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शनिवार, 14 अप्रैल 2012

निर्मल की आड़ में निशाने पर हिंदुत्व


यह ठीक है की बाबा पैसे लेते है हमे बेवकूफ बनाते है ! यह भी ठीक है की निर्मल सिंह नरूला ने बाबा शब्द की ही गरिमा को तार -तार कर रख दिया है ! यह भी ठीक है की निर्मल बाबा के समोसे ,पकोड़ो ,गोल गप्पो से असहमत हुआ जा सकता है ! हरी चटनी से किसी के दुःख दूर न हो ! यह भी ठीक है की निर्मल सिंह नरूला एक व्यापारी हो सकते है ! लेकिन एक निर्मल में पूरा हिन्दुत्त्व नही है या फिर निर्मल ही हिन्दुत्त्व का असली चहरा नही है जिसकी वजह से सपूर्ण हिन्दू धर्म के बाबाओं , मंत्रो या फिर योग को गरियाया जाए ! लेकिन मीडिया जिस तरह पूरे खेल को खेल रहा है उसमे वह न सिर्फ निर्मल बाबा के खिलाफ बोल रहा है बल्कि पूरे हिंदुत्व को बदनाम करने की साजिश रच रहा है ! जिन चमत्कारों या शक्तियों को भारत का जनमानस मानता आया है और महसूस करता आया है कही न कही सीधा निशाना उस पूरी सनातम परम्परा किया जा रहा है ! जो किसी भी तरह से सही नही माना जा सकता ! अभिसार शर्मा द्वारा सबसे तेज और सबसे पहले लिए गये निर्मल बाबा के इंटरव्यू में अभिसार ने कहा लाखो लोग मंदिर जाते है उनकी मन्नते तो पूरी नही होती ! एक पत्रकार का किसी धर्म विशेष के खिलाफ साजिश लगता है ! वही हिन्दुत्त्व विरोधी लोगो को स्टूडियो में बैठाकर निर्मल पर बहस को एक साज़िश के तहत पूरे सनातम परम्परा और कर्मकाण्डो को झुठलाना भी निर्मल की आड़ में पूरी सनातम परम्परा को बदनाम करने की साज़िश है ! जिस तरह से हर मुसलमान और हर इसाई मस्जिद या चर्च में जाते है वैसे ही हिन्दुओ की मंदिरों में आस्था है ! जिस तरह से किसी एक मोलवी या पादरी की गलत हरकत से इस्लाम या फिर ईसाइयत को बदनाम नही किया जा सकता ठीक उसी प्रकार एक निर्मल की वजह से पूरे हिन्दुत्त्व को बदनाम नही किया जा सकता ! लेकिन जैसे ही इंटरनेट पर निर्मल की कारगुजारियो का कच्छा चिटठा खोला गया हिन्दू विरोधी मानसिकता के लोगो ने हिन्दुत्त्व पर ही निशाना साध लिया ! जिसे किसी भी प्रकार जायज नही ठराया जा सकता ! जिस तरह से इंटरनेट पर खुद हिन्दू समुदाय के लोगो ने निर्मल बाबा का विरोध किया उसी तरह हिन्दू विरोधी मीडिया का भी विरोध होना चाहिए !

1 टिप्पणी:

  1. आपसे सहमत नहीं हूँ। निर्मल जैसे चोट्टों ने धर्म और अंधविश्वास के बीच की रेखा को मिटा दिया है। धर्म और अंधविश्वास में जमीन-आसमान का फासला है न कि एक महीन रेखा। धर्म विज्ञान और तर्कपूर्ण व्यवहार का दूसरा नाम है। मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं-

    धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह: ।
    धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌ ।। (मनुस्‍मृति ६.९२)

    ( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं । )

    इसमें कहाँ है श्रद्धा, विश्वास, रोज-रोज मन्दिर जाना, 'भगवान' को मानना?

    हाँ आपकी इस बात से सहमत हूँ कि इसाइयों और मुसलमानों में अंधविश्वास है। किन्तु उससे अधिक उनमें 'मजहबी कट्टरता' है जो धर्म नहीं बल्कि 'अधर्म' है।

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