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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

क्या वाकई हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई ?

आपने बचपन से आज तक नजाने कितनी बार सूना होगा की हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई किताबो में ,इश्तिहारो ,अखबारों ,बैनरों में देखा होगा . लेकिन क्या वाकई हिन्दू मुस्लिम है भाई -भाई . बटवारे के बाद से नेताओं और पुस्तको और संतो ने हमें पाठ पढ़ाया है की हिन्दू मुस्लिम भाई – भाई है .लेकिन मेरा मानना एसा नही है आजादी के बाद या फिर पहले जितने भी दंगे फसाद हुए है है वह हिन्दू -मुस्लिम के बीच सबसे ज्यादा हुए है .बेशक से हिन्दू और मुसलमान का खून एक जैसा है ,बेशक से दोनों के ही शरीर में एक आत्मा है ,बेशक से सबका मालिक एक है लेकिन फिर भी दोनों की ही संस्कृतिया अलग -अलग है ,भाषा अलग है रहन सहन अलग है ,शिक्षा अलग है ,जीवन शैली अलग है ,संस्कार अलग है . एसा मात्र किताबो में ही शोभा देता है की हिन्दू -मुस्लिम भाई -भाई लेकिन असल जिन्दगी में स्थिति बिलकुल इसके उल्ट है . एक समुदाय सर्व धर्म की बात करता है मंदिर , मस्जिद गुरुद्वारों ,गिरिजाघरो ,नदियों ,पत्तो , पक्षियों , कीड़े मकोडो में इश्वर का रूप देखता है और वही दुसरा समुदाय एकेश्वरवाद के सिधान्तो पर चलता है और उसे मानता है और बाकियों मूर्तिपूजको को काफिर मानता है . सच मानिए तो दोनों की ही शिक्षा -सभ्यता अलग अलग है विचार अलग है .एक समुदाय विकास के लिए देश की उन्नति के लिए प्रयत्नशील है वाही दुसरा समुदाय जनसंख्या परिवर्तन के लिए प्रयासरत है , मत परिवर्तन ,धर्मपरिवर्तन ,सत्ता परिवर्तन के लिए प्रयासरत है . एक समुदाय विदेशी हमलो , इस्लामिक षड्यंत्रों ,हमलो के बावजूद भी सहनशील है दुसरा समुदाय देश को दारुल इस्लाम बनाने पर प्रयासरत है .इस छद्म भैवाद ने आखिर हमें दिया क्या है ? अपने ही  देश में शरणार्थी काश्मीरी ब्राह्मण या फिर हिंदी चीनी भाई -भाई जैसे खोखले नारे  ?  क्या इन सभी हालातो को देखकर लगता है की कभी हिन्दू -मुस्लिम भाई -भाई हो सकते है ? जरा सोचिये

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीजून 15, 2012 7:59 am

    धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।
    व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
    सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
    व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिदेव) से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
    धर्म एवं उपासना द्वारा मोक्ष एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है ।
    कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें ।

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    1. वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।

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