किसान नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर आती है मटमैले कपडे पहने हुए एक व्यक्ति की जो या तो खेत में पानी लगा रहा है या फिर कुछ बुवाई अथवा कटाई कर रहा है . लगता है गरीब वो जैसे गरीबी का मारा मजबूर . और दूसरी तरफ व्यापारी जिसके चहरे प़र हसी साफ़ कपडे . लेकिन मन में दिमाघ में चिन्ताओ का अम्बार लगा है . किसान क्या अब भी वही किसान है इसका जवाब खोजेंगे तो नही में मिलेगा . आज्ज का किसान व्यापारी से ज्यादा सम्पन्न और पैसे वाला है . न ही अब वह मेहनत है और न ही वह पसीना बहता है . संसाधनों ने किसान की दशा में काफी हद्द तक खुशहाली लाई है . वही व्यापारी के हालात आज ज्यादा बदतर है किसी भी दंगे फसाद लड़ाई झगडे में वायापरी को नुक्सान झेलना पड़ता है . लड़ाई झगड़ा हो या बंद या फिर किसी आरक्षण की आग झुलसता हमेशा व्यापारी वर्ग ही है . आखिर व्यापारी की इस दशा के पीछे जिम्मेदार कोन है राजनीति ? या फिर व्यापारी का वोट बैंक न होना . व्यापारियों की ये हालात उनकी कमी के कारण तो नही हुए कही . कमी यह की उनका संगठित न रहना . आखिर क्या कारण है किसान को सुखा पड़ने प़र मुआवजा ,बाढ़ आने प़र मुआवजा ,और व्यापारी का नुक्सान बढ़ या किसी भी तरीके से नुक्सान हो उसका कोई वाली वारिस क्यों नही ? किसान का बेटा किसी दंगे की चपेट में आये तो वाह बीस लाख का और एक घरवाले को नोकरी . लेकिन व्यापार वर्ग से कोई बेटा हो तो ? किसलिए ये भेदभाव क्या व्यापारी वर्ग इस देश का हिस्सा नही है . हालात इस प्रकार के है की सोचने को मजबूर करते है इन दोनों में से कोन गरीब कोन आमिर . कोन लाचार है कोन कमजोर है अथवा किसकी आवाज़ दबती जा रही है ये देश और देश के व्यापारियों को तय करना होगा .......................ये मीडिया को परखना है हम और आप को भी . आखिर यह देश चारदीवारी है . ब्राह्मण ,वैश्य ,क्षुद्र , क्षत्रिय
जय हिंद
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