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शनिवार, 21 जनवरी 2012

क्या है चुनावी मुद्दा जन्लोपाल ,काला धन या फिर ...अपनी जात

वह घडी नजदीक है जिस घडी का सभी को इंतज़ार था खासतोर पर उन प्रदेशो की जनता को जहा यह चुनाव होने है . चुनावों से बहुत पहले से ही हमारे देश में भर्ष्टाचार और काला धन एक मुद्दा था लोग इन्ही मुद्दों से तंग आकर सडको पर निकले थे . यह देश की युवा पीढ़ी ने पहली बार देखा था की कोई गैर राजनैतिक संगठन इतने बड़े आन्दोलन की अगुवाई कर रहा था . पहले बाबा रामदेव बाद में टीम अन्ना दोनों ने ही भर्ष्टाचार के मुद्दे पर देश को जागरूक किया . लेकिन दोनों ही आन्दोलन सरकार ने विफल कर दिए लेकिन इस बात से इनकार नही किया जा सकता की भारत की जनता के मन में भर्ष्टाचार और विदेश में पड़े लाखो करोड़ रुपयों को लेकर गुस्सा है और वह चाहती है की देश में भ्रष्टाचार न हो काला धन वापस आये . लेकिन भारत में जैसे जैसे चुनाव करीब आते है वैसे – वैसे राजनीतिग्य अपने -अपने दाव चलने लगते है कोई मुफ्त शिक्षा के नाम पर , कोई साइकल के नाम पर , तो कोई मुफ्त कम्प्यूटर के नाम आम जनता के वोट अपनी झोली में लाना चाहता है . लेकिन राजनेताओं का असली तुरुप का पत्ता सिद्ध होता है जातीय फैक्टर यह वह फैक्टर है जो आपको जीत का मन्त्र देता है . उम्मीदवार चाहे कितना भी दागी हो ह्त्या के उस पर आरोप हो लूट -मार उसका पेशा हो भार्श्त्चार के कितने ही आरोप उस पर लगे हो लेकिन उसकी जीत तब लगभग सुनिश्चित हो जाती है जब उसकी जाती का उस क्षेत्र में दब -दबा हो जहा से वह चुनाव लड़ रहा होता है . तब यह मुद्दे कही गुम से हो जाते है सुशासन , सवच्छ शासन , भ्रष्ट मुक्त शासन , काला धन , जन्लोक्पाल और तब देशभक्ति की भावना भी जाती के प्रभाव के निचे कही दब जाती है देश प्रदेश के नेता फिर से अन्ना या बाबा रामदेव जैसे भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नायको को ठेंगा दिखाकर कुर्सी हतियाने में कामयाब हो जाते है ,फिर से वही भ्रष्टाचारी ,लूटपाट के आरोपी , बलात्कार के आरोपी हमारे सिस्टम का एक हिस्सा बन जाते है .किसी को कैबिनेट में जगह तो किसी को मुख्य संसदीय सचिव जैसे पद दे दिए जाते है और पूरे पांच साल तक वही लोग देश या प्रदेश की जनता को खून के आंसू रुलाते है . अपने यार – दोस्त , रिश्तेदारों को गुंडा गर्दी का खुला लाइसेंस इन्ही लोगो की वजह से ही मिलता है . इस बार के विधान सभा के चुनावों में भी कुछ एसा ही है अन्ना और बाबा रामदेव की मेहनत पर पानी फेरने का मन लगभग सभी राजनातिक दलों ने बना लिया है और वह उसी फार्मूले को अपना आधार बना कर चुनाव लड़ रहे है जिसे वह पहले आधार बना कर चुनाव लड़ते आये है राजनीति में जातिवाद अथवा जाती की राजनीति . वह फिर से देशवासियों , प्रदेशवासियों को राजपूतो , ब्राह्मणों , जाटो , दलितों , मुस्लिमो के नाम पर बाटने में लगे है .उनका लक्ष्य एक ही है मात्र सत्ता…. किसी भी कीमत पर . जिस क्षेत्र में राजपूत अधिक है वहा राजपूतो को टिकेट मिलेगी , जहा जाट अधिक है वहा जाटो को और जहा दलित अधिक है वहा दलितों को और जिस क्षेत्र में मुस्लिम अधिक है वहा मुस्लिमो को . जनता भी एक बार फिर जातीय भावनाओं में बहकर उसे ही वोट देगी जो उसकी जाती धर्म से ताल्लुक रखता है चाहे वह कितना ही बड़ा अपराधी क्यों न हो . बेशक से उनका गाव ,शहर , राज्य पिछड़ता रहे लूट अपराध का बोल -बाला प्रदेश में चलता रहे . चुकी राजनीति में जातिवाद भारत में एक कडवी सच्चाई है और यही सच्चाई राजनातिक दल समझते है तभी हर उम्मीदवार जाती के गुना भाग से तय होता है और हर बार मतदाता उन्हें वोट देकर सत्ता सोपकर पछताता है चुकी हर बार योग्यता , इमानदारी ,सवच्छ छवि पर भारी पड़ती है ………अपनी जाती

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