बाबा रामदेव ने कुछ हद्द तक सफल हुए है . पश्चिमी देशो में सनातम धर्म का सम्मान बढ़ सकता है . लेकिन शिकायत कुछ लोगो को रहती है . अगर भोतिक्तावाद के ही जरिये हमारी संस्कृति का परचार होता है तो इसमें कोन सी बुराई है . अब समय की मांग है सनातम धर्म का प्रचार किया जाये . मुगलों और अंग्रेजो की गुलामी के समय हमारी संस्कृति को खिन्न भिन्न करने का जो दुश्चक्र रचा गया उस दुश्चक्र को तोड़ने के लिए मीडिया भी एक अच्छा जरिया है . अब समय है अपने स्वाभिमान को दुनिया के सामने विश्वगुरु बनाने का . हम अब तक अंग्रेजी ज्ञान पढ़ते रहे लेकिन अब सनातम धर्म का पाठ पढ़ने में क्या बुराई है . अगर योग के जरिये ॐ के सभी दीवाने हो रहे है भारतीयों का इस्ससे बढ़कर क्या सम्मान की बात होगी अगर ओशो महाराज के जरिये ध्यान को एक पहचान विदेशो में मिली भारतीयता के मज़बूत होने की तरफ कदम माना जाना चाहिए . आज कुछ लोग गाय के दूध को पतला मानते है लेकिन इन्ही देसी गायो का अमेरिकी ; दूध पिने को बेताब है . अब दुनिया जान रही है सनातम धर्म की महानता को
bhartiyta ka smman sadhu sant hi lota sakte hai isme koi bhi burai nhi hai dhrm ka parchar karne ke liye swami vivekanand bhi america gye the
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहमत हूँ,आपसे इसी प्रकार हमारी भूली,बिसरी संसक्रिति का प्रचार होगा ।
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