धर्म भी भी बिकता है यहा अब
कर्म भी बिकता है यहा अब
हर आदमी बिकता है यहा अब
चाहे नेता हो या चोर यहा अब
हर इन्सान का इमान भी बिकता यहा
इज्ज़त के सोडे होते दो रोटी वास्ते
बच्चो से भीख मंगवाते बोटली वास्ते
नकली दूध है यहा घी भी नकली यहा
अब तो हर इन्सान का नकली लहू यहा
अब तो खून भी नकली चढाया जा रहा है मरीज़ों को । अच्छी रचना के लिये आभार ,शुभकामनायें
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