धुप हवन की सामग्री या फिर कोई भी पूजा से जुदा सामान उनके dabbo पर देवी देवताओ की तस्वीर मिलती है . व्यापारी श्रधा से तस्वीर लगाते है . एक अछि बात कही जा सकती है . लेकिन जो लोग पूजन के लिए इन्हें लेते है क्या वह इनका वही सम्मान करते है जब पूजा की विधि पूरी कर ली जाती है अथवा सभी लोग घर में मंदिर के लिए धुप अगरबत्ती लाते है . लेकिन जब वह अगरबत्तियां सभी जगा दी जाती है कुछ लोग सभी तो नही लेकिन कुछ लोग उन्हें सडको पर फैक देते है . जिन देवी देवताओ को हम सभी सम्मान देते है जिन्होंने पृथ्वी , मानव जाती की की रचना की उनका अपमान कैसे शोभा देता है हमें . इंसान घर पर देवी देवताओ को सम्मान देता है सुबह शाम जोत जगाता है लेकिन सड़क पर गुजरते समय अपने आप को इतना उप्पर समझ लेता है की किसी देवी देवता के कैलंडर या तस्वीर को किसी एसे सुरक्षित स्थान पर भी रखना उचित नही समझता जहा कम से कम कोई भी पराणी पाप का भागीदार न बने . उस समय इन्सान क्यों भगवान से ख़ुद को ऊपर मान बैठता है . एक कहावत है दुःख में सिमरन सब करे सुख में करे न कोई सुख सिमरण जो करे दुःख काहे को होई . ये कहावत बिलकुल सही है इन्सान इतना मतलबी होता है भगवान उसे जब याद आते है जब उसे कोई दुःख हो कोई कष्ट हो . जब वह सांसारिक सुख सुविधा से लैस हो जाता है तो वह लोभ माया में डूब जाता है . और उसे यह भी याद नही रहता वह मात्र इन्सान है कोई भगवान नही .
शिक्षा : सभी भारतवासी धुप सामग्री की खाली दब्बियो को चलते पानी में विसर्जित करे या उन्हें एसा स्थान दे जहा किसी के पैर नही पड़े
चलते पानी को तो हमने पहले ही कचरा डालकर रोक लिया है। अब यह सब भी डालेंगे तो न जाने क्या हाल होगा! क्यों न देवी देवताओं की फोटो लगी वस्तुओं को खरीदें ही नहीं। जब लोग खरीदेंगे नहीं तो कम्पनियाँ लगाएँगी भी नहीं। अन्यथा इन्हें तुलसी के पौधे या बगीचे में दबा दिया जा सकता है। जल प्रदूषण को बढ़ाना कोई उचित उपाय तो नहीं है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
AAPKI SLAH SE SAHMAT HOO MIRED JEE
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